कनिष्ठ अनुवादकों के ग्रेड वेतन मामले में आज कैट की दिल्ली शाखा में सुनवाई की जानी थी. यह मामला फुल बैंच के समक्ष सुनवाई के लिए 21 वें नंबर पर निर्धारित था. दोपहर होते-होते इससे पूर्व के कई मामलों में बहस काफी लंबी चलने के कारण आज कुल 18 मामले ही सुने जा सके और माननीय न्यायधीशों ने शेष मामलों को अन्य किसी तारीख पर सुने जाने का अादेश दिया. आज अन्य मामलों में जब अक्तूबर तक की तारीखें दी जाने लगीं तो अनुवादकों की अोर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने दखल करते हुए माननीय न्यायधीशों से पांच मिनट का समय मांगा और मामले पर अपने विचार रखे. न्यायधीशों ने गंभीरता से विषय को सुना और विषय की गंभीरता को देखते हुए अनुवादकों के अधिवक्ता द्वारा की गई अपील पर निकट की तारीख देते हुए 12 फरवरी, 2015 को मामले की सुनवाई तय कर दी है. आशा है आगामी तारीख पर मामले में बहस हो सकेगी.
यह ब्लॉग केन्द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोसिएशन का आधिकारिक ब्लॉग है। संपर्क : csolstoa@gmail.com
Wednesday, 28 January 2015
Thursday, 15 January 2015
वरिष्ठ अनुवादक पद पर पदोन्नति हेतु आवश्यक दस्तावेज विभाग को भेजें
राजभाषा विभाग वर्ष 2009 बैच एवं इससे पूर्व के शेष कुछ अनुवादकों की पदोन्नति की प्रक्रिया
प्रारंभ कर रहा है. जिन अनुवादक साथियों की ACR एवं गोपनीय रिपोर्टें राजभाषा विभाग नहीं पहुंची हैं वे तत्काल इन्हें
राजभाषा विभाग को उपलब्ध कराने का कष्ट करें ताकि पदोन्नति प्रक्रिया शीघ्र संपन्न
हो सके. विस्तृत सूचना के लिए राजभाषा विभाग की वेबसाइट पर सम्बंधित आदेश का
अवलोकन करें.
Tuesday, 6 January 2015
ग्रेड वेतन केस में अगली तारीख 28 जनवरी, 2015 (बुधवार)
दोस्तो, कनिष्ठ अनुवादकों से संबंधित कैट केस में अगली तारीख 28 जनवरी, 2014 (बुधवार) निर्धारित की गई है. आपको स्मरण ही होगा कि विगत 27 अक्तूबर को सुनवाई के लिए तय इस केस को न्यायालय द्वारा लिस्ट इन टर्न घोषित कर दिया गया था. अब इस माह के अंतिम सप्ताह में बहस के लिए तारीख निर्धारित की गई है. उधर सभी संबंधित को जानकर हर्ष होगा कि इसी प्रकार के एक अन्य मामले में एक अनुवादक श्री आशीष बैंगलोर कैट से केस जीत गए हैं. उनका मामला भी श्रीमती टी.पी.लीना के केस पर अाधारित था अौर कैट ने उनके कार्यालय को 2 माह के अंदर फैसले को क्रियान्वित करने के निदेश दिए हैं.
Thursday, 1 January 2015
Friday, 28 November 2014
4600 ग्रेड वेतन केस के क्रम की प्रतीक्षा जारी है
प्रिय मित्रो, कनिष्ठ अनुवादकों से संबंधित ग्रेड वेतन मामले में दीपावली के उपरांत
कोर्ट खुलते ही 27 अक्तूबर को इस केस की सुनवाई तय हुई
थी. उस दिन हम लोग कई घंटों तक कोर्ट रूम में अपने केस की प्रतीक्षा करते रहे.
मामला 74 वें नंबर पर सूचीबद्ध था. और दोपहर तक सुनवाई
नहीं हो सकी...और लंच के बाद भी नंबर आने की संभावना नाममात्र ही थी. हुआ भी
वही....उस दिन 20-25 मामलों को 'लिस्ट
इन टर्न' घोषित कर दिया गया...अर्थात इन मामलों को कोर्ट
की सुविधानुसार क्रमानुसार टेकअप किया जाएगा. इसलिए कोई तिथि निर्धारित नहीं की गई
है. यह एक सामान्य अदालती प्रक्रिया है....इधर हमारे एडवोकेट ने सूचित किया है कि
इस संबंध में हमें कोर्ट द्वारा नोटिस के माध्यम से सूचित किए जाने की संभावना
है. जैसे ही इस संबंध में कोई भी सूचना प्राप्त होती है या प्रगति होगी....सबसे
पहले आप सबके साथ सूचित किया जाएगा.
Monday, 20 October 2014
दीपावली अवकाश के कारण ग्रेड वेतन केस में सुनवाई टली
सभी अनुवादक साथियों को सूचित किया जाता है कि कनिष्ठ अनुवादकों से संबंधित 4600 रू ग्रेड वेतन वाले मामले में आज दिनांक 20 अक्तूबर, 2014 को सुनवाई के लिए तारीख तय की गई थी. परंतु दिल्ली स्थित सभी न्यायालयों में दीपावली के उपलक्ष्य में दिनांक 20 अक्तूबर, 2014 से 25 अक्तूबर, 2014 तक अवकाश घोषित कर दिया गया है. अवकाश के उपरांत कोर्ट खुलने पर इस मामले में सुनवाई के लिए नई तारीख तय की जाएगी. आशा है कि यह नई तारीख भी जल्द से जल्द ही रखी जाएगी.
Wednesday, 3 September 2014
ग्रेड वेतन मामले में अगली तारीख 20 अक्तूबर, 2014. सरकारी पक्ष बहस के लिए तैयार नहीं.
आज कैट की प्रिंसीपल बैंच की न्यायालय संख्या 1 में कनिष्ठ अनुवादकों के ग्रेड वेतन मामले पर सुनवाई हुई. अनुवादकों की अोर से प्रस्तुत हुए एडवोकेट ने अपना पक्ष माननीय न्याधीशों के समक्ष रखा । इस पर जब न्यायालय ने प्रतिवादी सरकारी पक्ष के अधिवक्ता से अपना पक्ष रखने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि वे अभी बहस के लिए तैयार नहीं हैं । उन्होंने तैयारी के लिए न्यायालय से समय का अनुरोध किया। इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने अगली तारीख 20 अक्तूबर, 2014 तय की है।
Monday, 11 August 2014
4600 ग्रेड वेतन मामला कैट की प्रधान पीठ को सौंपा गया, अगली तारीख 3 सितंबर, 2014
प्रिय मित्रो,
कनिष्ठ अनुवादकों के लिए 4600 रू ग्रेड वेतन मामले में आज कैट में सुनवाई के दौरान अनुवादकों की अोर से रिजॉइन्डर दायर कर दिया गया है. इसी के साथ इस मामले की प्रारंभिक अौपचारिकताएं पूरी हो गई हैं. अब इस मामले को सुनवाई के लिए मुख्य बैंच को ट्रांसफर कर दिया गया है. कैट न्यायालय के रोजमर्रा के कामकाज को देखते हुए कहा जा सकता है कि इस केस में तेजी से प्रगति हो रही है. आशा है अगले चरण भी तेजी से पूरे होंगे और कोई अच्छा परिणाम सामने आएगा.
कनिष्ठ अनुवादकों के लिए 4600 रू ग्रेड वेतन मामले में आज कैट में सुनवाई के दौरान अनुवादकों की अोर से रिजॉइन्डर दायर कर दिया गया है. इसी के साथ इस मामले की प्रारंभिक अौपचारिकताएं पूरी हो गई हैं. अब इस मामले को सुनवाई के लिए मुख्य बैंच को ट्रांसफर कर दिया गया है. कैट न्यायालय के रोजमर्रा के कामकाज को देखते हुए कहा जा सकता है कि इस केस में तेजी से प्रगति हो रही है. आशा है अगले चरण भी तेजी से पूरे होंगे और कोई अच्छा परिणाम सामने आएगा.
Thursday, 7 August 2014
सी-सैट हटाओ आंदोलन, भाषा और सरकारी अनुवाद की संस्कृति
पिछले कुछ समय से देश भर में सिविल सेवा परीक्षा
के अभ्यर्थी सी-सैट परीक्षा प्रणाली को हटाये जाने की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं.
इन आंदोलनकारियों की इस परीक्षा प्रणाली से संबंधित तमाम आपत्तियों में प्रश्नों के
अनुवाद में त्रुटियां, क्लिष्ट भाषा का प्रयोग, भारतीय भाषाओं की उपेक्षा जैसे गंभीर मुद्दे शामिल हैं. इस
समय संसद से सड़क तक भाषा और अनुवाद का मसला राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों का केन्द्र
बना हुआ है. स्वतंत्र हिंदी अनुवादक श्री सुयश सुप्रभ के इस लेख में उन्होंने अनुवाद
और विशेषकर सरकारी क्षेत्र के अनुवाद की शैली और संस्कृति को लेकर कुछ गंभीर प्रश्न
उठाए हैं जिस पर अनुवादक समुदाय को अवश्य मंथन करना चाहिए.
- मोडरेटर
![]() |
सुयश सुप्रभ |
सिविल सेवा परीक्षा में
2011 से लागू हुए सीसैट के विरोध में जो आंदोलन मुखर्जी नगर में शुरू
हुआ उसकी गूँज अब भारत के कई राज्यों में सुनाई दे रही है। भारत में लंबे समय के
बाद भाषा के मुद्दे पर इतना बड़ा आंदोलन उठ खड़ा हुआ है। सीसैट में अंग्रेज़ी और
घटिया हिंदी अनुवाद के सहारे एक बड़े तबके को शासन व्यवस्था से बाहर रखने की
साज़िश रची गई है। यह वही तबका है जो अपनी भाषाओं की मदद से देश की समस्याओं को
केवल अंग्रेज़ी के जानकारों की तुलना में बेहतर ढंग से समझ सकता है। यह भी ध्यान
देने वाली बात है कि अंग्रेज़ी के जानकारों को अनुचित फ़ायदा पहुँचाकर लोक और
तंत्र के बीच की दूरी बढ़ाने वाले सीसैट को बहुत हड़बड़ी में लाया गया।
सबसे पहले सीसैट से
जुड़े आंदोलन में भाषा के राजनीतिक संदर्भों पर नज़र डालते हैं। अंग्रेज़ी के
समर्थकों ने इसे हिंदी बनाम अंग्रेज़ी संघर्ष का रूप देने की कोशिश की है। इस काम
में उन्हें मीडिया के अंग्रेज़ीदाँ तबके का भी सहयोग मिला है। ऐसा इस तथ्य के
बावजूद हो रहा है कि आंदोलनकारियों ने अपने ज्ञापन में तमिल, कन्नड़ जैसी भारतीय
भाषाओं में घटती सफलता दर के आँकड़े भी पेश किए हैं। 2011
में
तमिल माध्यम के केवल 14 उम्मीदवार सिविल सेवा परीक्षा में कामयाब हुए थे। कन्नड़ में तो यह
आँकड़ा और खराब था। उस साल इस भाषा के केवल पाँच लोग सफल हो पाए थे। आंदोलनकारियों
ने अपने ज्ञापन में इन तमाम तथ्यों को शामिल किया है। इस तथ्य पर ध्यान देना
ज़रूरी है कि 2013 में जहाँ कुल 1,122 उम्मीदवारों में से
हिंदी माध्यम के 26 उम्मीदवारों को सफलता मिली वहीं तमाम अन्य भारतीय भाषाओं में कुल
मिलाकर केवल 27 उम्मीदवार चुने गए। यहाँ क्षेत्रीय विविधता की कमी साफ़ तौर पर
दिखती है। असल में यह आंदोलन लोकतंत्र के मूल्यों को बचाए रखने के बड़े मकसद की
तरफ़ बढ़ सकता है। ऐसा तभी होगा जब भाषा के मसले को जनतांत्रिक मूल्यों के बड़े
संदर्भ में देखा जाएगा। सरकार चाहे कांग्रेस की हो या भाजपा की, भारतीय भाषाओं के मामले
में दोनों का एक जैसा ढुलमुल रवैया रहता है। हमारे देश में एक मूर्ति पर 200
करोड़
रुपये जितनी बड़ी राशि खर्च की जा सकती है, लेकिन भारतीय भाषाओं की
प्रगति के लिए शिक्षण, पुस्तकालय
आदि पर होने वाले खर्च में कटौती करने की बात कही जाती है।
आंदोलनकारियों ने सीसैट में घटिया अनुवाद को ग़ैर-अंग्रेज़ी माध्यम के उम्मीदवारों की सफलता की राह में रोड़ा बताया है। यहाँ इस बात पर ध्यान देना ज़रूरी है कि यूपीएससी की निगवेकर समिति ने भी इस परीक्षा में अनुवाद को बेहतर बनाने का सुझाव दिया है। अनुवाद की ग़लतियों को देखकर बहुत-से लोगों ने इस बात की जाँच करने की माँग की है कि कहीं ये ग़लतियाँ जान-बूझकर तो नहीं की जाती हैं। अंग्रेज़ी में लिखे प्रश्न में ‘land reforms’ को हिंदी में ‘सुधार’ लिखना एक ऐसी ग़लती है जिससे उम्मीदवारों की सालों की मेहनत बर्बाद हो सकती है। मुख्य परीक्षा में भी अनुवाद इतना जटिल होता है कि अंग्रेज़ी में मूल पाठ पढ़े बिना उसका अर्थ समझना असंभव हो जाता है। 2012 में लोक प्रशासन के पहले प्रश्नपत्र में अनुवाद का एक उदाहरण देखिए - "राज्य उद्देश्य (स्टाट्सराइसन) के इस अमूर्त विचार के संतघोषण में अधिकारीतंत्र की अपनी स्वयं की शक्ति के परिरक्षण की दशाओं की निश्चित मूल-प्रवृत्तियाँ अभिन्न रूप से ग्रथित रहती हैं।" जहाँ एक-एक पल का महत्व हो, वहाँ इन लापरवाहियों से किस तबके को फ़ायदा होगा यह आप आसानी से समझ सकते हैं। इस मसले पर आवाज़ उठाते हुए आंदोलनकारियों को उस मानसिकता का भी विरोध करना होगा जिसमें केवल अंग्रेज़ी को भाषा और तमाम भारतीय भाषाओं को बोली का दर्ज़ा दिया जाता है।
हिंदी करोड़ों लोगों की
भाषा होने के बावजूद न्याय व्यवस्था, प्रशासन आदि में अनुवाद
की भाषा बनकर रह गई है। सरकारी हिंदी का अर्थ ही है अनूदित हिंदी। यह हिंदी जनता
से बहुत दूर खड़ी नज़र आती है। इसके शब्द जनता के मुँह या कलम से निकले शब्द न
होकर उन शब्दकोशों से निकले शब्द हैं जो अब अप्रासंगिक हो चुके हैं। जब देश में
जनता के अधिकारों को छीनने की परंपरा विकसित हो जाती है तब उसे ऐसी भाषा की ज़रूरत
पड़ती है जो बहुत बड़े तबके की समझ से बाहर हो। भारत में यह भूमिका अंग्रेज़ी और
सरकारी हिंदी निभाती है। ‘सामान्य’ को ‘प्रसामान्य’ लिखकर इसे हिंदी
उम्मीदवार के लिए अनावश्यक रूप से ‘असामान्य’ बना दिया जाता है। सरकारी
विभागों में इस हिंदी को प्रचलित करने में उन अधिकारियों की बहुत बड़ी भूमिका है
जो हिंदी को संस्कृत बनाने की ज़िद पाल बैठे हैं। उन्हें हिंदी में संस्कृत को
छोड़कर अन्य भारतीय भाषाओं के शब्दों के प्रयोग से भी चिढ़ होती है। असल में वे
कभी अंग्रेज़ी तो कभी संस्कृत के कठिन शब्दों से भरी हिंदी के बहाने विशिष्ट होने
की उच्चवर्गीय मानसिकता से ग्रस्त हैं। इस हिंदी में ऐसे बेजान शब्दों का प्रयोग
किया जाता है जो संग्रहालय में भूसे से भरे शेर-बाघ की तरह पाठकों को केवल डराने
का काम करते हैं। अनुवाद की भी अपनी अलग राजनीति होती है। जो भाषा आर्थिक दृष्टि
से संपन्न होती है, उसके
व्याकरण, वाक्य
संरचना, शब्दावली
आदि का दबाव उस भाषा पर देखने को मिलता है जो सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर
होती है।
सिविल सेवा परीक्षा में
अंग्रेज़ी के वर्चस्व और अनुवाद से जुड़ी समस्याओं को लेकर शुरू किया गया आंदोलन
भारतीय भाषाओं को रोज़गार से जोड़ने के बड़े मकसद तक जा सकता है। ऐसा तभी होगा जब
भारतीय भाषाओं में अच्छे शब्दकोश, विश्वकोश आदि उपलब्ध
होंगे। इतिहास, समाजशास्त्र
आदि विषयों में अच्छी किताबों की उपलब्धता भी ऐसे आंदोलन के लक्ष्यों में शामिल
होनी चाहिए। शासक वर्ग ने बड़ी चालाकी से बुद्धिजीवियों में भी यह धारणा फैला दी
है कि इन विषयों को भारतीय अंग्रेज़ी में ही पढ़ना चाहते हैं, जबकि सच तो यही है कि
ऐसे लाखों उम्मीदवार हैं जो अच्छी किताबें नहीं उपलब्ध होने के कारण मजबूरी में
अंग्रेज़ी माध्यम से परीक्षा देते हैं। सरकार से यह कहने का समय आ गया है कि
करोड़ों रुपये खर्च करके मूर्ति बनवाना किताबें छपवाने से अधिक महत्वपूर्ण काम
नहीं है। जब तक भाषा से जुड़े आंदोलनों में इन मुद्दों पर बात करके लंबे समय तक
चलने वाले कार्यक्रम नहीं बनाए जाएँगे, तब तक सरकार के लिए
किसी परीक्षा के संदर्भ में उठाए गए सवालों की अनदेखी करना आसान बना रहेगा।
(यह आलेख आग़ाज़ पत्रिका के प्रवेशांक (अगस्त अंक) में प्रकाशित हुआ है )
Tuesday, 15 July 2014
4600 ग्रेड वेतन मामले में सरकारी पक्ष को दिया एक सप्ताह का समय, अगली तारीख 11 अगस्त
कनिष्ठ अनुवादकों हेतु 4600 ग्रेड वेतन की मांग को लेकर कैट में विचाराधीन मामले में अभी तक सरकारी पक्ष द्वारा अपना उत्तर प्रस्तुत नहीं किया गया था. अाज दिनांक 15 जुलाई, 2014 को मामले पर विचार करते हुए अदालत ने सरकारी वकील को अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए एक सप्ताह का समय और दिया है तथा इसके बाद अगले 15 दिनों के अंदर अनुवादकों के समूह को अपना रिजॉइंडर फाइल करना होगा. इस मामले में अगली तारीख 11 अगस्त (सोमवार) तय की गई है।
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