Saturday 7 September 2013

4600 ग्रेड वेतन के लिए आवश्‍यक है बहुआयामी रणनीति....कमजोर और टालमटोल का रवैया घातक होगा.

केन्‍द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोसिएशन ने 5 सितंबर, 2013 को अपने ब्‍लॉग पर ‘1986 का मामला तथा 4600 रू ग्रेड वेतन पर भावी कार्यनीति शीर्षक से एक पोस्‍ट में इन दोनों मामलों में अपना पक्ष स्‍पष्‍ट करने का प्रयास किया है. अब तक 4600 रू ग्रेड वेतन मामले में एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने अनुवादकों द्वारा लंबे समय से पूछे जा रहे प्रश्‍नों के उत्‍तर देने की बजाए मौन धारण कर रखा था....न जाने वे कौन से संदेह हैं जो हमारे प्रतिनिधियों को अपनी बात स्‍पष्‍ट रूप में कहने से रोकते हैं. खैर, अनुवादक मंच कम से अब इस विषय में अपनी बात कहने के लिए एसोसिएशन के पदाधिकारियों के इस प्रयास का स्‍वागत करता है. पर बात सिर्फ अपना पक्ष स्‍पष्‍ट करने के प्रयास पर समाप्‍त नहीं हो जाती. हम सबको यह समझना होगा कि क्‍या वास्‍तव में जो तरीका एसोसिएशन ने कनिष्‍ठ अनुवादकों को 4600 रू ग्रेड वेतन सुनिश्चित करने के लिए चुना है व‍ह पूरी तरह कारगर है या नहीं? दूसरे, क्‍या वर्षों से लंबित चले आ रहे इस मामले में एसोसिएशन से अभी भी कोई लापरवाही तो नहीं हो रही है ? क्‍या इस समय कोई और कदम उठाए जाने की आवश्‍यकता है ?
          दोस्‍तो आप सभी जानते हैं कि 1986 का मामला सिर्फ इतना सा है कि सरकार ने कनिष्‍ठ अनुवादकों को 1996 से नोशनल आधार पर और 2003 से वास्‍तविक रूप में जो वेतन दिया वह केन्‍द्रीय सचिवालय सेवा के सहायकों के बराबर हो गया था. (जोकि 2006 तक बराबर रहा और बाद में सहायकों का वेतनमान बढ़ा दिया गया) परंतु हमारे संवर्ग की पूर्ववर्ती एसोसिएशनों और पूर्व पदाधिकारियों ने अदालत में अपील की कि हमें 1996 के बजाए 1986 से नोशनल आधार पर यह लाभ दिया जाए. इसका अर्थ यह हुआ कि यह 1986-1996 के वैक्‍यूम पीरियड़ का मामला हुआ और इससे सीधे तौर पर वे लोग प्रभावित हैं जो 1986-96 के दौरान सेवा में थे. इस दौरान व्‍यय विभाग बार-बार यह कहता रहा है कि अनुवादकों को कभी भी सहायकों के समकक्ष वेतन नहीं दिया गया बल्कि वह सीटीबी/सीएचटीआई के कार्मिकों के समकक्ष था. दूसरे व्‍यय विभाग द्वारा पैरिटी की मांग को खारिज करने के लिए जो तर्क रखे जा रहे हैं उनसे हम सभी परिचित हैं और इस बात से भी वाकिफ हैं कि इन्‍हीं बातों पर बरसों से अनुवादक एसासिएशन और वित्‍त मंत्रालय में संघर्ष चल रहा है. परंतु आज तक कोई ठोस फैसला नहीं आ सका.......इस संबंध में इस मामले से जुड़े हमारे सीनियर्स का कहना है कि उनके पास अपने दावे के समर्थन में पर्याप्‍त तथ्‍य हैं. हम ईश्‍वर से प्रार्थना करते हैं कि फैसला उनके पक्ष में ही हो. यदि उन्‍हें किसी भी प्रकार का लाभ प्राप्‍त होता है तो इसकी खुशी पूरे अनुवादक समुदाय को होगी.

यहां तक तो बात रही 1986 से 1996 और 2006 में दोबारा पैरिटी खत्‍म होने की. परंतु दोस्‍तो, हम सभी इस बात से परिचित हैं कि वर्ष 2006 में छठे वेतन आयोग की सिफारिशें आने और उनके आधार पर व्‍यय विभाग द्वारा जारी किए गए कुछ आदेशों के कारण अब नई परिस्थितियां उत्‍पन्‍न हो गई हैं. उधर, श्रीम‍ती टी.पी. लीना इन्‍हीं आधारों पर सर्वोच्‍च न्‍यायालय से केस जीत चुकी हैं. जैसी कि पिछली पोस्‍टों में चर्चा की गई है कि इन नई परिस्थितियों में नए और पुख्‍ता आधारों पर अनुवादक एसोसिएशन ने कनिष्‍ठ अनुवादकों हेतु 4600 ग्रेड वेतन की मांग का प्रस्‍ताव राजभाषा विभाग को भेजा था जिसे बाद में व्‍यय विभाग ने बेतुके ढ़ंग और बिना उचित तर्कों के खारिज कर दिया है. प्रतिवेदन भेजे जाते समय ही यह तय किया गया था कि यदि व्‍यय विभाग से सकारात्‍मक उत्‍तर प्राप्‍त नहीं होता है तो बिना समय गंवाए कैट में मामला ले जाया जाएगा. परंतु एसोसिएशन ने इस प्रतिवेदन के अप्रैल माह में रिजेक्‍ट हो जाने के बाद से आज तक इस मामले में खामोशी ओढ़ी हुई थी और अब जब कुछ कुछ कार्रवाई की बात की है तो वह पूरी तरह 1986 वाले मामले पर निर्भर हो जाने की बात कहीं है.

       मित्रो, हम जानते हैं कि 1986 का यह मामला बरसों से चल रहा है. जिसमें सकारात्‍मक टिप्‍पणी के अतिरिक्‍त हमें आज तक कुछ नहीं मिल सका. परंतु हमारे वरिष्‍ठ साथियों का संघर्ष जारी रहा. अब पूर्व पदाधिकारियों द्वारा जुलाई 2012 में इस मामले को दोबारा कैट में दायर किया गया....एक वर्ष से अधिक का समय बीत चुका है और अभी भी हम किसी त्‍वरित फैसले की गारंटी नहीं ले सकते. अदालती प्रक्रियाओं में कितना समय लगेगा कोई नहीं कर सकता.....हम भी इस बार इस मामले में किसी सकारात्‍मक परिणाम के प्रति आशान्वित हैं. परंतु बात सिर्फ इस मामले का फैसला आने पर ही खत्‍म नहीं हो जाएगी. इस केस के फैसले के बाद तीन परिस्थितियां उत्‍पन्‍न होने की संभावना है :  

1.    पहली में, यदि एसोसिएशन इस केस को जीत भी जाती है तो हमें 2006 से इस पैरिटी को prospective effect से सुनिश्चित कराने के लिए संभवत: एक बार फिर न्‍यायालय में जाना होगा.

2.    दूसरी स्थिति में, यदि सरकार कैट के आदेश के विरूद्ध हाई कोर्ट में अपील दायर कर देती है तो यह मामला कितना लंबा खिंचेगा, कोई अनुमान नहीं लगा सकता.

3.    और सबसे बुरी स्थिति में, दुर्भाग्‍यवश यदि कैट या हाई कोर्ट (व्‍यय विभाग के अडियल रवैये को देखते हुए पूरी संभावना है ) से 6 माह बाद या एक साल बाद हम इस केस को हार जाते हैं तो ज़रा अनुवादकों की संभावित स्थिति की कल्‍पना की जा सकती है.

मित्रो आशावादी होना आवश्‍यक है मगर आशावादी होने के साथ-साथ हमें प्रैक्टिल भी होना होगा.

अब प्रश्‍न उठता है कि ऐसी स्थिति में क्‍या रणनीति अपनाई जाए? अनुवादक मंच से जुड़े अनुवादकों ने इस विषय में गंभीर रूप से मंथन किया है और इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि एसोसिएशन को बिना समय गंवाए अन्‍य आधारों पर तुरंत एक केस कैट में दायर कर देना चाहिए. हमें ज्ञात है कि अदालती प्रक्रिया में किसी भी केस में शुरूआत में विभिन्‍न औपचारिकताओं आदि में कई तारीखें निकल जाती हैं....पूरी संभावना है कि इस नए मामले के आर्ग्यूमेंट की स्‍टेज तक पहुंचने में कम से कम 4 से 6 माह लगेंगे. अब जैसी कि संभावना है कि इस दौरान 1986 केस का फैसला हो चुका होगा. अब उपर्युक्‍त परिस्थितियों के अनुसार यदि

1.    फैसला हमारे पक्ष में होता है और सरकार अपील में नहीं जाती है तो इस दूसरे मामले को वहीं रोका जा सकता है.

2.    यदि हम 1986 का केस हारते हैं/सरकार अपील में जाती है तो सर्वथा भिन्‍न आधारों पर ग्रेड वेतन 4600 के लिए अपने संघर्ष को जारी रखने के लिए यह दूसरा केस तब तक मैच्‍योर स्‍टेज में पहुंच चुका होगा. कम से कम तब हमें नए सिरे से किसी को दायर करने और महीनों तक इंतजार की आवश्‍यकता नहीं होगी.

इस सुझाव का एसोसिएशन पर वित्‍तीय प्रभाव :
नए केस से एसोसिएशन पर कोई भारी बोझ नहीं पड़ेगा. इस नए केस को दायर करने के लिए शुरूआती दौर में एसोसिएशन को किसी सीनियर एडवोकेट को हायर करने की आवश्‍यकता नहीं है. जैसा कि हमें ज्ञात हुआ है एक साल से चल रहे 1986 के केस में भी नए वकील को किए जाने तक बीस-पच्‍चीस हजार से ज्‍यादा खर्च नहीं आया है. इसी प्रकार कम खर्च में हम एक नए केस को अगले कुछ महीनों के लिए प्रगति की राह पर डाल सकते हैं. 1986 केस का फैसला होने के बाद उत्‍पन्‍न होने वाली परिस्थितियों में जो भी समीचीन लगे किया जा सकेगा.
उपरोक्‍त बातों पर चर्चा के साथ-साथ हमें इस तथ्‍य को अवश्‍य ही समझना होगा कि सातवें वेतन आयोग का जल्‍द ही गठन होने की संभावना है. अतएव वेतन आयोग के गठन से पूर्व यदि हम कुछ हासिल कर पाते हैं तो हमारे लिए वेतन आयोग में आगे का संघर्ष न केवल सरल होगा बल्कि वहां से अनुवादकों के वेतन में वृद्धि के नए प्रयास किए जा सकेंगे.
एसोसिएशन कृपया इस बात को समझने का प्रयास करे कि पहले 1986 केस के परिणाम की प्रतीक्षा करने और नतीजा आने के बाद आगे की रणनीति तैयार करने का वक्‍त अब हमारे हाथ से निकल चुका है. इस मामले में की जा रही देरी की कीमत हमें अपने भविष्‍य से चुकानी पड़ सकती है. इसलिए समय रहते सावधानी और आसन्‍न खतरों के प्रति सुरक्षात्‍मक उपाय किए जाने में ही सभी का कल्‍याण निहित है. इस विषय में अनुवादक मंच और इससे जुड़े अनुवादक सदैव एसोसिएशन के साथ हैं.....

हालांकि अनुवादक मंच ने कई कार्यकारिणी के सदस्‍यों के माध्‍यम से अपना यह सुझाव एसोसिएशन के पदाधिकारियों तक पहुंचाया था. परंतु उसके बाद भी एसोसिएशन ने यदि इस प्रकार की लचर रणनीति तैयार की है तो स्थिति चिंताजनक है. वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह बहुत आवश्‍यक है कि तत्‍काल आम सभा की बैठक बुला कर अनुवादक समुदाय की राय भी जान ली जाए. सभी से सलाह मश्विरा करके किए गए कार्य सफल रहते हैं. अतएव एसोसिएशन तत्‍काल कोई उचित कार्रवाई का आश्‍वासन दे और आम सभा बुलाकर अनुवादकों की राय जाने अन्‍यथा हम अनुवादकों को स्‍वयं आम सभा बुलाने पर विवश होना पड़ेगा. अब न तो कोई संसद सत्र चल रहा है न ही कोई अन्‍य बाधा है अतएव आम सभा बुलाई ही जानी चाहिए....यूं भी 31 जनवरी, 2013 के बाद जुलाई,2013 में आम सभा की बैठक हो जानी चाहिए थी. 

यदि ऐसे महत्‍वपूर्ण विषयों पर भी आम सभा की राय नहीं ली जाती है तो आम सभा का क्‍या औचित्‍य है

38 comments:

  1. सौरभ जी इस विषय पर आपने निरंतर सभी अनुवादको को जगाने का प्रयास किया है. केवल मात्र यह कह देने से कि आपके प्रयास सराहनीय है, हम अपने कर्तव्यों की इति श्री नहीं कर सकते . वास्तव में हम जैसे नए अनुवादको के लिए इस से बेहतर मार्गदर्शन और क्या होगा. हम कोशिश करेंगे की आपके इस अनुष्ठान में आपका बराबर सहयोग करते रहे. धन्यवाद.

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  2. सौरभ जी के बारे में अशोक जांगड जी के विचार बहुत सही हैं सौरभ को ही बागडोर संभालनी होगी । हम बलाग पर काफी विचार विमर्श कर चुके हैं आप युवा हैं संर्घष्‍ा कर सकते हैं अभी कुछ नहीं बिगडा है । सोनिया जी , शीला दीक्षित से पचास साठ
    अनुवादकों का शिष्‍ठामंडल लेकर मिलें आशा है कि तुरंत आदेश होंगे ।
    दिल्‍ली में मतदान का समय नजदीक है । केस की विस्‍तार पूर्वक जानकारी उनको समझाया जाए तथा उन्‍हें भरोसा दिलाया जाए कि मतदान में उनकी सहायता की जाएगी । ऐसे में ही कुछ हो सकता है अन्‍यथा तुरंत कोर्ट केस ही सहारा है ।

    डा विजय शर्मा

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  3. मित्रों, व्यय विभाग की parity की अवधारणा मेरे समझ से परे है। चौथे वेतन आयोग ने अनुवादकों के लिए बड़े ही सशक्त शब्दों में सहायकों के बराबर वेतनमान की अनुशंसा की थी। पांचवे और छठे वेतन आयोग ने भी JHT और सहायकों में कोई भेद नहीं किया था और उन्हें एकसमान वेतनमान की अनुशंसा की थी। अर्थात लगातार तीन वेतन आयोग ने सहायकों और अनुवादकों को एकसमान वेतनमान अनुशंसित किए गए थे तथा तदनुसार वेतनमान लागू भी हुए थे। लेकिन व्यय विभाग ने हर बार सहायकों का वेतनमान अपग्रेड कर वेतन आयोग द्वारा की गई parity को भंग किया है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने अनेकों निर्णयों में यह कहा है कि वेतन आयोग एक expert body है,जिसके सामने सही-सही और पूरी तस्वीर होती है, जो गहन अध्ययन और तुलनात्मक विश्लेषण करने के बाद ही वेतनमानों की अनुशंसा करता है,अत: जब तक कि कोई साफ-साफ discrimination का मामला न हो वेतनमान संबंधी मामलों में न्यायालयों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
    व्यय विभाग में बैठे experts वेतन आयोग की अनुशंसाओं के विरूद्ध सहायकों और अनुवादकों में भेदभाव करते रहे है। हर बार नया वेतन आयोग आता है, वह फिर अनुवादकों और सहायकों का वेतनमान बराबर करता है, व्यय विभाग फिर भेद करता है,अनुवादकों को parity का जुमला जड़ दिया जाता है, लगता है यह अंतहीन सिलसिला है।
    दूसरी बात उपरोक्त ब्लॉग पर, राजभाषा विभाग द्वारा सूचना का अधिकार के तहत मुझे यह जवाब दिया गया था कि CSOLS CADRE के वेतनमान उच्च न्यायालय के निर्णय के आधार पर बड़ाए गए थे। जहां तक मुझे याद है यह मामला सहायकों के साथ parity का ही था। जाहिर है कि राजभाषा विभाग ने अधीनस्थ कार्यालयों के हिन्दी अनुवादकों को दिग्भ्रमित करने के लिए ऐसा जवाब दिया था। क्योंकि बहुत बाद में राजभाषा विभाग ने मजबूरीवश जारी एक आदेश में यह कहा कि ये वेतनमान केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो के अनुवादकों के वेतनमान के आधार पर बड़ाए गए थे न कि सहायकों से parity के आधार पर। यह सच संसदीय प्रश्न के उत्तर में भी सामने नहीं आया था और नहीं न्यायालयों में आया। मैंने अपनी petition में इन वेतनमानों के मांग करते हुए केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो के साथ विसंगति का मुद्दा भी प्रमुखता से प्रस्तुत किया था। लेकिन न्यायालय में सचिवालय और अधीनस्थ कार्यालय के भेद तथा नीतिगत निर्णय के शोर में यह कभी सुना ही नहीं गया। खैर, जहां तक मुझे जानकारी है संगठन ने सहायकों से parity के आधार पर ही केस डाला था तथा उनके इस केस का केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो से विसंगति का कोई संबंध नहीं था।
    मेरे लिए एक भ्रम की स्थिति है जहां एक ओर मुझे आपकी चिंता जायज लगती है वहीं दूसरी ओर मुझे उनकी अप्रोच भी सूझ-बुझ भरी लगती है। कृपया इसे अन्यथा न ले।

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  4. प्रिय श्री सौरभ आर्य जी
    सस्नेह नमस्कार

    आपसे बात करके बहुत खुशी हुई। व्यस्तता में भी आपने समय निकाला, बहुत अच्छा लगा। जब भी आप बेंगलूर आएँगे हम जरूर मिलेंगे। इस वक्त की अत्यंत प्रस्तुत, उपर्युक्त जानकारी के लिए धन्यवाद। आपके ब्लॉग से अनुवादकों के मन में ग्रेड-पे के बारे में जो भी शंकाए थीं दूर होती जा रही हैं।

    श्रीमती टी पी लीना जी के केस से संबंधित एक और पहलू प्रस्तुत कर रहा हूँ। कृपया इस पर गौर करें।

    हिन्दी अनुवादक को 4600 ग्रेड वेतन प्रदान करने, अनुवादक को सहायक के समान मानकर समान वेतन मिलने हेतु एसोसिएशन द्वारा प्रयास जारी हैं। लेकिन जब भी यह माँग राजभाषा विभाग द्वारा वित्त मंत्रालय पहुँचती है वे इस जायज माँग को ठुकरा देते हैं। आखिर, क्या इसे सीएसोएलएस और अन्य संवर्गीय कर्मचारियों के बीच की खींचातानी या सांप-सीढी का खेल समझे?

    खैर, टी पी लीना जी के कैट केस के आदेश का अध्ययन करने के बाद निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती हैं :-
    1. एम.ए.सी.पी. के तहत वित्तीय उन्नयन(Financial upgradation) ही केस का प्रमुख मुद्दा रहा।
    2. 1/1/2006 से अनुवादक को 4600 ग्रेड पे दिए जाने के बारे में कहीं स्पष्ट रूप से नहीं कहा गया है।
    3. लेकिन इस तथ्य को स्पष्ट रूप से कह दिया है कि जिस अनुवादक 10/20 साल का सेवा काल पूर्ण करता है, यदि उस अंतराल में कोई पदोन्नति नहीं मिलती है (यह बात अलग है कि अनुवादक को पदोन्नति के अवसर नहीं के बराबर हैं!!!), तो उसको वित्तीय उन्नयन प्रदान करते समय अनुवादक पद के वेतनमान/ग्रेड पे को 1/1/2006 को 4600 मानते हुए क्रमश: 4800/5400 ग्रेड पे को प्रथम/द्वितीय वित्तीय उन्नयन के रूप में नियत/प्रदान किया जाना चाहिए। इस नतीजे पर पहुंचने के लिए जो संपूर्ण तथ्य और तर्क दिए गए हैं वे अति संगत हैं।
    4. माननीय कोर्ट ने इस केस को एक ‘peculiar’ केस (अनुवादक को एम.ए.सी.पी. के तहत वित्तीय उन्नयन 4600/4800 के बदले 4800/5400 दिया जाना) माना है, इस परिप्रेक्ष्य में कि वेतनमानों का ‘मर्जर’, साथ में, मर्ज किए हुए एक वेतनमान को हिन्दी अनुवादक पद के लिए 1/1/2006 से संशोधित वेतनमान के रूप में सिफारिश करना ((वह भी काल्पनिक रूप से [notional basis] जिस के लिए ग्रेड पे में बिना बढोतरी के।)), जब भी किसी पद का वेतनमान संशोधित [5500-9000 से 6500-10500] होता है तत्संबंधी ग्रेड पे में भी बढोतरी होता है- उसका नहीं होना –आदि कारणों से इस केस को ‘पेक्यूलियर’ करार देते हुए अपने निर्णय का पुरजोर समर्थन किया है।

    5. बडी बात यह है कि माननीय कैट आदेश को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया।

    6. सामान्यतया एम.ए.सी.पी. के मामले राजभाषा विभाग/व्यय विभाग संबंधित न होकर सीधे डी.ओ.पी.टी. के दायरे में आते हैं। इस केस को ध्यान में रखते हुए डी.ओ.पी.टी. ने कोई स्पष्टीकरण दिया है (मेरे संज्ञान में तो नहीं आया है)। इसका अर्थ यह निकलता है कि डी.ओ.पी.टी. भी कैट निर्णय से सहमत है।

    7. अति मुख्य बात यह है कि टी.पी. लीना जी का विभाग/मंत्रालय कैट आदेश को माना, तदनुसार दो वित्तीय उन्नयन, वेतन नियतन और एरियर्स का भी पेमेंट कर दिया है। लीना जी ने तो जंग जीतकर उपलब्धियाँ हासिल के थीं। लेकिन कानून सभी के लिए एक समान होता है, यह हक सभी अर्ह अनुवादक को मिलना चाहिए। तात्पर्य यह है कि उक्त कैट आदेश समान रूप से सभी के लिए लागू होना चाहिए।

    यह भी पता चला है कि सेंट्रल एक्साइज कमीशनरेट के कार्यालयों में टी.पी.लीना जी के केस के पहले से ही एम.ए.सी.पी. में क्रमश: 4800/5400 का I/II वित्तीय उन्नयन दिया जा चुका है। एक-एक कार्यालय में अलग-अलग मानदंड अपनाना अनुवादक के प्रति अन्याय है।

    उपर्युक्त सारी बातों को ध्यान में रखते हुए मेरा प्रस्ताव/अपील यह है कि है टी पी लीना के कैट केस के संपूर्ण तथ्यों को अवगत कराते हुए एसोसिएशन/अनुवादक मंच को डी.ओ.पी.टी. से, जो कि एम.ए.सी.पी. के मामले में वह सक्षम प्राधिकारी है, स्पष्टीकरण मांगना चाहिए और यदि वह सहमत है, आदेश जारी करने का अनुरोध करना चाहिए। यदि यह हो जाता तो यह आधा केस जीतने के बराबर होगा जिससे अधिकांश अनुवादक तत्काल लाभान्वित हो जाएँगे। यदि एसोसिएशन से स्पष्टीकरण मांगना संभव नहीं होता है तो किसी मंत्रालय/विभाग द्वारा पूछा जा सकता है।

    एसोसिएशन/अनुवादक मंच कृपया मेरे प्रस्ताव की संभवनीयता पर तत्काल गौर करें और बात आगे बढाने पर भी विचार करें। इससे 1986 से समान वेतन से संबंधित केस पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पडेगा बल्कि अनुकूल परिणाम ही होगा।

    शरत्कुमार. ना. काशीकर

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    1. मै काशीकर जी के विचार से पूरी तरह सहमत हूँ.जैसा कि आपने अपनी पोस्ट में कहा है, क्या DOPT ने टी.पी .लीना केस में कोई स्पष्टीकरण दिया है?.इस सम्बन्ध में पूरी जानकारी कहा से और कैसे प्राप्त की जा सकती है कृपया बताने का कष्ट करें .सधन्यवाद

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    2. माधवी जी, नमस्ते

      यदि आप एम.ए.सी.पी.के तहत प्रथम/द्वितीय वित्तीय उन्नयन 4800/5400 (जो भी लागू हो)ग्रेड-पे में देने के लिए अपने कार्यालय/विभाग को प्रतिवेदन (लीना जी के कैट केस की प्रति लगाकर और यह स्प्ष्ट करते हुए कि कैट आदेशानुसार उनको सारे वित्तीय लाभ दिए जा चुके हैं) देंगी तो आपके विभागवाले डी.ओ.पी.टी. से स्पष्टीकरण मांग सकते हैं तदनुसार कार्रवाई कर सकते हैं।
      सामान्यतया हमारे ही विभागवाले डी.ओ.पी.टी. से स्पष्टीकरण मांगने के बजाय यह कहकर हमारे प्रतिवेदन को खारिज कर देते हैं कि आपको भी वह लागू होगा जो सी.एस.ओ.एल.एस.वालों को लागू होता है और राजभाषा/व्यय विभाग से जो भी आदेश आएगा उस का पालन करेंगे। असल में एम.ए.सी.पी. के मामले में राजभाषा/व्यय विभाग का कोई लेना देना नहीं है, डी.ओ.पी.टी. ही सक्षम प्राधिकारी है। संभव है तो विभागवालों को आपके प्रतिवेदन पर डी.ओ.पी.टी. से स्पष्टीकरण मांगने के लिए बता सकती हैं।

      क्योंकि आजतक इस मामले पर डी.ओ.पी.टी.का रुख स्पष्ट नहीं हुआ है (जहां तक मुझे पता है)।

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    3. उपर्युक्त मेरे पोस्ट में पैरा 6 में "....ध्यान में रखते हुए डी.ओ.पी.टी. ने कोई स्पष्टीकरण दिया है" की जगह "....ध्यान में रखते हुए डी.ओ.पी.टी. ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है" पढें।

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    4. नमस्कार काशीकर जी,
      जानकारी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.वस्तुतः हमारे विभाग वाले जानबूझकर अड़ियल रवैया अपना रहे है . मैं अपने कार्यालय को दो बार प्रतिवेदन दे चुकी हूँ .हर बार वे राजभाषा विभाग को पूरे कैडर का वेतनमान संबंधी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए पत्र लिख देते हैं और चुप बैठ जाते हैं.मैंने दोनों ही बार टी.पी .लीना के कोर्ट केस ऑर्डर्स की प्रतियाँ भी लगाई हैं.मेरा पूरा ही केस पूरी तरह टी.पी लीना से मिलता है.किन्तु तब भी विभाग कोई कार्यवाही नही कर रहा.अब last resort तो कोर्ट केस ही बचता है.विभाग हमारे मंत्रालय से मौखिक रूप से बात कर चुका है.वे भी इस निर्णय को मानने के पक्ष में नहीं है.

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    5. माधवी जी, नमस्ते।

      यदि हम 4600 ग्रेड-पे की माँग करते हुए प्रतिवेदन देते हैं तो वे ऐसे कहकर टाल देते हैं। यह पूछते हुए कि MACP के तहत प्रथम/द्वितीय वित्तीय उन्नयन के रूप में ग्रेड पे 4800/5400 दिए जाने के लिए प्रतिवेदन दीजिए। टी पी लीना जी को जैसे मिला है वैसे ही मिलने का अनुरोध करते हुए सभी संबंधित कागजात संलग्न करें और इस संबंध में डीओपीटी से स्पष्टीकरण मांगने का भी अनुरोध करें। क्योंकि इस मामले में डीओपीटी ही स्पष्टीकरण दे सकता है न कि राजभाषा/वित्त विभाग। मै भी यही कोशिश करनेवाला हूँ।

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    6. मैंने टी पी लीना जी के केस से संबंधित मेरी उपर्युक्त टिप्पणी centralsecretariattranslators.blogspot.com में भी प्रकाशित करने के लिए भेजी थी। अभी तक प्रकाशित होने का इंतजार में हूँ। आशा करता हूँ कि एसोसिएशन इस विषय पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करेगी।

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  5. आदरणीय सौरभ जी,
    सादर नमस्‍कार

    इस संदर्भ में तुरंत कार्यसमिति की बैठक का अयोजन व भविष्‍य की रणनीति तैयार की जाए ।
    अतिशीघ्र कार्रवाई अपेक्षित है ।
    डा विजय शर्मा

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  6. मैडम माधवी जी

    सादर नमस्‍कार
    अनुरोध है कि CCX TRANSLATORS UNION FACE BOOK भी ज्‍वाईन करें आपको काफी जानकारी 4600/- ग्रेड वेतन
    बारे में मिल जाएगी ।
    डा विजय शर्मा

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद शर्मा जी.4600 gp हमें आसानी से नहीं मिलने वाला.क्योंकि इससे MACP के अंतर्गत मिलने वाले फायदे किसी को आसानी से हजम नहीं हो पा रहे.राजभाषा का राग आलापने वाले भी हिंदी स्टाफ को उपेक्षित ही रखना चाहते हैं.आपके यहाँ आपको MACP में क्या दिया गया है कृपया सूचित करने का कष्ट करें.सधन्यवाद.

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  8. मैडम माधवी जी

    सादर नमस्‍कार

    मुझे मूल ग्रेड वेतन 4200/ - प्रथम एसीपी 4600/- दूसारी एमएसीपी 4800/- ग्रेड वेतन प्रदान किया गया है अगर कोर्ट
    केस करुं तो प्रारंभ 4600/- प्रथम 4800/- तथा दूसरा 5400/- ग्रेड वेतन बनता है । सेवा काल 25 वर्ष हिंदी अनुवादक के रुप में हो चुके हैं मजे की पदोन्‍नति नीति बनाई गई हिंदी अधिकारी का पद 13 वर्ष के कार्याकाल के उपरांत कनिष्‍ठ हिंदी अनुवादक को वरिष्‍ठता व मेरिट के आधार पर देना था जोकि 2002 फरवरी में पूरा हो गया परंतु पोस्‍ट स्‍वर्ग सिधार गई व वह शायद वह पद अनुवादकों को न देते हुए प्रशासनिक कर्मचारियों को प्रदान किए गए । जहां तक मेरे वर्तमान प्रशासनिक उच्‍च अधिकारी का पद है उप निदेशक व शिक्षा हायर सैकंडरी । वैसे 1992 में केन्‍द्रीय अनुवाद ब्‍यूरो में वरिघ्‍ठ अनुवादक के पद पर सलेक्‍ट हुआ तथा शिक्षा क्षेत्र में पंजाब के उस समय वातावरण के कारण हिंदी प्राध्‍यापक के पद को छोड दिया इसी तरह यूपीएससी के द्वारा हिंदी प्राध्‍यापक हिंदी शिक्षण में भी सिलेक्‍ट हुआ । परंतु पिता जी की अस्‍वस्‍थता के कारण ज्‍वाईन नहीं किया । हिंदी अधिकारी का पद कौन खा गया आज तक लापता है मेरे कार्यालय।निदेशालय में किसी समय तकनीकी कर्मचारियों की पदौन्‍न्‍ति भी तीन साल में हो जाती थी अब कुछ ज्‍यादा समय लगता है । प्रशासनिक पदोन्‍नतियां भी हो रही हैं । हमु कुछ नहीं चाहिए मेरा मतलब लिखने के यह है कि आप कुछ दिन इंतजार करें तथा कोर्ट केस कर दें आपको थाली में परोस के सभी कुछ देंगे । 5400/- ग्रेड वेतन बनता है । इसमें कोई दो-राए नहीं
    । बडै सीलके से मैडम शीला दीक्षित एवं हो सके तो सोनिया जी को भी अवगत करवाओ तो बिना कोर्ट केस के भी काम हो सकता है ।
    डा विजय शर्मा

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    1. नमस्कार शर्मा जी,
      जैसा कि काशीकर जी ने सुझाया है आप भी चाहे तो अपने विभाग को DOPT से स्पष्टीकरण मंगवाने को कह सकते हैं.अन्यथा अंतिम अस्त्र तो कोर्ट केस करना है ही.मेरा और आपका केस MACP से सम्बंधित होने के कारण DOPT के दायरे में आता है.अतः उनसे स्पष्टीकरण माँगा जा सकता है.-माधवी

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  9. आदरणीय आर्य जी,

    सादर प्रणाम

    बलाग देखकर और आपके द्वारा तैयार विचारों तथा काशीकर जी के द्वारा दिए गए तथ्‍यों से पता चलता है कि वास्‍तव में
    आप दोनों हिंदी ही नहीं नियमों के विषयों में भी विद्ववान है । आपसे अनुरोध है कि कुछ ऐसा हो जाए कि यह तथ्‍य
    वास्‍तव में बदल जाएं पूरा जोर लगाकर हिंदी अनुवादकों के भले के लिए कुछ करें बहुत मेहरानी होगी । अनुवादक शान से तो जी सकें ।

    डा विजय शर्मा

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  10. नमस्‍कार मित्रों,

    बहुत सारी बातें सकारात्‍मक एवं कुछ नकारात्‍मक कहने सुनने में आ रही हैं । लेकिन मै श्री हरिओम प्रसाद गुप्‍ता जी की बातों पर गौर करने का आग्रह करता हूँ । छठे वेतन आयोग ने अपने रिपोर्ट में हिन्‍दी संबंधी पदो के लिए जो सिफारीश किया है वह अनुवादकों के साथ वर्षों से हो रहे अन्‍याय को ध्‍यान में रखकर किया था तथा उसके बाद वेतन आयोग की सिफारीश को लागू करने के लिए Implementation Cell ने 24 अगस्‍त 2008 को हिन्‍दी के पदो के वेतनमान को Revice करते हुए एक O.M. जारी किया था । इसके बाद वेतन आयोग की सिफारीशों के अनुसार वेतन नियतन संबंध में विभिन्‍न विभागों से प्राप्‍त पत्रों के स्‍पष्‍टीकरण हेतु 13 नवंबर 2009 को IC (Implementation Cell) द्वारा जो स्‍पष्‍टीकरण पत्र दिया गया जिसके आधार पर 4600/- ग्रेड वेतन के संबंध स्थिती और स्‍पष्‍ट हो गई । किंतु Expenditure वाले सतही तौर पर इस मामले को परख रहे हैं । उन्‍हें छठे वेतन आयोग द्वारा हिन्‍दी संबंधी पदों के संबंध में की गई व्‍याख्‍या एवं उस संदर्भ मे Implementation Cell द्वारा जारी उपर्युक्‍त पत्रों को देखना होगा । यह बात Expenditure वाले के भेजे में डालने का प्रयास करना चाहिए ।

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  11. आदरणीय आर्य जी,

    सादर प्रणाम

    मैं बार-बार आपसे अनुरोध कर चुका हूं कि कोर्ट केस तो 19 सितंबर 2013 का चल ही रहा है परंतु आप अपना प्रतिनिधि
    मंडल लेकर माननीय मुख्‍यमंत्री शीला जी से बात की जाए उन्‍हं टीपी लीना के केस की प्रतियां दिखाकर बताया जाए कि व्‍यय
    विभाग ने कैसे अन्‍याय किया है व उनके माध्‍यम से उच्‍च अधिकारियों को कार्य करवाने के प्रयाय किए जाएं दिल्‍ली में मतदान
    नजदीक आ रहे हैं । कार्य संभव है ।
    डा विजय शर्मा

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  12. आदरणीय येचुरी जी,

    नमस्‍कार

    व्‍यय विभाग के दिमाग हिंदी अनुवादकों के लिए 1986 से ही बंद है इसलिए उनके भेजे में कुछ भी डालना

    एक अनुसंधान करने के बराबर है जोकि एक अंतरिक्ष में भेजने कि लिए तैयार राकेट की तरह है जो संचालन अवधि के
    दौरान ही नष्‍ट हो जाता है एक मात्र रास्‍ता राजनैतिक लोगों के दिमाग में बिठाया जा सकता है और यह अभी उपयुक्‍त समय है
    दिल्‍ली के मतदान का समय नजदीक है अनुवादक / हिंदी अधिकारी परिवार साथ बहुत हैं । राजनेता सचिव व उनके अधीनस्‍थ अधिकारियों को स्‍वयं समझने उपरांत टीपी लीना का केस आगे समझा कर यह काम करवा सकते हैं ।
    डा विजय शर्मा

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  13. आदरणीय आर्य जी,

    सादर प्रणाम

    4600/- ग्रेड वेतन के संबंध में तुरंत कार्यसमिति की बैठक का अयोजन व भविष्‍य की रणनीति तैयार की जाए ।
    अतिशीघ्र कार्रवाई अपेक्षित है ।
    डा विजय शर्मा

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  14. आदरणीय आर्य जी,

    सादर प्रणाम

    4600/- ग्रेड वेतन के संबंध में तुरंत कार्यसमिति की बैठक का अयोजन व भविष्‍य की रणनीति तैयार की जाए ।
    अतिशीघ्र कार्रवाई अपेक्षित है ।
    डा विजय शर्मा

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  15. मुझे नहीं लगता कि असोसिअशन इस मामले को गंभीरता से ले रही है.व्यय विभाग ने लगता है सभी को अपने नकारात्मक उत्तर से निरुत्तर कर दिया है.एक तरह से यह हमारे लिए संकेत है कि हम अपनी लड़ाई स्वयं लड़ें.-माधवी

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  16. आदरणीय आर्य जी,

    सादर प्रणाम

    आप व आपके सभ्‍सी साथियों को हिंदी दिवस की बहुत बहुत बधाई हो । दुआ करता हूं कि आप हिंदी व हिंदी अनुवादकों के हितों को ध्‍यान रखने में इतने सक्षम हों कि किसी अनुवादक को किसी प्रकार की परेशानी न हो
    सादर सहित

    डा विजय शर्मा

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  17. प्रिय श्री सौरभ जी नमस्ते।

    कृपया मेरी दि.8.9.2013 की टिप्पणी देखें, जिस पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार है। टी.पी. लीना जी के केस/निर्णय को ध्यान में रखते हुए क्या डीओपीटी ने अनुवादकों को एमएसीपी के तहत वित्तीय उन्नयन के बारे में कोई स्पष्टीकरण दिया है? यदि नहीं दिया है तो मंच/एसोसिएशन की ओर से क्या यह स्प्ष्टीकरण मंगवाया जा सकता है कि उक्त निर्णय के अनुसार अनुवादकों को प्रथम/द्वितीय वित्तीय उन्नयन के रूप में 4800/5400 दिया जा सकता है या नहीं क्योंकि एक केंद्रीय सरकारी कर्मचारी को यह लाभ दिया जा चुका है (वह भी कैट, हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लडाई जीतने के बाद)और ठीक वैसे ही हर अर्हता प्राप्त अनुवादकों को यह लाभ मिलना चाहिए। यदि स्पष्टीकरण सकारात्मक होता है तो बहुत बडा अनुवादक गण जिनकी 10/20 साल की सेवावधि पूर्ण हुई हो, इसका लाभभागी बनेंगे। 1.1.2006 से 4600 ग्रेड पे मिले या न मिले, 1.9.2008 या उसके बाद से तो प्रथम/द्वितीय वित्तीय उन्नयन के रूप में 4800/5400 जरूर मिलेगा। इस लाभ को पाकर भी 1.1.2006 से 4600 ग्रेड पे संबंधी लडाई जारी रख सकते हैं। इसलिए यदि अभी तक उक्त विषय पर डीओपीटी ने स्पष्टीकरण नहीं दिया है तो कृपया इस पर तुरंत कार्रवाई करने के अनुरोध करता हूँ।

    सादर
    शरत्कुमार ना काशीकर

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  18. I request all of you to consider the ground taken by the respondents in the case of Postal Inspectors along with the arguements putforth by me in my various comments. Please follow the case of postal Inspectors. On Postal Inspectors Blog for grade pay hike, it is posted that their respondents have taken the following ground-



    " There is no specific recommendation in para 7.6.14 to the effect that Inspector Posts are granted Pre-revised pay scale of Rs.6500-10500."

    As far as we are concerned there is no doubt that JHT's were specifically recommended 6500 and was duly accepted by the government.

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  19. To make more clear my earlier comments reg. the issue of 4600, I qoute here the relevant paras of the 6th CPC. Please take note of the following views/parameters/principles adopted by the Pay Commission for merger of 5000-8000, 5500-9000 & 6500-10500. The following parameters adopted by the 6th CPC are important reg. 4600 GP for all those who were previously in the pay scale of 5500-9000-

    Anomalies 1.2.19 Most of the memoranda sent to the Commission by Government organisations, employees or their associations highlighted various anomalies with reference to the pay scales, allowances or status. These anomalies in majority of cases were caused by upgradations of specific individual posts or grant of certain allowance by the earlier Central Pay Commissions or the Government. In some cases the upgradations had to be extended to comply with specific directions of various Courts. The Commission has taken note of these anomalies.

    2.2.19 Scales of Rs.5000-8000, Rs.5500-9000 and Rs.6500-10500 have been merged to bring parity between field offices; the secretariat; the technical posts; and the work shop staff. This was necessary to ensure that due importance is given to the levels concerned with actual delivery. It is also noted that a large number of anomalies were created due to the placement of Inspectors/equivalent posts in CBDT/CBEC and Assistants/ Personal Assistants of CSS/CSSS in the scale of Rs.6500-200-10500. The scales of Rs.5500-175-9000 and Rs.6500-200-10500, in any case, had to be merged to resolve these anomalies.

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    1. pl clarify further on this, more specifically on 4600 GP justifying your comments above.
      Rameshwar Rao,
      Hindi Translator
      AIR, Visakhapatnam

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    2. Dear sir

      during the restructuring of cadre in geological survey of india, jht were granted grade pay of 4600. More intrestingly, the union cabinet has approved the said restructuring. Can we assume that the pay scale granted to jht in gsi has approval from the cabinet. Pl. See the pdf by searching " cadre restructuring in gsi".

      Pl. Go through and see if it can help us

      Prashant kr. Jha

      jaipur

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    3. Dear Rameshwar Rao Ji,

      The paras "1.2.19" & "2.2.19" quoted above are the part of the pay commission's report and these paras reflect the principles adopted by the Pay Commission for merging of the pay scale of 6500 with 5500 & 5000. From these it is proved that the 6CPC do not approve the DOE's move to upgrade pay scales of Inspectors of C.Ex., IT & Assistants in CSS etc. It was considerate view of the 6CPC that as such the DOE has brought disparity in erstwhile posts which were in the pay scale of 5500. Therefore, the PC emphatically stressed that "The scales of Rs.5500-175-9000 and Rs.6500-200-10500, in any case, had to be merged to resolve these anomalies."

      The courts while deciding the issues related to pay scales always give high consideration to fundamental principles adopted by the pay commissions .

      Please read my other comments on this blog & CSOLS Association's blog to understand my point of view.

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  20. DOPT ने एक OM 19-9-2013 को जारी किया है जिसके अनुसार SUBORDINATE OFFICES के OL कैडर के वेतनमानों को CSOLS के समान करते हुए क.अनुवादकों को 4200 ग्रेड पे ही दिया है.अब इस OM को स्पष्टीकरण के तौर पर पेश किया जाएगा.हमारी लड़ाई अब और कठिन हो गयी.हम लक्ष्य से बहुत दूर पहुँच गए मात्र कुछ भयंकर लापरवाहियों के कारण .और व्यय विभाग ने DOPT से पुनः OM जारी करवाकर सारी आशाओं पर तुषारापात कर दिया .असोसिएशन कुम्भकरण की नींद सोती रह गयी बार-बार जगाने के बाद भी.टी.पी.लीना की लड़ाई भी लगता है व्यर्थ गयी...माधवी

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  21. शायद अनुवादक संघ को नजर लग गई जो एकजुट न हो सके अन्‍यथा एक सौ दस प्रतिशत यह अपेक्षा थी कि वर्तमान एसोशियेशन के प्रयासों से 4600 ग्रेड वेतन
    मिलना कोई कठिन कार्य नहीं । शायद ईगो प्राब्‍लम के कारण यह सब कुछ हुआ है अभी भी वक्‍त है 4600
    ग्रेड वेतन राजनैतिक नेताओं के माध्‍यम से प्राप्‍त किया जा सकता है ।
    धन्‍यवाद
    डा विजय शर्मा

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  22. DOPT ने 19-9-2013 को एक OM जारी करके SUBORDINATE OFFICES के लिए CSOLS के समान OL कैडर के वेतनमान निर्धारित किये हैं जिसमे क. अनुवादक को 4200 ग्रेड वेतन ही प्रदान किया है.अतः अब लडाई और मुश्किल हो गयी है.क्योंकि इसे स्पष्टीकरण के तौर पर पेश किया जाएगा.यह सब पहले की गयी लापरवाहियों का परिणाम है.अब हम संभवतः लक्ष्य से बहुत दूर हो गए हैं.टी.पी .लीना की लडाई भी लगता है व्यर्थ गयी.व्यय विभाग ने अपना कार्य कर दिया.असोसिएशन कुम्भकरण की नींद सोती रह गयी बार- बार जगाने के बाद भी.-माधवी

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    1. माधवी जी कृपया आप डीओपीटी के का.ज्ञा. सं. और जारी किए दिनांक की ठीक-ठीक जानकारी देने का कष्‍ट करें। मैंने डीओपीटी के साइट पर जाकर देखा लेकिन इस तरह का कोई आदेश नहीं मिला। अगर यह सही है तो हमारी लडाई बिना शुरू हुए ही समाप्‍त हो गई है, ऐसा मुझे लगता है। ब्‍लॉक के जरिए सूचना तो मिल रही है लेकिन पुख्‍ता कदम उठाए जाने के नामोनिशान तक नहीं है। शायद यह संघर्ष काफी लंबा खिंचने वाला है।

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    2. श्री रामेश्वर राव जी ,उपरोक्त में डीओपीटी का.ज्ञापन सं.AB-14017/46/2011-Estt.(RR) dated 19-9-2013 है.

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    3. माधवी जी बहुत-बहुत धन्‍यवाद, डीओपीटी के का.ज्ञापन सं. देने के लिए। अब जल्‍द ही सभी मंत्रालय एवं विभाग इसे अपने अधीनस्‍थ्‍ा कार्यालयों में लागू कर देंगी क्‍योंकि उन्‍हें यह अच्‍छी तरह से पता है कि हम लोग इसे कोर्ट केस बनाएंगे। कुछ विभागों में यह मामला Sub-judice है। वहां सुनवाई के बाद ही कोई निर्णय लिया जाएगा। उम्‍मीद करते हैं कि सब कुछ हमारे पक्ष में जाए।

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  23. प्रिय श्री सौरभ जी

    सादर नमस्‍कार

    व्‍यय विभाग को जो प्रतिवेदन दूसरी बार भेजा गया था उसका क्‍या बना किसी प्रकार का उत्‍त्‍र आया क्‍या । अभी भी समय है
    सभी मिलकर रोजनेताओं को समझाएं तथा सचिव व्‍यय विभाग को वह कहें कि वस्‍तुस्थिति क्‍या है क्‍यों अनावश्‍यक रुप से
    केस रदद किया गया अन्‍यथा 4600 ग्रेड वेतन देने में क्‍या समस्‍या थी । दूसरा अनुवादक एसोशियेशन के साथ अभी कोई संपर्क है या नहीं या वह अपनी पुरानी बातों पर अडे हुए हैं सभी से बातचीत / वस्‍ुतस्थिति सांझी की जाए आपकी ओर से कोई भी प्रतिक्रिया इभी नहीं आ रही क्‍या कराण है आप ज्ञानी/ बुद्विमान /युवा /झुझारु हैं आप में लडने की क्षमता है तथा मेरे हिसाब से आप भविष्‍य के नेता भी हैं । अत: जागो व आगे बडो कोई समस्‍या नहीं कोर्ट के सहारे कुछ नहीं बनेगा क्‍योंकि जीते हुए कोर्ट केस को बाबू लोग समाप्‍त कर देते हैं । अभी भी समय है । नजर तो एसोशियेशन को लग ही गई थी हमें पूरा विश्‍वास था कि एक ही केस है जिसे बहुत सुचारु ढंग से विजयी कर सकते थे । चुपचाप बैठ जाने पर यक हश्र हुआ है । अभी भी दिल्‍ली में बैठकर यह कार्य सम्‍पन्‍न हो सकता है । शुभरात्रि
    डा विजय शर्मा

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  24. सिर्फ हम आशान्वित हैं कि 13.11.2009 का ओ.एम. अनुवादकों पर भी लागू होना चाहिए और कभी होगा…। वह कब होगा पता नहीं है। व्यय विभाग भी स्पष्ट कर दिया है कि वह हमारे लिए बिल्कुल लागू नही होता क्योंकि 31.12.2005 या उससे पहले अनुवादक पद का वेतनमान 6500-10500 नहीं था। अब इस पर तो न्यायालय से ही एक तार्किक अंत्य मिल सकता है।

    दूसरी बात, फिर मैं दोहराना चाहता हूँ कि एम.ए.सी.पी. में प्रथम वित्तीय उन्नयन 4800 ग्रेड पे में और दूसरा 5400 ग्रेड पे में देने का कोर्ट का आदेश है जिसका संबंधित विभाग ने अंतत: पालन करते हुए तदनुसार वेतन नियतन, वेतन एरियर्स सब कुछ दे चुका है। इसका मतलब हर एक अनुवादक समान लाभ (जो उसका हक है) पाने का हकदार है जो हर एक अनुवादक को मिलना चाहिए। यह तभी संभव है जब डी.ओ.पी.टी. इस संबंध में स्पष्टीकरण देता है। इसके बिना संबंधित कार्यालय तो नहीं मानते हैं। (सिर्फ टंग अडाते हैं।)

    इस समान हक के लिए टी.पी.लीना जी के केस का हवाला देते हुए फिर कोर्ट में जाने की जरूरत भी नहीं है। इस संबंध में मैंने एक कोर्ट आदेश पढा (Swamy's News Item 12 page 86) जिसका आशय यह है कि “Service benefit granted to an employee by a judiciary in a case is applicable to similarly situated other employees of a department without the other employees of the department approaching the judiciary for the same benefit." यह आदेश हमें भी पूर्ण रूप से लागू होता है। हर एक अनुवादक का विभाग चाहे अलग क्यों न हों लेकिन हम सब सी.एस.ओ.एल.एस. के वेतनमानों से ही जुडे रहने के कारण इस आदेश का आशय हमें भी समान रूप से लागू होता है।

    फिलहाल, 13.9.2009 के तहत, 1.1.2006 से 4600 ग्रेड पे पाने का सपना अलग रख कर एम.ए.सी.पी.में कम से कम 1.9.2008 से 4800 (प्रथम वित्तीय उन्नयन) बाद में 5400 (द्वितीय वित्तीय उन्नयन 20 साल की सेवा पूर्ती के बाद) पाने के बारे में सोचना चाहिए। वैसे सातवे वेतन आयोग के गठन की मंजूरी मिल ही गई है। 1.1.2006 से 4600 पाने के दिन अब बहुत दूर लग रहे हैं।

    8.9.2013 के मेरे पोस्ट के सिलसिले में मैं जानना चाहूँगा कि क्या अनुवादक मंच डी.ओ.पी.टी. से एम.ए.सी.पी. के बारे में स्पष्टीकरण माँगने के बारे में कोई कार्रवाई की है? यदि नहीं तो फिर से निवेदन है कि इस पर तुरंत ध्यान दें। क्योंकि, व्यय विभाग ने 13.9.2009 के ओ.एम. के तहत अनुवादक को लाभ देने के बारे में नकारा है। लेकिन एम.ए.सी.पी. में कौन से गेड पे देने चाहिए इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है क्योंकि इस पर तो डी.ओ.पी.टी. ही स्पष्टीकरण दे सकता है। अत: फिर से निवेदन है कि इस पर तुरंत ध्यान दें।

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    1. कृपया उपर्युक्त मेरी टिप्पणी में 'Swamy's News Item 12 page 86' स्थान पर यह पढें - Swamy's News Item 12 page 86, January 2013.

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