Friday 23 August 2013

4600 ग्रेड वेतन संबंधी एसोसिएशन के प्रतिवेदन पर व्‍यय विभाग का उत्‍तर एवं उसकी समीक्षा.


दोस्‍तो, 4600 ग्रेड वेतन मामले में अपनी पिछली पोस्‍ट में हमने आपको बताया था कि किस तरह 4600 ग्रेड वेतन मामले की फाइल वित्‍त मंत्रालय द्वारा रिजेक्‍ट किए जाने की बात को एसोसिएशन के अध्‍यक्ष और महासचिव महोदय द्वारा एसोसिएशन के साथी पदाधिकारियों तथा अनुवादक समुदाय से पूरे दो माह तक छिपाए रखा गया और अब कई माह बाद भी जब इस मामले पर अपडेट देने का नाटक किया गया तो एक बार फिर अनुवादकों को गुमराह करने के लिए कहा गया कि एसोसिएशन के 'रिगरस पर्सुएशन' से इसी फाइल को एक बार फिर वित्‍त मंत्रालय भेजा जा रहा है. एसोसिएशन के पदाधिकारियों के इस दावे की भी इसी मंच पर हम पोल खोल चुके हैं. खैर, इस सबके बावजूद, हमने पिछली गलतियों को भुला कर एसोसिएशन के पदाधिकारियों को तुरंत उन तथ्‍यों को अनुवादकों से साझा करने का अनुरोध किया था, जिनके आधार पर व्‍यय विभाग/ वित्‍त मंत्रालय ने एसोसिएशन के प्रस्‍ताव को खारिज किया था. इस बारे में तमाम अनुवादक साथियों के साथ साथ हम पूर्व पदाधिकारियों ने भी एसोसिएशन के पदाधिकारियों से कई बार विनम्र निवेदन किए. मगर हठधर्मिता की सीमाएं अभी देखनी बाकी थीं. 1 अगस्‍त, 2013 को आखिरी पोस्‍ट में सब कुछ सामने रखने के बावजूद आज तक न तो एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने न तो उन तथ्‍यों का खुलासा किया न ही कोई भावी रणनीति अथवा कार्ययोजना से अनुवादक साथियों को अवगत कराया. इससे अधिक दुखद स्थिति क्‍या होगी जहां महत्‍वपूर्ण मुद्दे हर गुजरते दिन के साथ अपनी मौत मर रहे हैं और जिम्‍मेदार लोग मौन धारण कर बैठे हैं अथवा गुमराह कर रहे हैं. 

हमने वायदा किया था कि हम हर बार अपेक्षित कार्रवाई का पहला मौका अपनी एसोसिएशन को ही देंगे....और इस बार भी हम यही चाहते थे कि यह सूचना एसोसिएशन ही अनुवादकों को दे. मगर ऐसा नहीं हुआ है. ये सूचना के अधिकार का युग है जहां कोई भी सूचना गोपनीय नहीं रखी जा सकती. इधर हमने विभिन्‍न मंत्रालयों से जब इस मामले के दस्‍तावेजों को हासिल करना शुरू किया तो कुछ नए तथ्‍य सामने आ रहे हैं. अब हम इस मामले की शुरूआत से लेकर अंत तक के समस्‍त दस्‍तावेजों को हासिल कर रहे हैं. जल्‍द ही कुछ और तथ्‍यों से आपको अवगत कराएंगे. फिलहाल नीचे उन तथ्‍यों का खुलासा किया जा रहा है जिनके आधार पर व्‍यय विभाग ने एसोसिएशन के प्रतिवेदन को ठुकराया था: 

Ministry of Home Affairs may refer to their notes on Pre-page regarding up-gradation of Grade Par of Jr. Hindi Translator of CSOLS from Rs 4200 to 4600 in the pay scale of Rs 6500-10500 (pre-revised) in Pay Band 2. 

2. The matter has been examined in this Department and the observation made are as following:- 

a) Prior to 6th CPC the post of JHT of CSOLS were in the pre revised pay scale of Rs.5500-9000 and is, therefore, not covered under this Department’s OM dated 13.11.2009 wherein the posts which were in the pre revised pay scale of Rs.6500-10500 as on 01.01.2006, have been placed in the GP of Rs.4600/-. Hence the request of AM of implementation of OM dated 13.11.2009 is not feasible in case of JHTs of CSOLS.

b) Further, it has already been decided that there is no parity between the posts of CSOLS with the Assistants/Stenographer Grade ‘C’ of CSS/CSSS. The posts belong to different cadres, the duties & responsibilities of the posts, functions performed, RRs, hierarchical levels etc. are entirely different. Thus the posts are not comparable. The pay scale of JHT were upgraded from Rs.5000-8000 to Rs.5500-9000 w.e.f.01.01.1996 on par with similar posts in Central Translation Bureau and not on account of parity with the Assistants of CSS.

c) As the issue of pay fixation order issued by Directorate of Revenue Intelligence, New Delhi in respect of their JHT consequent upon the revision of pay structure of Grade Pay of Rs.4600/- is concerned, the same has been issued without the approval of Department of Expenditure and also not in order. Hence the grant of GP of Rs.4600/- to JHT by Directorate of Revenue Intelligence, New Delhi is ab-initio invalid. 

d) As per prevalent Government Policy, up-gradation of a post is done mainly on the basis of increase in work load and adequate functional justification along with matching savings by way of abolition of certain live posts. The instant proposal lacks in the criteria necessary for up-gradation of posts. 

e) In view of the above, the instant proposal is not agreed to

3. Joint Secretary (Pers.) has seen. 

यह आदेश 26.04.2013 को जारी किया जा चुका था. मगर अनुवादकों को सूचना पूरे तीन माह बाद दी गई वह भी भ्रामक बयानों के साथ. 

खैर अब जरा व्‍यय विभाग के निर्णय की समीक्षा की जाए. यहां कुछ सवाल उठते हैं जिनके जवाब एसोसिएशन के अध्‍यक्ष अथवा महासचिव महोदय ही दे सकते हैं क्‍योंकि अध्‍यक्ष महोदय समय समय पर यह दावा करते रहे थे कि वह इस मामले को ट्रैक कर रहे हैं. फिर ऐसा क्‍यों हुआ : 

* सबसे पहले तो पहली पंक्ति ही होश उड़ाने वाली है "Ministry of Home Affairs may refer to their notes". क्‍या एसोसिएशन के प्रतिवेदन को मूल रूप में व्‍यय विभाग को प्रेषित करने की बजाए राजभाषा विभाग ने कोई नोट भेजा था ? 

* पेरा सं. 2 में तमाम बातों के बीच 24.11.2008 के उस आदेश का जिक्र क्‍यों नहीं है जिसके आधार पर क. अनुवादकों को 1.1.2006 से 6500-10500 का ग्रेड दिया गया था. क्‍योंकि हमारे इस रिप्रेजेंटेशन का पूरा दारोमदार इसी आदेश पर टिका था. इसका जिक्र ही न होना अजीब नहीं है क्‍या ?

* पैरा 2 b, देखिए. पहली ही पंक्ति में पैरिटी की बात की गई है " it has already been decided that there is no parity between the posts of CSOLS with the Assistants/Stenographer Grade ‘C’ of CSS/CSSS". ये अपने आप में आश्‍चर्यजनक है कि हमने अपने प्रतिवेदन में कभी भी पैरिटी को मुद्दा नहीं बनाया था. ये पैरिटी का मसला कैसे बीच में आया ?

* और सबसे आश्‍चर्य की बात तो यह है कि एसोसिएशन द्वारा भेजे गए प्रतिवेदन के साथ श्रीमती टी.पी.लीना द्वारा कैट, केरल उच्‍च न्‍यायालय और सर्वोच्‍च न्‍यायालय में जीते गए केस के आदेशों की प्रतियां लगाई गईं थीं.....इन आदेशों के बारे में एक भी शब्‍द व्‍यय विभाग के आदेश में नहीं है. क्‍या न्‍यायालयों के आदेशों की प्रतियां एसोसिएशन के प्रतिवेदन के साथ व्‍यय विभाग को नहीं भेजी गईं अथवा यदि भेजी गईं तो व्‍यय विभाग ने उन्‍हें नज़रअंदाज क्‍यों किया ? 

* हमारे द्वारा भेजे गए प्रतिवेदन में हमने केन्‍द्रीय सूचना आयोग में एक मामले की सुनवाई में स्‍वयं व्‍यय विभाग की एक निदेशक स्‍तर की अधिकारी द्वारा वीडियो कॉन्‍फ्रेंसिंग से एनआईसी फैसिलिटी में दिए गए वक्‍तव्‍य जिसका सार यह था कि " कनिष्‍ठ अनुवादक 1.1.2006 को 6500-10500 (Pre-Revised) में ही है. इस तर्क के खंडन का भी कहीं कोई जिक्र नहीं है. 

सवाल कुछ और भी हैं जो कुछ लोगों के लिए अत्‍यंत असुविधाजनक हो सकते हैं....उन पर हम पूरे दस्‍तावेजों के आ जाने के बाद ही बात करेंगे. 

उधर श्रीमती टी.पी लीना भी इस मामले में निरंतर हमसे संपर्क बनाए हुए हैं और यहां के हालात देखकर चिंतित हैं. उनकी चिंता जायज है .....हम एक आधी जीती हुई जंग को अंजाम तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं. उन्‍होंने कहा है कि...

"Heard that finance ministry has turned down your request for 4600/- gp .Tell ur association to bring an immediate stay on that order bcos if it is published then it will become the law. Since thaere is already a supreme court verdict in favour of 4600/- and also the fact that they cannot do this 4 years after issue of their first order.Leena

...... Pls do something fast.If assistants in CSS can get 4600/- why not translators who r more qualified. Ur association shd ve filed a case immediately after mine was over." 

कुल मिला कर यहां स्‍पष्‍ट है कि व्‍यय विभाग ने हमारे हर तर्क को नकारने का स्‍टैंडर्ड बना रखा है... तय तो यही हुआ था कि वित्‍त मंत्रालय का उत्‍तर मिलते ही इस मामले में बिना समय गंवाए अदालत का दरवाजा खटखटाया जाएगा....तो अब किस बात का इंतजार हो रहा है? समय बीत रहा है.....और हम सब हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं. एसोसिएशन से एक बार फिर निवेदन है कि अब इस बेहोशी से बाहर आकर अपनी पूरी ताकत इस मामले को न्‍यायालय में ले जाने पर लगाएं....इस विषय में हम पूरी क्षमताओं के साथ आपका साथ देंगे.

इस विषय में की जा सकने योग्‍य कार्रवाई पर सुझाव तथा अपनी प्रतिक्रियाओं से हमें अवश्‍य अवगत कराएं । धन्‍यवाद ।

Thursday 22 August 2013

4600 ग्रेड वेतन का मामला: एक ठोस रणनीति और तत्‍काल कार्रवाई की जरूरत.

मित्रो, हम सभी जानते हैं कि कनिष्‍ठ अनुवादकों हेतु 4600 रू ग्रेड वेतन का मामला अत्‍यंत संवेदनशील है एवं इस समय सीएसओएलएस सहित देश भर के अनुवादक इस मामले में जल्‍द से जल्‍द किसी सकारात्‍मक परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे हैं । परंतु हाल ही में इस विषय में कुछ डवलपमेंट हुई हैं जिन्‍हें जानना और समझना अनुवादकों के लिए अपरिहार्य है. क्‍योंकि किसी भी अगले कदम को उठाने से पहले हमें यह समझना आवश्‍यक है कि हम कहां गलती कर रहे हैं....हमसे कहां चूक हो रही हैं....और अगले प्रयासों में किन सावधानियों की आवश्‍यकता है. इस मामले के संबंध में एक पोस्‍ट अनुवादक मंच के संचालकों द्वारा 1 अगस्‍त, 2013 को सीएसओलएस की फेसबुक कम्‍यूनिटी में पोस्‍ट की थी. जिसके प्रत्‍युत्‍तर में अभी तक केन्‍द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने अपना पक्ष प्रस्‍तुत नहीं किया है न ही कोई भावी रणनीति प्रस्‍तुत की है. उस मूल पोस्‍ट का संपादित अंश आप सबके लिए यहां प्रस्‍तुत किया जा रहा है ।
- मोडरेटर

हाल ही में एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने कनिष्‍ठ अनुवादकों हेतु 4600 रू ग्रेड वेतन संबंधी एक दुखद समाचार बहुत हल्‍के से अपने नए ब्‍लॉग पर अपनी पहली पोस्‍ट में संवर्ग के साथियों से शेयर किया था. और उससे भी दुखद यह है कि एसोसिशन के पदाधिकारी पूरे संवर्ग को इस मुद्दे पर अभी भी गुमराह कर रहे हैं. इधर कुछ अनुवादकों ने वित्‍त मंत्रालय और राजभाषा विभाग की ख़ाक छानी और कुछ वरिष्‍ठ अधिकारियों से सीधे बातचीत कर वस्‍तुस्थिति का पता लगाने की कोशिश की. हमें अपने सूत्रों से इस संबंध में पहले ही जान‍कारियां मिल रही थीं परंतु फिर भी एक उम्‍मीद थी कि कम से कम अब तो एसोसिएशन के पदाधिकारी सच को स्‍वीकार करते हुए अनुवादकों के सामने आएंगे और कोई ठोस रणनीति बनाकर इस गंभीर मुद्दे पर आगे कार्य करेंगे. परंतु सच बहुत कड़वा है. आइए समझें कि मामला क्‍या है. 

एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने दिनांक 26 जुलाई, 2013 को अपने नए ब्‍लॉग पर निम्‍न पंक्तियों में इस मुद्दे पर अपडेट दी है : 

'Granting Grade Pay of Rs. 4600/- to Junior Hindi Translators-

The matter having been represented by the Association and initially rejected by Deptt. of Expenditure, it has once again been referred to Deptt. of Expenditure for examination after this Association's rigorous persuasion.' 

गौरतलब है कि कनिष्‍ठ अनुवादकों हेतु 4600 रू ग्रेड वेतन का मामला जनवरी, 2013 में सचिव महोदय के साथ हुई एक बैठक में एसोसिएशन ने उन्‍हें सौंपा था. ये घोर आश्‍चर्य की बात थी कि उस बैठक के बाद पदाधिकारियों के संज्ञान में कभी भी इस मामले का फॉलो अप नहीं किया गया....हम लगातार इस संबंध में अध्‍यक्ष श्री दिनेश कुमार सिंह से इस विषय में पूछताछ करते रहे मगर हर बार टालमटोल के साथ जवाब दिए गए. यहां तक कि इस मामले की फाइल वित्‍त मंत्रालय में पहुंचने के बाद अध्‍यक्ष इस मामले को किस प्रकार फॉलो अप कर रहे थे और उन्‍हें क्‍या जानकारियां मिल रही थीं, हमें अथवा कार्यकारिणी को नहीं बताया गया. (आपको स्‍मरण ही होगा कि जनवरी से लेकर 11 जुलाई, 2013 तक एसोसिएशन की कोई बैठक की नहीं बुलाई गई). यह हमारे लिए बहुत आश्‍चर्य की बात थी कि अध्‍यक्ष और महासचिव इस मामले पर इतनी लापरवाही क्‍यों बरत रहे थे ? खैर, हमें फिर भी विश्‍वास था कि वे इस मामले में किसी भी महत्‍वपूर्ण घटनाक्रम पर सभी पदाधिकारियों से अवश्‍य चर्चा करेंगे. परंतु ऐसा नहीं हुआ....इस दौरान इधर उधर से हमें ज्ञात हुआ कि महासचिव श्री अजय कुमार झा कुछ लोगों के आगे इस बारे में स्‍वीकार चुके हैं कि यह फाइल व्‍यय विभाग, वित्‍त मंत्रालय द्वारा टर्न डाउन की जा चुकी है. हमें सुनकर यकीन नहीं हुआ क्‍योंकि हमें विश्‍वास था कि ऐसा होने पर दोनों पदाधिकारी अवश्‍य ही कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर सभी विचार-विमर्श कर आगे की रणनीति तय करेंगे. परंतु इस ख़बर के आने के डेढ़ माह बाद तक कोई कार्यकारिणी की बैठक नहीं बुलाई गई.

और जब 11 जुलाई, 2013 को बैठक बुलाई भी गई तो उस बैठक में हमारे और लगभग सभी कार्यकारिणी सदस्‍यों ने पिछले 6 माह के डवलपमैंट पर अपडेट जाननी चाही तो महासचिव श्री अजय कुमार झा 'बताने के लिए कोई अपडेट नहीं है' कह कर बैठक से उठ लिए. हमारे बार-बार आग्रह पर भी वे किसी भी मुद्दे पर वे कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थे. चूंकि, 4600 ग्रेड वेतन मामले में हम उनके द्वारा कुछ लोगों को दी गई सूचना के बारे में सशंकित थे इसलिए जब जोर देकर इस मामले का सच बताने का दबाव दिया तो उन्‍होंने बताया कि यह फाइल टर्न डाउन हो चुकी है. यह पूरी कार्यकारिणी के लिए दुख और आश्‍चर्य का विषय था कि इतने महत्‍वूर्ण घटनाक्रम पर वे पिछले डेढ माह से चुप्‍पी साधे बैठे थे. बहाना दिया गया कि अभी लिखित में वित्‍त मंत्रालय से कुछ नहीं आया है.....हम पुन: पूछना चाहते हैं कि ऐसे संवेदनशील मामलों को पूरी तरह ताबूत में दफन होने के बाद ही कुछ किया जाता है क्‍या? अगर उन्‍हें कहीं से यह उडती ख़बर भी हाथ लगी थी तो कम से कम साथी पदाधिकारियों अथवा कार्यकारिणी के साथ संभावित स्थिति पर चर्चा कर आगे की रणनीति तैयार की जा सकती थी. इस सब को छोडिए.....इससे भी अधिक आश्‍चर्य और दुख की बात यह थी कि 11 जुलाई, 2013 को भी हमारे दोनों वरिष्‍ठ पदाधिकारियों के पास इस मामले में कोई भावी रणनीति अथवा योजना नहीं थी. यह वह क्षण था जब दोनों पदाधिकारी पूरे अहंकार के साथ हर प्रश्‍न को टाल रहे थे और एक तरह से कार्यकारिणी को धता बता रहे थे और ये बैठक बिना किसी नतीजे के समाप्‍त हुई. साफ जाहिर था कि हमारे पदाधिकारी इस मुद्दे के प्रति संवेदनशील नहीं हैं. यही वह मोड़ था जहां हमारा पिछले 6 माह का धैर्य जवाब दे चुका था. हम इसी बैठक में अपने त्‍यागपत्र देने की बात कह कर उठे. हम देख चुके थे इस प्रकार एक संवेदनशील मुद्दा अकर्मण्‍यता की भेंट चढ़ता जा रहा है. 

कुछ पदाधिकारियों और सदस्‍यों के इस्‍तीफों ने शायद थोड़ा दबाव बनाया हो जिससे तुरंत इन पदाधिकारियों ने संयुक्‍त सचिव महोदया के साथ एक बैठक की और अगली बैठक में कार्यकारिणी के सदस्‍यों को कुछ मोटी मोटी सूचनाएं दी गईं. हमें देखकर अच्‍छा लगा कि चलो कम से कम अब जागे तो अभी सवेरा. और अब नए शुरू किए गए ब्‍लॉग की पहली पोस्‍ट में कहा गया कि

'Granting Grade Pay of Rs. 4600/- to Junior Hindi Translators-
The matter having been represented by the Association and initially rejected by Deptt. of Expenditure, it has once again been referred to Deptt. of Expenditure for examination after this Association's rigorous persuasion.' 

मगर ये मीठी गोली हमें हजम नहीं हुई. 

इस मीठी गोली का दूसरे शब्‍दों में साफ अर्थ यह है कि अनुवादकों को विश्‍वास दिलाया जा रहा है कि इस विषय में एसोसिएशन के 'रिगरस पर्सुएशन' से यह मामला दोबारा वित्‍त मंत्रालय को भेजा जा रहा है. हमें यहीं शक हुआ कि वित्‍त मंत्रालय ने जिस मामले पर अपना फैसला देने में 6 माह लगाए हों और एसोसिएशन की मांग को ठुकरा दिया हो उसी मामले पर दोबारा वह क्‍यों विचार करेगा. एक ही प्रस्‍ताव पर बार-बार विचार करने की प्रथा भारत सरकार में हमने तो नहीं सुनी थी. दूसरे, एसोसिएशन ने यह भी बताने की जहमत नहीं उठाई कि व्‍यय विभाग ने इस मामले को किस आधार पर ठुकराया है ? वह कौन सा तर्क था जिसके आगे एसोसिएशन के सारे तर्क काम न कर सके. यह जानना अनुवादकों के लिए बहुत आवश्‍यक है ताकि ग्रेड वेतन के लिए इस लड़ाई के अगले चरणों के लिए और मजबूती से कार्य किया जा सके. और एक घड़ी के लिए मान भी लें कि यह फाइल फिर से व्‍यय विभाग को भेजी भी जाती है तो क्‍या हम फिर से 6 महीने व्‍यय विभाग के उत्‍तर का इंतजार कर सकते हैं ? इधर सातवां वेतन आयोग की घोषणा हुई नहीं कि हम कुछ नहीं कर पाएंगे और फिर भविष्‍य में उसी तरह अपने हक के लिए लड़ते नज़र आएंगे जैसे आज हमारे संवर्ग के वरिष्‍ठ अधिकार 1986 से 1996 के बीच एसिस्‍टेंट से पैरिटी की मांग करते हुए अपने एरियर्स के लिए न्‍यायालयय में लड़ रहे हैं. 

एसोसिएशन की यह बात गले से नीचे नहीं उतर रही थी और हमने स्‍वयं मामले की पड़ताल की. वित्‍त मंत्रालय और राजभाषा विभाग के अधिकारियों के साथ दिन भर चली बैठकों के बाद सारी स्थिति हमारे सामने साफ हो गई. यह साफ हो चुका है कि

1. व्‍यय विभाग कनिष्‍ठ अनुवादकों हेतु 4600 रू की मांग को सिरे से ठुकरा चुका है. 

2. जिन अन्‍य अधीनस्‍थ कार्यालयों आदि में कनिष्‍ठ अनुवादकों को 4600 ग्रेड वेतन दिया गया है उनके संबंध में व्‍यय विभाग का कहना है कि इस संबंध में व्‍यय विभाग का कोई अनुमोदन नहीं लिया गया है और उन कार्यालयों में 4600 वेतन दिया जाना गलत है.

3. तब राजभाषा विभाग के अधिकारियों से हमारे यह पूछने पर क्‍या एसोसिएशन द्वारा दिए गए 4600 ग्रेड वेतन के प्रस्‍ताव को पुन: व्‍यय विभाग भेजा जा रहा है तो उन्‍होंने इस बात को सिरे से नकारा और उल्‍टा हमसे पूछा कि व्‍यय विभाग जब एक से अधिक बार इस मामले को ठुकरा चुका है तो इसे वहां बार बार भेजने का क्‍या औचित्‍य है? अनुवादक एसोसिएशन का कोई प्रस्‍ताव व्‍यय विभाग को दोबारा नहीं भेजा जा रहा है.
 
4. कुछ ऐसे अधीनस्‍थ कार्यालयों जिन्‍होंने अपने अनुवादकों को 4600 रू वेतन ग्रांट कर दिया था उन्‍हें राजभाषा विभाग पत्र भेज चुका है कि वित्‍त मंत्रालय के अनुसार ग्रेड वेतन 4200 ही है । साफ है कि जिन अधीनस्‍थ कार्यालयों में 4600 ग्रेड वेतन दिया गया है वहां के अनुवादकों से अब रिकवरी की जाएगी. 

हमारे पैरो के नीचे से जमीन निकल चुकी थी. और जो हम सुन रहे थे उस पर विश्‍वास नहीं कर पा रहे थे. और कुछ प्रश्‍न दिलोदिमाग को परेशान कर रहे थे : 

* पदाधिकारियों ने इस फाइल के टर्न डाउन होने की खबरों को अनुवादकों, एसोसिएशन के पदाधिकारियों और कार्यकारिणी से क्‍यों छिपाया?

* अभी भी पदाधिकारी अनुवादक साथियों को गुमराह क्‍यों कर रहे हैं ?

* एसोसिएशन के प्रतिवेदन पर व्‍यय विभाग ने क्‍या जवाब दिया है यह अनुवादकों को क्‍यों नहीं बताया जा रहा है ?

* मामले की सच्‍चाई जनता के समक्ष रखकर सबकी राय क्‍यों नहीं ली जा रही है ?

* क्‍या एसोसिएशन को यह लगता है कि मामले में कोई मैरिट नहीं है ?

* यदि ऐसा है तो एसोसिएशन स्थिति स्‍पष्‍ट क्‍यों नहीं कर रही है ताकि अनुवादक एसोसिएशन से उम्‍मीद लगा कर न बैठे रहें ? 

इसके बाद हमने विभिन्‍न विभागों में अपने विश्‍वस्‍त सूत्रों से और जानकारियां हासिल की तो पता चला कि अधिकारी एसोसिएशन ने कनिष्‍ठ अनुवादकों हेतु 4600 रू ग्रेड वेतन के संबंध में एक विस्‍तृत प्रतिवेदन सचिव महोदय को सौंपा है. संभव है कि रूटीन प्रोसेस के तहत इसे भी व्‍यय विभाग को भेजा जाए. अधिकारी एसोसिएशन की सदइच्‍छा प्रशंसनीय है. परंतु हम सबका विगत अनुभव बताता है कि व्‍यय विभाग से वही टका सा जवाब आएगा. तब प्रश्‍न उठता है कि ऐसी स्थिति में क्‍या किया जाए? 

अपने सीमित विवेक के आधार पर पूरे संवर्ग के अनुवादकों और विशेषकर अनुवादक एसोसिएशन के वर्तमान पदाधिकारियों से हाथ जोड़ कर निवेदन करना चाहूंगा कि अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. हमें इस मामले को बिना समय गंवाए कैट में ले जाना होगा. वित्‍त मंत्रालय के साथ प्रतिवेदन-प्रतिवेदन का खेल खेलना अब हमें मंहगा पडेगा......समय हाथ से निकल रहा है. हम चुनाव वर्ष में हैं और कभी भी वेतन आयोग का गठन घोषित हो सकता है..एक बार वेतन आयोग बैठ गया तो ऐसे सारे मामले वेतन आयोग को फॉरवर्ड कर दिए जाएंगे. इसलिए जो करना है अभी करना पडेगा. 

एसोसिएशन के पास कोई और रणनीति है तो कृपया अनुवादकों से तुरंत साझा करें अथवा अपना पक्ष स्‍पष्‍ट करें. 

(कृपया इस संबंध में अगले पोस्‍ट की प्रतीक्षा करें.....चूंकि एसोसिएशन ने आज 22 दिन बीतने के बाद भी अनुवादकों को उन तथ्‍यों से अवगत नहीं कराया है जिनके आधार पर एसोसिएशन का प्रतिवेदन ठुकराया गया है ....अतएव अब अनुवादक मंच उन सभी तथ्‍यों का खुलासा करने के साथ-साथ स्थिति की नए सिरे से समीक्षा भी करेगा. )

Sunday 18 August 2013

क्‍यों दिए एसोसिएशन के कुछ पदाधिकारियों ने अपने पदों से त्‍याग-पत्र ?

दोस्‍तो, पिछले पोस्‍ट से आप जान चुके हैं कि एसोसिएशन के पदाधिकारियों में से एक उपाध्‍यक्ष, दोनों संयुक्‍त सचिव और एक कार्यकारिणी सदस्‍य अपने पदों से त्‍याग-पत्र दे चुके हैं. इन पूर्व पदाधिकारियों के त्‍यागपत्र के संदर्भ में एसोसिएशन के कुछ वरिष्‍ठ पदाधिकारी अपनी गलतियों पर पर्दा डालने के लिए इधर-उधर तमाम तरह का दुष्‍प्रचार कर रहे हैं. दुर्भाग्‍यवश, इन दिनों उनकी शक्ति संवर्ग के हित में कार्य करने में कम और त्‍यागपत्र देने वाले पदाधिकारियों में दोष सिद्ध करने में ज्‍यादा खर्च हो रही है. ये बात और है कि वे आज तक त्‍यागपत्र देने वाले अपने साथियों द्वारा उठाए गए एक भी प्रश्‍न का उत्‍तर नहीं दे पा रहे हैं. इसलिए, हम मुद्दों पर चर्चा करना प्रारंभ करें इससे पहले ये समझना जरूरी है कि किन परिस्थितियों में उपर्युक्‍त पदाधिकारियों ने अपने पदों से इस्‍तीफा दिया था. जो साथी फेसबुक से नहीं जुड़े हैं वे इन पदाधिकारियों का पक्ष जानना चाह रहे हैं. इसलिए यहां, फेसबुक की सीएसओलएस कम्‍यूनिटी में पिछले दिनों इन पदाधिकारियों द्वारा स्‍वतंत्र रूप से डाले गए उनके त्‍याग-पत्रों की विषय-वस्‍तु को मात्र इसलिए साझा किया जा रहा है ताकि आप इन पदाधिकारियों का पक्ष से अवगत हो सकें. और इसके बाद सिर्फ और सिर्फ मुद्दों पर बात की जाएगी. इन पदाधिकारियों के त्‍यागपत्र सीएसओएलएस (https://www.facebook.com/groups/102662746540329/ में प्रकाशित होने के क्रमानुसार एवं तथानुरूप इस प्रकार हैं :   

श्री सौरभ आर्य, संयुक्‍त सचिव
प्रिय मित्रो
पिछले कुछ दिनों से यहां एसोसिएशन के कुछ पदाधिकारियों के त्याग-पत्र की चर्चा चल रही है। जहां तक मेरा संबंध है, यह सत्य है कि मैं दिनांक 19 जुलाई, 2013 को संयुक्त सचिव के पद से त्याग-पत्र दे चुका हूं। त्या‍ग-पत्र दिए जाने के उपरांत आज दिनांक 27 जुलाई, 2013 तक मैंने इस विषय में अपनी ओर से कोई टिप्पणी नहीं की । क्योंकि मैं अपने त्याग-पत्र को स्वीकृत किए जाने संबंधी औपचारिक सूचना की प्रतीक्षा में था । परंतु आज 8 दिन बीतने के बाद भी मुझे इस संबंध में कोई लिखित अथवा मौखिक सूचना नहीं दी गई है और अनुवादक साथियों के बीच तरह तरह की बयानबाजी की जा रही है। इसलिए स्पष्ट है कि यह त्या‍ग-पत्र स्वीकृत किया जा चुका है । संभवतया आप में से अधिकांश साथियों को एसोसिएशन में पदाधिकारियों और सदस्यों द्वारा त्याग-पत्र दिए जाने के संबंध में विभिन्न माध्यमों से जानकारी मिल चुकी होगी । क्योंकि इस दौरान मुझे आप में से बहुत से साथियों के फोन और संदेश प्राप्त हुए.... उस वक्त मैं अपने पद की औपचारिकताओं के चलते कुछ भी स्पष्ट रूप से कह पाने में असमर्थ था । आप सबने मुझे अपना प्रतिनिधि बनाकर एसोसिएशन में भेजा था अत: मैंने त्याग-पत्र क्‍यों दिया यह जानना आपका हक भी है और मेरा नैतिक दायित्व भी । परंतु आप सबके स्नेह, विश्वास और समर्थन ने मुझे वास्तव में शक्ति प्रदान की है । शायद आपका यही विश्वास और स्नेह ही वह संबल था जिसके दम पर मैं, कुछ अन्य पदाधिकारी और कार्यकारिणी सदस्य आज तक एसोसिएशन के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारियों की मनमानी और संवर्ग विरोधी आचरण का मौखिक और लिखित रूप में विरोध करते रहे । परंतु कुछ लोगों का अहंकार और हठधर्मिता सारी सीमाएं पार कर चुका था । ऐसा करते हुए भी हम संवर्ग के हितों को खतरे में पड़ने से नहीं बचा पा रहे थे । तब बेहतर था कि पदों को त्यागकर संगठन के बाहर रहकर संवर्ग के हितों के लिए कार्य किया जाए । अपने हाथों से लगाए गए पौधे का यह हश्र होता देखना वाकई दुखद था । परंतु यह एक कटु सत्य था जो एक कड़े फैसले की मांग करता था । लिहाजा त्याग-पत्र ही विकल्प था । मैं उन साथी पदाधिकारियों और कार्यकारिणी सदस्यों के जज़्बे को भी सलाम करता हूं जिन्होंने पदों के मोहपाश से ऊपर उठ कर संवर्ग के हित में त्याग-पत्र दिए हैं ।

दोस्‍तो, आप सभी के ई-मेल और फेसबुक संदेशों के अलग अलग उत्तर देने में शायद असमर्थ रहूं । अतएव एसोसिएशन के अध्यक्ष को संबोधित त्याग-पत्र का मसौदा आपसे साझा कर रहा हूं....जो शायद आपके कुछ सवालों के जवाब दे सके । मैं आपके हर प्रश्न का उत्तर देने के लिए तैयार हूं.....और आपको विश्वास दिलाता हूं कि भविष्य में भी सदैव अनुवादक साथियों के हित में कार्य करता रहूंगा ...और मुझे पूर्ण विश्वास है कि हम और अधिक कारगर हो सकेंगे । इसी प्रकार अपना स्नेह और विश्वास बनाए रखें।
सादर,
सौरभ आर्य
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सेवा में,                  
अध्यक्ष,
केन्द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोसिएशन,
नई दिल्ली ।

विषय : एसोसिएशन के संयुक्ते सचिव के पद से त्याग पत्र के संबंध में ।
महोदय,
निवेदन यह है कि मैं केन्द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोसिएशन के गत वर्ष संपन्न हुए चुनावों के उपरांत 17 जुलाई, 2012 से संयुक्त-सचिव के पद पर कार्यरत हूं । हम सबने मिलकर राजभाषा सेवा संवर्ग के लिए सेवा भाव से कार्य करने का संकल्प लेते हुए इन सार्वजनिक पदों को ग्रहण किया था। परंतु खेद का विषय है कि आपकी और महासचिव महोदय की कार्यशैली संगठन और संवर्ग की भावना के अनुरूप नहीं रही है। पारदर्शिता, टीम-भावना, जनहित को प्राथमिकता, कार्यों में तत्परता और साथी पदाधिकारियों को विश्वास में लेकर चलना आदि नदारद हैं। इस संबंध में, मैं और कई साथी पदाधिकारी समय-समय पर आपसे आग्रह करते रहे परंतु स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ । विगत 16 अप्रैल, 2013 को मैंने एसोसिएशन की उपाध्यक्ष श्रीमती विशाखा बिष्ट के साथ एक संयुक्त पत्र के माध्यम से आपसे संवर्ग के हितों से जुड़े कुछ प्रश्न पूछे थे जिनका उत्तर आपने अथवा महासचिव महोदय ने आज तक नहीं दिया है ।

यह सर्वविदित ही है कि बार-बार अनुरोध के बावजूद जनवरी, 2013 के उपरांत 'पूरे 6 माह तक' एसोसिएशन की कार्यकारिणी की कोई बैठक आयोजित नहीं की गई । तमाम अनुरोधों और सदस्यों के दबाव के बाद अंतत: 11 जुलाई, 2013 को कार्यकारिणी की बैठक आयोजित की गई । इस बैठक में, मैंने विगत बातों को भुला कर भविष्य में एसोसिएशन को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक पद्यति तैयार करने का अनुरोध किया । यह पुन: खेद का विषय था कि महासचिव एवं अध्यक्ष महोदय को लिखे गए एक व्यक्तिगत पत्र का उत्तर व्यक्तिगत रूप से देने की बजाए सार्वजनिक रूप से अनावश्यक बातों पर बहस की गई । इस पत्र से कार्यकारिणी के सदस्य किस प्रकार संबंधित थे ? यही नहीं, गत वर्ष एसोसिएशन के गठन के तुरंत बाद हमारे पास फंड न होने की स्थिति में कार्यकारिणी के सदस्यों द्वारा आपस में कुछ राशि एकत्र करने के निर्णय को भी मेरा व्यक्तिगत निर्णय ठहराने का प्रयास किया गया जिसे मौके पर ही कार्यकारिणी के सदस्यों ने खारिज कर दिया । इस प्रकार की कुचेष्टाएं पूर्व में भी की जाती रही हैं । महासचिव महोदय जानते हैं कि सत्य यह है कि वे स्वयं एसोसिएशन को अपनी सेवाएं देने में विफल रहे हैं और संगठन को इस लचर हालत में पहुंचाने के लिए वे स्वयं उत्तरदायी हैं । इस सबके बावजूद हम सभी सदस्य और पदाधिकारी भविष्य की ओर आशान्वित रहे । परंतु आप दोनों पदाधिकारियों का तानाशाहीपूर्ण रवैया बैठक के अंत तक बरकरार रहा और सदस्यों के बार-बार अनुरोध पर भी पिछले 6 माह के दौरान विभिन्न मुद्दों पर न केवल कोई अपडेट देने से मना किया बल्कि कई संवेदनशील मुद्दों से संबंधित जानकारियों को भी छिपाने का प्रयास किया गया । आप दोनों के पास इस बार भी कार्यकारिणी के वाजिब प्रश्नों के जवाब नहीं थे, न किसी मुद्दे पर ठोस जानकारी, न कोई भावी रणनीति और न ही कोई विजन ।

राजभाषा संवर्ग और अनुवादकों की स्थिति में सुधार के लिए हमारा देखा गया स्वप्न, अब खतरे में हैं। हमें राजधानी की रफ़तार से काम करने की जरूरत थी मगर हम बैलगाडी की तरह भी नहीं चल सके और यदि कुछ पदाधिकारियों और सदस्यों ने प्रयास करने चाहे तो उन्हें अतिमहत्वाकांक्षी कहा गया । हाथ पर हाथ धरे बैठने से अतिमहत्वाकांक्षी होना शायद बेहतर था । जो संवर्ग वर्षों से उपेक्षा और अव्यवस्था का शिकार रहा हो वहां उसकी प्रतिनिधि एसोसिएशन इस प्रकार शिथिल कैसे हो सकती है ? एसोसिएशन लगभग हर मोर्चे पर विफल हो रही है, और अब यहां एक विशेष किस्म की गुटबंदी और नकारात्मरक दृष्टिकोण हावी हो चुके हैं और जनहि‍त के तमाम मुद्दे इस कार्यशैली के चलते खतरे में पहुंच चुके हैं । अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए अपने आलोचकों पर मिथ्या आरोप लगा कर आप सच को कुछ दिन के लिए छिपा सकते हैं....परंतु सत्य सदैव सत्य ही रहेगा ।

उपर्युक्त तथ्यों और घटनाक्रम के आलोक में, अब मैं आपके तानाशाहीपूर्ण रवैये, संगठन विरोधी और संवर्ग के हितों से खिलवाड़ करने वाले आचरण के विरोधस्वरूप अपने पद से त्याग-पत्र देता हूं । यह निस्संदेह मेरे लिए एक दुखद क्षण है परंतु मैं संवर्ग के साथियों को धोखा देने वाले ऐसे संगठन का हिस्सा नहीं बन सकता । इस संगठन में मैं, किसी पद की लालसा के लिए नहीं बल्कि संवर्ग की सेवा के उद्देश्य मात्र से आया था और वह मैं आगे भी जारी रखूंगा । कृपया इस त्याग-पत्र को स्वींकार कर मुझे अनुगृहित करें।
भवदीय,

(
सौरभ आर्य)
संयुक्त सचिव,
केन्द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोसिएशन, नई दिल्ली ।
दिनांक : 19 जुलाई, 2013
नई दिल्ली ।

 
श्रीमती विशाखा बिष्‍ट, उपाध्‍यक्ष 
Dear friends!!
Since I myself hadnt said a word about my resignation from the post of Vice-president of CSOLS so here I want to tell u all that I have resigned almost 10 days ago. I was firm in my decision that I will not rejoin this association once I resign since I had this thought in my mind that it might be possible that the President/Gen Secy may ask me to think over my decision once more but u will be surprised to know that they didnt do any such thing even for namesake as if they their much awaited wish was fulfilled. Since Saurabh and I were the persons who used to question them incessantly about efforts being done to tackle the burning issues hence they have become the most happy people as we have left the association. But it is only their misconception if they think that they will be left to do whatever they want to.

Now, we have also become the public so we are going to question them about each n every step being taken to address the most important issues like 4600/- GP, promotion of ST to AD, RR etc.







श्री राकेश श्रीवास्‍तव 
आदरणीय अध्‍यक्ष महोदय एवं महासचिव महोदय,
सप्रेम नमस्‍कार!
आशा है आप कुशल से हैं। विशेष यह है कि मैं एसोसिएशन में असहजता महसूस कर रहा हूं और समय देने में भी स्‍वयं को असमर्थ पा रहा हूं। इस वजह से इस्‍तीफा देना चाहता हूं।

मैं यह साफ तौर पर स्‍वीकार करना चाहूंगा कि मेरी इस्‍तीफा का संबंध विशाखा जी, पूनम जी और सौरभ जी के इस्‍तीफा से है। सौरभ जी और विशाखा जी के साथ एसोसिएशन के काम के संबंध में मैं एक अंडरस्‍टैंडिंग शेयर करता था और एसोसिएशन में उनका न होना मेरे लिए दुखद और असहज है।

इस बारे में मैं हमेशा साफ रहा कि हां सौरभ जी और विशाखा जी के साथ कैडर के लिए काम करने को लेकर एक दृष्टि हमने शेयर की है। इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि सौरभ जी और विशाखा जी के साथ मेरा कोई पोलिटिकल एसोसिएशन है और मैंने यह भी हमेशा कहा कि सौरभ जी और विशाखा जी या किसी और द्वारा उठाई गई कोई बात को हल करने का मंच एसोसिएशन की बैठक है, एसोसिएशन की बैठक के मंच से बाहर कुछ लोगों को साथ लेकर और कुछ लोगों को छोड़कर बनने वाले गुट नहीं। सौरभ जी के साथ बनने वाला मेरा साझा एक अंडरस्‍टैंडिंग है कोई गुट नहीं। सौरभ जी या किसी की बात अगर बैठक्‍ के मंच पर गलत ठहराई जाती है तो मैं बैठक के नतीजों के साथ होऊंगा ऐसा मैंने आपको लगातार कम्‍यूनिकेट किया। कोई भी व्‍यक्ति या आपस में अंडरस्‍टैंडिंग शेयर करने वाले कुछ लोग एसोसिएशन से ऊपर नहीं हैं। मुझे अफसोस इस बात का है कि आपने मेरी बातों पर विश्‍वास नहीं किया।

आपने मेरी बातों पर विश्‍वास नहीं किया मेरे यह मानने की मेरे पास वजहें साफ हैं। जब सौरभ जी और विशाखा जी ने एसोसिएशन के काम काज के संबंध में शिकायतों से भरा पत्र लिखा तो यह उनकी समझ थी। उनकी समझ के साथ मेरा साझा भी था पर इससे भी ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण यह था कि मुझे आपपर विश्‍वास था कि आप पहल करके शिकायतों को दूर कर देंगे। आपके पास आपकी वजहें भी हो सकती हैं। ऐसा समझते हुए मैंने आपको पत्र लिखा था जिसका आपने कोई उत्‍तर नहीं दिया। और जब मैंने अपने पत्र का हवाला देते हुए आपसे स्‍वतंत्र रूप से बात करनी चाही तो आपने इस पूर्वग्रह के साथ ही मुझसे बात की कि हमने कोई गुट बना रखी है। आपपर अलग से मेरा जो विश्‍वास था और अपेक्षा थी उसको अलग से आपने तरजीह न दी।

मैंने आपपर विश्‍वास किया इस बात पर आपने विश्‍वास नहीं किया यह मानने की एक दूसरी वजह भी मेरे सामने आई। जिस दिन विशाखा जी पूनम जी और सौरभ जी ने इस्‍तीफा दिया उस दिन ही शाम में मेरी आपसे मेरे एक व्‍यक्तिगत काम के सिलसिले में फोन पर बात हुई थी। आपने उनके इस्‍तीफे के बारे में भी बताया और यह कहा कि इस्‍तीफा मानूं या न मानूं यह आपका प्रीरोगेटिव है। यह सुनकर मुझे अच्‍छा लगा और मैं इस इंतजार में था कि आप उन्‍हें वापस जोड़ने की कोई पहल करेंगे। आज काफी‍ दिन बीतने के बाद भी ऐसी कोई पहल नहीं हुई है।

उक्‍त कोई पहल तो न ही हुई साथ ही पता चला कि एसोसिएशन का नया वेबसाइट वगैरह आरंभ किया गया है। जाहिर है अगर ऐसा हुआ है तो इस बारे में कहीं कोई निर्णय लिया गया होगा। निर्णय की इस प्रक्रिया के बारे में मुझे कोई सूचना नहीं मिली। इन सब बातों से मैं तो यही समझ पा रहा हूं कि सौरभ जी के साथ मेरी अंडरस्‍टैंडिंग को सहज रूप से लेने और मुझे एसोसिएशन के साथ बनाए रखने में आपकी रूचि नहीं है।

उक्‍त बातों के आलोक में मैं इस्‍तीफा देना चाहता हूं। कृपया मेरा इस्‍तीफा स्‍वीकार करने का कष्‍ट करें। कैडर और एसोसिएशन के संबंध में किसी भी सेवा के लिए मैं कार्यकर्ता के रूप में हमेशा उपलब्‍ध रहूंगा। मुझे व्‍यक्तिगत रूप से कोई शिकायत नहीं है, कई बार ऐसा होता है कि दो लोग एक दूसरे का परस्‍पेक्टिव समझ नहीं पाते।
सादर,

राकेश श्रीवास्‍तव
28-07-13





सुश्री पूनम विमल, कार्यकारिणी सदस्‍य
Hello Freinds,
I have also resigned from the Post of Executive Member, Central Secretariat Official language Association w.e.f. 19.07.2013

सेवा में,
अध्यक्ष,
केन्द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोसिएशन,
नई दिल्ली ।

विषय : एसोसिएशन के सदस्यकार्यकारिणी के पद से त्याग पत्र के संदर्भ में ।

महोदय,एसोसिएशन की कार्यकारिणी इस संगठन की सबसे महत्वपूर्ण इकाई है । परंतु पिछले एक वर्ष का अनुभव बताता है कि कार्यकारिणी महज रबर स्टैंप बन कर रह गई है । यहां तक कि कार्यकारिणी द्वारा पूर्व में लिए गए निर्णय के बावजूद पिछले 6 माह तक कार्यकारिणी की बैठकों का आयोजन नहीं किया गया । न ही इस दौरान एक सदस्य के नाते मुझे कोई सूचनाएं दी गईं न ही किसी निर्णय में मेरी राय ली गई ।

यह एक सच्चाई है कि आज यह एसोसिएशन एक संगठन के रूप में अपने उद्देश्यों को हासिल करने में असफल हो रहा है । मैं देख रही हूं कि पदाधिकारियों के मध्यय कोई समन्वय नहीं है और कुछ पदाधिकारी लंबे समय से कुछ बातों को लेकर आपत्ति जाहिर करते रहे हैं । कमोबेश ऐसी ही बातें कार्यकारिणी के भी कुछ सदस्यों ने उठाई थीं । परंतु कोई सुधार न हुआ ।

दिनांक 11.7.2013 को हुई एसोशिएशन की बैठक में कोई ऐसी जानकारी आपके द्वारा हमें प्रदान नहीं की गई कि एसोशिएशन की क्या -क्या उपलब्धियां है अथवा आगे क्या रणनीतियां है। इसलिए मेरा एसोशिएशन का सदस्यश होना न होना एक बराबर है। अत: मैं एसोशिएशन के सदस्य पद से त्याग-पत्र दे रही हूं।

भवदीय,

(पूनम विमल)
सदस्य,कार्यकारिणी,केन्द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोसिएशन

दिनांक 19 जुलाई, 2013



इन चारों पूर्व पदाधिकारियों का समवेत रूप में कहना है कि ...  हमारा ध्‍येय किसी चुनी गई प्रतिनिधि संस्‍था को गिराना नहीं है...हां , उसके हर अच्‍छे बुरे कार्यों की आलोचना के अपने लोकतांत्रिक अधिकार का हम खुलकर प्रयोग करेंगे और हर मामले में किसी भी आवश्‍यक कार्रवाई के लिए इसी प्रतिनिधि संस्‍था से अनुरोध करेंगे और उन्‍हें पहले कार्रवाई का मौका देंगे. परंतु यदि यह संस्‍था कार्रवाई में विफल रही तो हमें अपने स्‍तर पर कार्रवाई का पूरा हक होगा. 

Thursday 15 August 2013

स्‍वतंत्रता दिवस की शुभकामनाओं सहित ब्‍लॉग देशभर के अनुवादकों को समर्पित, नया नाम 'अनुवादक मंच'

प्रिय मित्रो, सर्वप्रथम आप सभी को स्‍वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

आज इस ब्‍लॉग पोस्‍ट के माध्‍यम से आपको सूचित करना चा‍हते हैं कि अब यह ब्‍लॉग केन्‍द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोसिएशन का आधिकारिक ब्‍लॉग नहीं है. न ही ई-मेल आई डी translatorsofcsols@yahoo.in का एसोसिएशन से किसी प्रकार का संबंध है. आज स्‍वतंत्रता दिवस के अवसर पर यह ब्‍लॉग देशभर के सभी अनुवादक साथियों को समर्पित किया जा रहा है. आज से और अभी से इस ब्‍लॉग का नया नाम अनुवादक मंच होगा. अब तक इस ब्‍लॉग से जुड़े सदस्‍य भविष्‍य में इसके सदस्‍य बने रहने अथवा इसकी सदस्‍यता छोड़ने के लिए पूरी तरह स्‍वतंत्र रहेंगे.

(ब्‍लॉग के स्‍टेटस में परिवर्तन की पीछे की पूरी कहानी को जानना और समझना इस ब्‍लॉग से जुड़े सभी अनुवादक साथियों के लिए आवश्‍यक है इसीलिए संक्षेप में अब तक के घटनाक्रम और भविष्‍य की कार्यनीति पर जानकारी नीचे दी जा रही है)

दोस्‍तो, आप सभी जानते हैं इस ब्‍लॉग की शुरूआत मई 2012 में की गई थी. उद्देश्‍य था कि वर्षों से बिखरे अनुवादकों को एक मंच पर लाया जाए, उनके बीच सूचनाओं का त्‍वरित प्रवाह सुनिश्चित किया जाए, उनसे संबंधित विषयों पर चर्चाएं की जाएं. इसी क्रम में 17 जुलाई, 2012 के बाद चुनाव जीतने के बाद इस ब्‍लॉग की सफलता को देखते हुए इसे एसोसिएशन का आधिकारिक ब्‍लॉग बनाया गया जहां से एसोसिएशन के क्रियाकलापों और महत्‍वपूर्ण सूचनाओं को अनुवादकों से साझा किया जाने लगा. परंतु यह जगजाहिर है कि यह ब्‍लॉग पिछले 6 माह से पूरी तरह खामोश था....इसका एकमात्र कारण एसोसिएशन के अध्‍यक्ष द्वारा किसी भी प्रकार की सूचनाओं का न दिया जाना था. दूसरी ओर, मोडरेटर महज उन्‍हीं सूचनाओं को इस ब्‍लॉग पर प्रकाशित कर सकता था जिन्‍हें अध्‍यक्ष श्री दिनेश कुमार सिंह, वरिष्‍ठ अनुवादक का अनुमोदन प्राप्‍त हो. मोडरेटर ने कई बार सूचनाएं होते हुए भी अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाना मुनासिब नहीं समझा और अध्‍यक्ष के प्रति भरोसा बनाए रखा कि वे शीघ्र ही सूचनाएं साझा करेंगे परंतु इस विश्‍वास का उत्‍तर एक अजीब किस्‍म की हठधर्मिता से दिया गया जिसके तहत अध्‍यक्ष और महासचिव ने पूरे 6 माह तक एसोसिएशन की कार्यकारिणी की बैठक ही नहीं बुलाई और इस विषय में चर्चा से भागते रहे. और जब महीनों की जद्दोज़हद के बाद 11 जुलाई, 2013 को बैठक आयोजित हुई तब भी अध्‍यक्ष श्री दिनेश कुमार सिंह, वरिष्‍ठ अनुवादक एवं महासचिव श्री अजय कुमार झा, वरिष्‍ठ अनुवादक ने भरी कार्यकारिणी के बीच किसी भी प्रकार की सूचनाएं न होने की बात की और जानबूझकर महत्‍वपूर्ण सूचनाओं को छिपाने का प्रयास किया. नतीजतन पिछले कई माह से आपसे कोई सूचना साझा न की जा सकी. परंतु इस दौरान एसोसिएशन के अंदर रहते हुए भी अनुवादकों के सूचना के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए हम कुछ अनुवादकों की कोशिशें जारी रहीं और वरिष्‍ठ पदाधिकारियों द्वारा इस ब्‍लॉग को छीने जाने के सभी प्रयासों का पुरजोर विरोध भी किया. जनता से संवाद करने के नाम पर केन्‍द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोसिएशन के अध्‍यक्ष और महासचिव अब एक नया ब्‍लॉग प्रारंभ कर चुके हैं. जहां वे जनता से सूचनाएं साझा करने के नाम पर निरंतर उन्‍हें गुमराह कर रहे हैं और उस ब्‍लॉग पर पोस्‍ट की जाने वाली सामग्री की प्रतिक्रिया में आने वाली टिप्‍पणियों तक को अपनी सुविधानुसार प्रकाशित कर रहे हैं. अनुवादकों के बीच भ्रामक सूचनाएं देने और उन्‍हें गुमराह करने वाले कुछ प्रयासों को फेसबुक पर सीएसओएलएस कम्‍यूनिटी में साबित किया जा चुका है....जबकि शेष का खुलासा अब इस मंच से किया जाएगा. इस सारी कवायद के पीछे हमारा उद्देश्‍य अध्‍यक्ष और महासचिव का त्‍यागपत्र मांगना नहीं है बल्कि उन्‍हें अपने दायित्‍वों के प्रति संजीदा और जवाबदेह बनाना है. हमारी कामना है कि वे आने वाले कई बरसों तक अपने पदों पद बने रहें मगर शर्त एक ही होगी....अनुवादकों के साथ धोखा और गंभीर विषयों में लापरवाही को स्‍वीकार नहीं किया जाएगा. ऐसे प्रयासों का हर संभव तरीके से विरोध किया जाएगा.

      विभिन्‍न फोरमों में अनुवादकों द्वारा उठाए जा रहे किसी भी प्रश्‍न का कोई उत्‍तर नहीं दिया जा रहा है. नतीजा यह है कि अब अनुवादक, एसोसिएशन के चंद पदाधिकारियों के रहमोकरम पर निर्भर हैं....वे सूचनाएं दे दें तो ठीक है, न दें तो बार-बार अनुरोध करने, चीखने चिल्‍लाने का बहरे कानों पर कोई असर नहीं है. अगर झूठी सूचनाएं दी जा रही हैं तो कहीं दूर बैठे अनुवादकों के लिए उन सूचनाओं की सत्‍यता की जांच की कोई वैकल्पिक व्‍यवस्‍था नहीं है .....और इसी विकल्‍पहीनता का फायदा उठा कर एसोसिएशन के पदाधिकारियों द्वारा अपनी अकर्मण्‍यता और त्रुटिपूर्ण कार्यशैली पर पर्दा डाल कर निरंतर अनुवादकों के भविष्‍य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. उपर्युक्‍त पदाधिकारियों के इसी प्रकार के अहंकार, हठधर्मिता, त्रुटिपूर्ण कार्यशैली और गंभीर मुद्दों पर अकर्मण्‍यता के विरोध में एसोसिएशन के कुछ पदाधिकारी और सदस्‍य अपने पदों से त्‍याग-पत्र दे चुके हैं.

एसोसिएशन का नया ब्‍लॉग शुरू होने के बाद इस ब्‍लॉग के मोडरेटर होने के नाते हमने इस ब्‍लॉग को बंद कर देने के बारे में विचार किया था परंतु आप में से ही तमाम साथियों ने इस ब्‍लॉग को फिर से सक्रिय किए जाने को लेकर आग्रह किया. इस ब्‍लॉग को आप समस्‍त साथियों का दिया गया स्‍नेह भी हमें पुन: सोचने पर विवश कर रहा था. काफी विचार विमर्श के बाद इसे एक बार फिर से सक्रिय करने का निर्णय किया गया है. तय रहा कि अब से यह ब्‍लॉग एसोसिएशन के ऐसे सभी प्रयासों की न केवल कलई खोलेगा बल्कि अनुवादकों को अपनी बात एक सार्वजनिक मंच पर रखने का पूरा मौका प्रदान करेगा. लोकतंत्र में अगर मजबूत विपक्ष न हो और जनता जागरूक न हो तो सत्‍ता निरंकुश और तानाशाह हो जाती है...मगर अब यह ब्‍लॉग और इससे जुड़ा हर अनुवादक सामूहिक रूप से एक सशक्‍त विपक्ष की कमी को पूरा करेंगें और अपने हक की आवाज को पुरजोर तरीके से उठाया जाएगा. एसोसिएशन के पदाधिकारी किसी भी प्रकार कार्य करने या न करने, अनुवादकों के सवालों के जवाब देने अथवा न देने के लिए आजाद हैं, परंतु ऐसा करते हुए भी उन्‍हें अनुवादकों के प्रश्‍न पूछने और आलोचना के लोकतांत्रिक अधिकार को छीनने या उस पर प्रश्‍नचिन्‍ह लगाने का हक नहीं है.

    दोस्‍तो, एसोसिएशन की विफलताओं का रोना रोकर हमें कुछ हासिल नहीं होगा, हम हर पल गंभीर मुददों पर कार्रवाई में उनके साथ हैं, उन्‍हें अपनी राय से निंरतर उन्‍हें अवगत कराएंगे और तब भी यदि एसोसिएशन उचित कार्रवाई नहीं करेगी, तो वे समस्‍त काम हम अनुवादकों को स्‍वयं अपने हाथों में लेने होंगे. हम एसोसिएशन के पदाधिकारियों से वायदा करते हैं कि कार्रवाई का पहला मौका आपको दिया जाएगा.....हमारा कोई भी कदम मात्र हमारी विवशता ही होगा. 

      अभी तक इस ब्‍लॉग से खास तौर पर केन्‍द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग के अनुवादक ही जुड़े थे परंतु कुछ मामले ऐसे हैं जिनसे देश भर के अनुवादक समान रूप से जुड़े हुए हैं. इसलिए आप सभी का स्‍वागत है. ब्‍लॉग के भावी संचालन से जुड़ी कुछ बातें इस प्रकार हैं:

1.   चूंकि इस ब्‍लॉग का प्रमुख उद्देश्‍य अनुवादकों के सूचना के अधिकार की रक्षा और पारदर्शिता है अतएव यदि आपके पास भी कोई ऐसी सूचना अथवा तथ्‍य है जो साथी अनुवादकों के लिए जानना आवश्‍यक है तो कमेंट सैक्‍शन में खुल कर साझा करें.

2.   यदि किसी सूचना को साझा करते समय आप अपना परिचय गुप्‍त रखना चाहते हैं तो यह सूचना आप हमें translatorsofcsols@yahoo.in पर भेज सकते हैं....आपका नाम और परिचय गुप्‍त रखा जाएगा.

3.   यदि किसी विषय विशेष पर आप अपना लेख इस ब्‍लॉग पर प्रकाशित कराना चाहते हैं तो आपका स्‍वागत है. कृपया अपना लेख अपने चित्र के साथ translatorsofcsols@yahoo.in पर भेज दें. मोडरेटर टीम द्वारा चयन के उपरांत इसे ब्‍लॉग पर आपके चित्र और परिचय के साथ प्रकाशित किया जाएगा. 

4.   आपत्तिजनक, अश्‍लील अथवा अमर्यादित भाषा का प्रयोग करने पर संबंधित सदस्‍य की सदस्‍यता तत्‍काल रद्द कर दी जाएगी. यह आपका अपना मंच है अतएव इसकी गरिमा का ख्‍याल भी रखें ।

       आज हम आजादी की सालगिरह मना रहे हैं पर एक अनुवादक के तौर पर हमें बहुत सी चीजों से आजाद होना होगा...हमें आज आजाद होना होगा खुद से जुड़े मुद्दों पर अनभिज्ञता सेआजाद होना होगा मन में भीतर छिपे बैठे कुछ छोटे छोटे डरों से, आजाद होना होगा एसोसिएशनों पर निर्भर रहने की आदत से, अपने निजी स्‍वार्थों से, आजाद होना होगा चुप बैठने की वर्षों की आदत से....क्‍योंकि अक्‍सर चुप को मजबूरी समझ लिया जाता है. पुन: स्‍वतंत्रता दिवस की ढ़ेरों शुभकामनाएं.  

आपकी प्रतिक्रियाओं, सुझावों और विचारों का स्‍वागत है.