Monday 30 September 2013

एमएसीपी के मामले में सुप्रीम कोर्ट का महत्‍वपूर्ण फैसला...अनुवादकों पर भी होता है लागू.

अनुवादक साथियों के लिए एक अच्‍छी ख़बर है. हाल ही में सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने सर्वे ऑफ इंडिया के मिनिस्‍टीरियल स्‍टाफ एसोसिएशन द्वारा दायर एमएसीपी संबंधी मामले पर (कैट और उच्‍च न्‍यायालय भी एसोसिएशन के पक्ष में निर्णय दे चुके थे) सरकार की याचिका को खारिज कर दिया है. अब सर्वे ऑफ इंडिया की एसोसिएशन ने सूचित किया है : 

MACP on Hierarchy: Supreme Court dismissed the Govt. petitions against HC Decision

Dear Comrade,
The Principal CAT [OA 904/2012 dt. 26-11-2012], Delhi and the Punjab & Haryana High Court [CWP No. 19387 of 2011 (O&M) Date of Decision: 19.10.2011] have held that MACP is to be granted on promotional hierarchy and not on next higher Grade Pay as per the 6th Pay Commission Recommendation. The SLP filed by Union of India against the P&H decision was dismissed by the Supreme Court [CC 7467/2013].
Yours Comradely,
Manoj Kumar Sharma
Secretary General
Ministerial Staff Association
C/o-Northern Printing Group
Survey of India
Dehradun:- 248001

यह फैसला सीएसओएलएस संवर्ग और विेशेषकर अधीनस्‍थ कार्यालयों में कार्यरत वरिष्‍ठ अनुवादकों को अब 4800 के स्‍थान पर सीधे 5400 की एमएसीपी प्राप्‍त करने का मार्ग प्रशस्‍त करेगा. अब प्रतीक्षा डीओपीटी से इस संबंध में आदेश की रहेगी.

Saturday 7 September 2013

4600 ग्रेड वेतन के लिए आवश्‍यक है बहुआयामी रणनीति....कमजोर और टालमटोल का रवैया घातक होगा.

केन्‍द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोसिएशन ने 5 सितंबर, 2013 को अपने ब्‍लॉग पर ‘1986 का मामला तथा 4600 रू ग्रेड वेतन पर भावी कार्यनीति शीर्षक से एक पोस्‍ट में इन दोनों मामलों में अपना पक्ष स्‍पष्‍ट करने का प्रयास किया है. अब तक 4600 रू ग्रेड वेतन मामले में एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने अनुवादकों द्वारा लंबे समय से पूछे जा रहे प्रश्‍नों के उत्‍तर देने की बजाए मौन धारण कर रखा था....न जाने वे कौन से संदेह हैं जो हमारे प्रतिनिधियों को अपनी बात स्‍पष्‍ट रूप में कहने से रोकते हैं. खैर, अनुवादक मंच कम से अब इस विषय में अपनी बात कहने के लिए एसोसिएशन के पदाधिकारियों के इस प्रयास का स्‍वागत करता है. पर बात सिर्फ अपना पक्ष स्‍पष्‍ट करने के प्रयास पर समाप्‍त नहीं हो जाती. हम सबको यह समझना होगा कि क्‍या वास्‍तव में जो तरीका एसोसिएशन ने कनिष्‍ठ अनुवादकों को 4600 रू ग्रेड वेतन सुनिश्चित करने के लिए चुना है व‍ह पूरी तरह कारगर है या नहीं? दूसरे, क्‍या वर्षों से लंबित चले आ रहे इस मामले में एसोसिएशन से अभी भी कोई लापरवाही तो नहीं हो रही है ? क्‍या इस समय कोई और कदम उठाए जाने की आवश्‍यकता है ?
          दोस्‍तो आप सभी जानते हैं कि 1986 का मामला सिर्फ इतना सा है कि सरकार ने कनिष्‍ठ अनुवादकों को 1996 से नोशनल आधार पर और 2003 से वास्‍तविक रूप में जो वेतन दिया वह केन्‍द्रीय सचिवालय सेवा के सहायकों के बराबर हो गया था. (जोकि 2006 तक बराबर रहा और बाद में सहायकों का वेतनमान बढ़ा दिया गया) परंतु हमारे संवर्ग की पूर्ववर्ती एसोसिएशनों और पूर्व पदाधिकारियों ने अदालत में अपील की कि हमें 1996 के बजाए 1986 से नोशनल आधार पर यह लाभ दिया जाए. इसका अर्थ यह हुआ कि यह 1986-1996 के वैक्‍यूम पीरियड़ का मामला हुआ और इससे सीधे तौर पर वे लोग प्रभावित हैं जो 1986-96 के दौरान सेवा में थे. इस दौरान व्‍यय विभाग बार-बार यह कहता रहा है कि अनुवादकों को कभी भी सहायकों के समकक्ष वेतन नहीं दिया गया बल्कि वह सीटीबी/सीएचटीआई के कार्मिकों के समकक्ष था. दूसरे व्‍यय विभाग द्वारा पैरिटी की मांग को खारिज करने के लिए जो तर्क रखे जा रहे हैं उनसे हम सभी परिचित हैं और इस बात से भी वाकिफ हैं कि इन्‍हीं बातों पर बरसों से अनुवादक एसासिएशन और वित्‍त मंत्रालय में संघर्ष चल रहा है. परंतु आज तक कोई ठोस फैसला नहीं आ सका.......इस संबंध में इस मामले से जुड़े हमारे सीनियर्स का कहना है कि उनके पास अपने दावे के समर्थन में पर्याप्‍त तथ्‍य हैं. हम ईश्‍वर से प्रार्थना करते हैं कि फैसला उनके पक्ष में ही हो. यदि उन्‍हें किसी भी प्रकार का लाभ प्राप्‍त होता है तो इसकी खुशी पूरे अनुवादक समुदाय को होगी.

यहां तक तो बात रही 1986 से 1996 और 2006 में दोबारा पैरिटी खत्‍म होने की. परंतु दोस्‍तो, हम सभी इस बात से परिचित हैं कि वर्ष 2006 में छठे वेतन आयोग की सिफारिशें आने और उनके आधार पर व्‍यय विभाग द्वारा जारी किए गए कुछ आदेशों के कारण अब नई परिस्थितियां उत्‍पन्‍न हो गई हैं. उधर, श्रीम‍ती टी.पी. लीना इन्‍हीं आधारों पर सर्वोच्‍च न्‍यायालय से केस जीत चुकी हैं. जैसी कि पिछली पोस्‍टों में चर्चा की गई है कि इन नई परिस्थितियों में नए और पुख्‍ता आधारों पर अनुवादक एसोसिएशन ने कनिष्‍ठ अनुवादकों हेतु 4600 ग्रेड वेतन की मांग का प्रस्‍ताव राजभाषा विभाग को भेजा था जिसे बाद में व्‍यय विभाग ने बेतुके ढ़ंग और बिना उचित तर्कों के खारिज कर दिया है. प्रतिवेदन भेजे जाते समय ही यह तय किया गया था कि यदि व्‍यय विभाग से सकारात्‍मक उत्‍तर प्राप्‍त नहीं होता है तो बिना समय गंवाए कैट में मामला ले जाया जाएगा. परंतु एसोसिएशन ने इस प्रतिवेदन के अप्रैल माह में रिजेक्‍ट हो जाने के बाद से आज तक इस मामले में खामोशी ओढ़ी हुई थी और अब जब कुछ कुछ कार्रवाई की बात की है तो वह पूरी तरह 1986 वाले मामले पर निर्भर हो जाने की बात कहीं है.

       मित्रो, हम जानते हैं कि 1986 का यह मामला बरसों से चल रहा है. जिसमें सकारात्‍मक टिप्‍पणी के अतिरिक्‍त हमें आज तक कुछ नहीं मिल सका. परंतु हमारे वरिष्‍ठ साथियों का संघर्ष जारी रहा. अब पूर्व पदाधिकारियों द्वारा जुलाई 2012 में इस मामले को दोबारा कैट में दायर किया गया....एक वर्ष से अधिक का समय बीत चुका है और अभी भी हम किसी त्‍वरित फैसले की गारंटी नहीं ले सकते. अदालती प्रक्रियाओं में कितना समय लगेगा कोई नहीं कर सकता.....हम भी इस बार इस मामले में किसी सकारात्‍मक परिणाम के प्रति आशान्वित हैं. परंतु बात सिर्फ इस मामले का फैसला आने पर ही खत्‍म नहीं हो जाएगी. इस केस के फैसले के बाद तीन परिस्थितियां उत्‍पन्‍न होने की संभावना है :  

1.    पहली में, यदि एसोसिएशन इस केस को जीत भी जाती है तो हमें 2006 से इस पैरिटी को prospective effect से सुनिश्चित कराने के लिए संभवत: एक बार फिर न्‍यायालय में जाना होगा.

2.    दूसरी स्थिति में, यदि सरकार कैट के आदेश के विरूद्ध हाई कोर्ट में अपील दायर कर देती है तो यह मामला कितना लंबा खिंचेगा, कोई अनुमान नहीं लगा सकता.

3.    और सबसे बुरी स्थिति में, दुर्भाग्‍यवश यदि कैट या हाई कोर्ट (व्‍यय विभाग के अडियल रवैये को देखते हुए पूरी संभावना है ) से 6 माह बाद या एक साल बाद हम इस केस को हार जाते हैं तो ज़रा अनुवादकों की संभावित स्थिति की कल्‍पना की जा सकती है.

मित्रो आशावादी होना आवश्‍यक है मगर आशावादी होने के साथ-साथ हमें प्रैक्टिल भी होना होगा.

अब प्रश्‍न उठता है कि ऐसी स्थिति में क्‍या रणनीति अपनाई जाए? अनुवादक मंच से जुड़े अनुवादकों ने इस विषय में गंभीर रूप से मंथन किया है और इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि एसोसिएशन को बिना समय गंवाए अन्‍य आधारों पर तुरंत एक केस कैट में दायर कर देना चाहिए. हमें ज्ञात है कि अदालती प्रक्रिया में किसी भी केस में शुरूआत में विभिन्‍न औपचारिकताओं आदि में कई तारीखें निकल जाती हैं....पूरी संभावना है कि इस नए मामले के आर्ग्यूमेंट की स्‍टेज तक पहुंचने में कम से कम 4 से 6 माह लगेंगे. अब जैसी कि संभावना है कि इस दौरान 1986 केस का फैसला हो चुका होगा. अब उपर्युक्‍त परिस्थितियों के अनुसार यदि

1.    फैसला हमारे पक्ष में होता है और सरकार अपील में नहीं जाती है तो इस दूसरे मामले को वहीं रोका जा सकता है.

2.    यदि हम 1986 का केस हारते हैं/सरकार अपील में जाती है तो सर्वथा भिन्‍न आधारों पर ग्रेड वेतन 4600 के लिए अपने संघर्ष को जारी रखने के लिए यह दूसरा केस तब तक मैच्‍योर स्‍टेज में पहुंच चुका होगा. कम से कम तब हमें नए सिरे से किसी को दायर करने और महीनों तक इंतजार की आवश्‍यकता नहीं होगी.

इस सुझाव का एसोसिएशन पर वित्‍तीय प्रभाव :
नए केस से एसोसिएशन पर कोई भारी बोझ नहीं पड़ेगा. इस नए केस को दायर करने के लिए शुरूआती दौर में एसोसिएशन को किसी सीनियर एडवोकेट को हायर करने की आवश्‍यकता नहीं है. जैसा कि हमें ज्ञात हुआ है एक साल से चल रहे 1986 के केस में भी नए वकील को किए जाने तक बीस-पच्‍चीस हजार से ज्‍यादा खर्च नहीं आया है. इसी प्रकार कम खर्च में हम एक नए केस को अगले कुछ महीनों के लिए प्रगति की राह पर डाल सकते हैं. 1986 केस का फैसला होने के बाद उत्‍पन्‍न होने वाली परिस्थितियों में जो भी समीचीन लगे किया जा सकेगा.
उपरोक्‍त बातों पर चर्चा के साथ-साथ हमें इस तथ्‍य को अवश्‍य ही समझना होगा कि सातवें वेतन आयोग का जल्‍द ही गठन होने की संभावना है. अतएव वेतन आयोग के गठन से पूर्व यदि हम कुछ हासिल कर पाते हैं तो हमारे लिए वेतन आयोग में आगे का संघर्ष न केवल सरल होगा बल्कि वहां से अनुवादकों के वेतन में वृद्धि के नए प्रयास किए जा सकेंगे.
एसोसिएशन कृपया इस बात को समझने का प्रयास करे कि पहले 1986 केस के परिणाम की प्रतीक्षा करने और नतीजा आने के बाद आगे की रणनीति तैयार करने का वक्‍त अब हमारे हाथ से निकल चुका है. इस मामले में की जा रही देरी की कीमत हमें अपने भविष्‍य से चुकानी पड़ सकती है. इसलिए समय रहते सावधानी और आसन्‍न खतरों के प्रति सुरक्षात्‍मक उपाय किए जाने में ही सभी का कल्‍याण निहित है. इस विषय में अनुवादक मंच और इससे जुड़े अनुवादक सदैव एसोसिएशन के साथ हैं.....

हालांकि अनुवादक मंच ने कई कार्यकारिणी के सदस्‍यों के माध्‍यम से अपना यह सुझाव एसोसिएशन के पदाधिकारियों तक पहुंचाया था. परंतु उसके बाद भी एसोसिएशन ने यदि इस प्रकार की लचर रणनीति तैयार की है तो स्थिति चिंताजनक है. वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह बहुत आवश्‍यक है कि तत्‍काल आम सभा की बैठक बुला कर अनुवादक समुदाय की राय भी जान ली जाए. सभी से सलाह मश्विरा करके किए गए कार्य सफल रहते हैं. अतएव एसोसिएशन तत्‍काल कोई उचित कार्रवाई का आश्‍वासन दे और आम सभा बुलाकर अनुवादकों की राय जाने अन्‍यथा हम अनुवादकों को स्‍वयं आम सभा बुलाने पर विवश होना पड़ेगा. अब न तो कोई संसद सत्र चल रहा है न ही कोई अन्‍य बाधा है अतएव आम सभा बुलाई ही जानी चाहिए....यूं भी 31 जनवरी, 2013 के बाद जुलाई,2013 में आम सभा की बैठक हो जानी चाहिए थी. 

यदि ऐसे महत्‍वपूर्ण विषयों पर भी आम सभा की राय नहीं ली जाती है तो आम सभा का क्‍या औचित्‍य है