दिनांक 6 जून 2012
को बोट क्लब पर केन्द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक संघ की आमसभा की बैठक सम्पन्न
हुई। इस बैठक में संघ के वर्तमान पदाधिकारियों ने बैठक के एजेंडा से बाहर जाते हुए
बैठक की शुरूआत में ही अपनी उपलब्धियों का बखान शुरू कर दिया। अनेकों अनुवादकों को
इन तथाकथित उपलब्धियों पर आपत्ति थी। बैठक में सदस्यों का समय खराब न हो और बैठक बहस
का मंच बन कर न रह जाए इसलिए अनुवादकों की ओर से अपनी बात रख रहे श्री अजय कुमार झा
ने सभा को वचन दिया था कि वे सोमवार तक उपलब्धियों पर अनुवादकों का पक्ष रखेंगे। इसी
क्रम में उपलब्धियों/नाकामियों का बिन्दुवार विश्लेषण करते हुए एक विवरण सभी पाठकों के समक्ष
प्रस्तत है जहां एक ओर भ्रामक सूचनाओं का खंडन किया गया है तो वहीं उपलब्धियों की
प्रशंसा भी की गई है।
- मोडरेटर
श्री शिव कुमार गौड़, श्री बृजभान, श्री इफ्तेखार अहमद, श्री अरूण कुमार विधार्थी, श्री राजेश कुमार श्रीवास्तव एवं अन्य के नेतृत्व में
केंद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोसिएशन की कुछ उपलब्धियां:-
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सक्रिय अनुवादकों द्वारा
प्रस्तुत प्रतिक्रिया
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1.
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कनिष्ठ अनुवादक एसोसिएशन
और वरिष्ठ अनुवादक एसोसिएशन का विलय। वरिष्ठ अनुवादक एसोसिएशन का गठन इस
एसोसिएशन के पूर्व पदाधिकारियों के हिटलरशाही एवं एकाधिकारवादी रवैये के कारणवश
हुआ था जिसकी वजह से पांचवें केंद्रीय वेतन आयोग में भारी नुकसान उठाना पड़ा।
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विलय के बावजूद एसोसिएशन के पदाधिकारियों के रवैये में
कोई बदलाव नहीं आया। आज के पदाधिकारियों का रवैया भी हिटलरशाही एवं
एकाधिकारवादी ही है और यह पॉकेट एसोसिएशन बनकर रह गया है।
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2.
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पांचवें वेतन आयोग के बाद
उच्चतर वेतनमान के मामले को दमदार बनाने के लिए शैक्षिक योग्यता को स्नातक से
बढ़वाकर स्नात्कोत्तर कराया।
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शैक्षिक योग्यता बढ़ाने के
बावजूद आर्थिक लाभ के रूप में अनुवादकों का कुछ नहीं मिला। ग्रेड पे 4200/-
है जो नाकाफी है। साथ ही, कर्मचारी चयन आयोग को उम्मीदवार
नहीं मिल रहे हैं जिसके कारण मंत्रालयों/विभागों में कनिष्ठ अनुवादक के पद भारी
संख्या में रिक्त पड़े हैं नजीजतन मौजूदा अनुवादकों पर काम का ज्यादा बोझ आ गया
है।
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3.
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01.01.1986 से वेतनमान
बढ़ाने के मामले को उच्च न्यायालय ले जाया गया और 01.01.1996 से बढ़े हुए
वेतनमान मिले।
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कैट के फैसले के बावजूद
वित्त मंत्रालय ने 01.01.1986 से बढ़े वेतनमान देने के मामले को अस्वीकृत कर दिया
है।
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4.
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पांचवें केंद्रीय वेतन आयोग
की सिफारिशों के फलस्वरूप राजभाषा
विभाग द्वारा सहायक निदेशक के दो ग्रेड किए गए जिसके नुकसानदायक होने के
कारण इस पर कोर्ट से स्टे आदेश लिया गया और इन दो ग्रेडों को समाप्त करवाया
गया।
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मद संख्या 4 एवं 5
ये उपलब्धियां
अनुवादकों से संबंधित नहीं है।
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5.
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संयुक्त निदेशक और निदेशक
के पद पर प्रतिनियुक्ति के विरोध में कैट (CAT) में मामले को ले जाकर इसे लंबी अवधि तक रूकवाने में
सफलता प्राप्त की।
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6.
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2006 में भर्ती नियम
प्रकाशित होने के बाद उनमें संशोधन कराकर वरिष्ठ अनुवादक से सहायक निदेशक के पद
पर पदोन्नति में कनिष्ठ अनुवादक और वरिष्ठ अनुवादक स्तर पर सात वर्ष की
सम्मिलित सेवा का प्रावधान कराया गया । इसी प्रकार सहायक निदेशक से उप निदेशक के
पद पर पदोन्नति के लिए आठ वर्ष की सम्मिलित सेवा का प्रावधान कराया गया ताकि
कार्मिकों को समय पर पदोन्नति मिलती रहे।
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मद संख्या 6 एवं 7
प्रशंसनीय कदम । परन्तु
विभागीय परीक्षा के माध्यम से सहायक निदेशक पद पर नियुक्ति की व्यवस्था हेतु
पुरजोर प्रयास किया जाना चाहिए था ।
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7.
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संघ लोक सेवा आयोग में अपने
परिचय और संपर्क का जनहित में उपयोग करके 14-15 वर्षों तक सीधी भर्ती को भर्ती
नियमों में प्रावधान होने के बावजूद रूकवाए रखा गया।
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8.
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भूतलक्षी प्रभाव से सभी
पदों पर नियमितीकरण प्रारंभ करवाया जिसके परिणास्वरूप आज अनेक कार्मिक जल्दी
पदोन्नति पा चुके हैं।
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पांच-पांच वर्षों तक किसी
वरिष्ठ अनुवादक को नियमित नहीं किया गया । एसोसिएशन ने इस संबंध में समय
रहते कोई प्रयास नहीं किया ।
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9.
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छठे केंद्रीय वेतन आयोग में
कनिष्ठ अनुवादक को सहायक के बराबर रू. 6500-10500 का वेतनमान और वरिष्ठ
अनुवादक को 7450-11000 का वेतनमान दिलवाया गया।
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इसका आर्थिक लाभ
कुछ भी नहीं मिला। ग्रेड पे 4200 रुपए और 4600 रुपए ही है। इसका
लाभ केवल उन लोगों को प्राप्त हुआ जो 1.1.2006 को 6500-10,500 रुपए के
वेतनमान में थे।
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10.
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छठे केंद्रीय वेतन आयोग में
सहायक निदेशक के पद को समूह ‘क’ बनवाया
गया।
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प्रशंसनीय कार्य ।
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11.
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तत्पश्चात 2009 में सरकार
द्वारा सहायकों के वेतनमान बढ़ाए जाने के बाद मामले को उच्चतम स्तर पर उठाया
गया। हालांकि, सरकार ने यह अंतिम व्यवस्था दी है कि यह मामला 01.01.1986
से वेतनमान बढ़ाए जाने के मामले जैसा ही है और 01.01.1986 वाले मामले के अनुरूप
ही इसका निपटान किया जा सकता है।
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तीन वर्षों के
बाद भी कोई प्रगति नहीं हुई
है।
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12.
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01.01.1986 वाले मामले को
पुन: कैट (CAT) में ले जाया गया था जिसमें उन्होंने अपने 25.05.2010 के आदेश में कनिष्ठ
अनुवादक, वरिष्ठ अनुवादक तथा सहायक निदेशक के वेतनमान 01.01.1986 से
नोशनल आधार पर बढ़ाने के निदेश दिए थे, परन्तु 29.09.2011
के आदेश द्वारा निरर्थक आधारों पर मामले को अस्वीकृत किया है।
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यह कैसी उपलब्धि
है?
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13.
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सरकार के उक्त रवैये के
खिलाफ मामला पुन: कैट (CAT) में दायर कर दिया गया है।
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1.1.1996 से
कनिष्ठ अनुवादक,
वरिष्ठ अनुवादक एवं सहायक निदेशक (राजभाषा) को उच्चतर वेतनमान दे दिया गया था । अब यह विसंगति पुन: 1.1.2006 से उत्पन्न
हुई है । इस मुद्दे
को अब तक तार्किक परिणति तक नहीं पहुंचाया जा सका है।
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14.
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संवर्ग समीक्षा
1)
निदेशक के 06 पद कटने के बचाए गए।
2)
संयुक्त निदेशक के पदों को 20 से 36 करवाया गया।
3)
उप निदेशक के 31 पदों को 85 करवाया गया।
iv) सहायक निदेशक के 153 पदों को
202 करवाया गया।
(v) वरिष्ठ
अनुवादक के 198 पदों को 322 करवाया गया।
(vi इस
प्रकार पूरे संवर्ग में पदों की कुल संख्या में मैचिंग-सेविंग फार्मूले का
सहारा लिए बिना कोई कटौती नहीं वरन् बढ़ोत्तरी करवाई गई।
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संवर्ग समीक्षा
(i) इस समीक्षा में यह देखा
गया है कि सहायक निदेशक (राजभाषा) के स्तर पर पदों में महज 33% की वृद्धि हुई है जबकि उप-निदेशक के पदों के मामले में यह
वृद्धि 165-170% हुई है। साफ जाहिर
है कि यह
एसोसिएशन के कुछ पदाधिकारियों के हित में किया गया है।
(ii) इस
संवर्ग पुनर्गठन को वित्त मंत्री जी ने 2009 में ही अनुमोदित कर दिया था परंतु
कुछ पदाधिकारियों की स्वार्थ पूर्ति उन पदों से नहीं हो पा रही थी। लिहाजा, इसे लागू नहीं होने दिया गया जिसके फलस्वरूप हमारे कई साथियों को वरिष्ठ
अनुवादक के पद से ही सेवानिवृत्त होना पड़ा और उन्हें भारी वित्तीय नुकसान हुआ
है।
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15.
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संवर्ग समीक्षा को
कार्यन्वित करवाया गया
कनिष्ठ अनुवादक
कनिष्ठ अनुवादकों को
संवर्ग समीक्षा के कारण बढ़े हुए पदों पर पदोन्नति के लिए शुरू से ही प्रयास
जारी होने के बावजूद राजभाषा विभाग में अधिकारियों के बीच काम के आवंटन से अड़चने
आई । अधिकारियों ने गैर-कानूनी ढंग से सतर्कता निकासी मांगी और देरी करने का
हरसंभव तरीका तरीका तलाशा जिसके विरोध में माननीय प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह,
माननीय यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, गांधी, माननीय अखिल भारतीय कांग्रस के महासचिव श्री राहुल गांधी और कुछ प्रख्यात
हिंदी सेवियों को लिखा गया है और यदि आज की बैठक में अनुमोदित हो जाता है तो
अगले सप्ताह से राजभाषा विभाग में क्रमिक धरना देने का इस एसोसिएशन का प्रस्ताव
है।
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यह सिर्फ बहाना
है । सत्य से सभी परिचित हैं । उप-निदेशक और सहायक
निदेशकों के मामले में पदोन्नति
आदेश शीघ्र निकाले गए और कनिष्ठ अनुवादक अभी तक पदोन्नति की आस तक लगाए बैठे हैं ।
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16.
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इन सभी बातों के साथ-साथ
01.01.2006 से कनिष्ठ अनुवादक एवं वरिष्ठ अनुवादक पदों के विलय का मामला व्यय
विभाग में उच्चतर स्तर पर प्रक्रियाधीन है जिसे इस कारण जनता से आज तक छुपाया
जा रहा था कि इसकी सूचना फैलते ही अन्य समानांतर सेवाओं के लोग इसमें कोई अड़चन
न डालें।
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कृपया अफवाह न
फैलाएं । क्या लोगों को
यह मालूम नहीं है कि इन मामलों की प्रक्रिया एवं अनुमोदन अन्य समानांतर सेवाओं
के लोगों हाथ में ही है? उन्हें सब कुछ मालूम है ।
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17.
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भर्ती नियम :-
(i) नए
प्रारूप भर्ती नियमों में सहायक निदेशक के पद पर सीधी भर्ती की प्रतशितता को 50
प्रतशित से घटाकर 25 प्रतशित कराया गया और अनुभव में अनुवाद के साथ-साथ राजभाषा
नीति कार्यान्वयन को भी जोड़ा गया जिससे अधिकांशत: अपनी ही सेवा के लोग इसमें
सफल हुए।
(ii)
संयुक्त निदेशक स्तर पर प्रतिनियुक्ति को पूर्णत: हटवाया गया।
(iii) नए
भर्ती नियमों को कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग भिजवाया गया और इसमें निदेशक स्तर
पर की गर्इ प्रतिनियुक्ति की व्यवस्था को हटाने के लिए कार्मिक और प्रशिक्षण
विभाग को तैयार कर लिया गया है।
(iv)
उस वर्ष से किसी कार्मिक को नियमित कराए जाने की व्यवस्रूथा कराई गई जिस वर्ष
की रिक्तियों के मद्दे उसे पदोन्नति दी गई।
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(i) क्या इसमें सीमित विभागीय परीक्षा की व्यवस्था कराई गई
है?
(ii) यह मामला अनुवादकों से सीधे तौर पर संबंधित नहीं है।
(iii) यह मामला अनुवादकों से सीधे तौर पर संबंधित नहीं है।
(iv) प्रशंसनीय कार्य
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18.
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आसन्न खतरे :-
(i) कुछ अनुवादकों/तदर्थ सहायक निदेशकों द्वारा
एसोसिएशन के कुछ पदाधिकारियों को व्यक्तिगत तौर पर नापसंद किए जाने के कारण वे
उन्हें एसोसिएशन में नहीं देखना चाहते हैं, भले ही संवर्ग
का भारी अहित हो जाए।
(ii)
कुछ कनिष्ठ अनुवादक कम अनुभव के कारण इस भारी गलतफहमी में हैं कि वह अपनी शैली, तरीके और शार्टकट से सफलता अर्जित कर लेंगे।
(iii)
सीएसओएलएस से ईर्ष्या रखने वाले दूसरी सेवाओं के लोग इस ताक में हैं कि इनकी
एकता कमजोर हो, ये अस्थिर हों ताकि प्रारूप भर्ती नियमों
में बदलाव करके सहायक निदेशक स्तर पर 54 प्रतिशत सीधी भर्ती का प्रावधान, संयुक्त निदेशक तथा निदेशक स्तर पर 60 प्रतिशत प्रतिनियुक्ति तथा
वरिष्ठ अनुवादक स्तर पर 50 प्रतिशत सीधी भर्ती की व्यवस्था कर सकें। इनकी
नियमितीकरण/पदोन्नति में अधिकतम देरी कर सकें और कैट (CAT) मामले को अंतिम रूप से दफन
करा सकें।
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ये सब मनगढ़ंत
बातें हैं जो लोगों का ध्यान असल मुद्दों से भटकाने के लिए हैं । एसोसिएशन के पदाधिकारी इसका उपयोग अपने
व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए कर रहे हैं । ये पदाधिकारी अपनी मनमाफिक स्थानांतरण और तैनाती में लगे
रहते हैं और अपनी आगे की पदोन्नति की राह आसान करने में लगे हुए हैं । अनुवादकों के हितों से संबंधित मुद्दों
से इनका वास्ता बहुत पहले ही छूट
चुका था।
आज इस सेवा में
अनुवादकों की क्षमता, शैली, सोच एवं विजन पर
कोई प्रश्न चिह्न लगाना उचित नहीं है। वे पढ़े-लिखे और इन्फार्म्ड हैं । वे अपने मुद्दों को बेहतर तरीके से उठाकर अधिकारियों को प्रभावित कर अपना कार्य करवाने का दमखम रखते हैं । उनमें क्षमता
का कोई अभाव नहीं है। कृपया आप उन्हें कम कर
न आंकें।
सबसे बड़ी बात
कि एसोसिएशन के पदाधिकारियों द्वारा अनुवादकों
को एसोसिएशन के कार्यों के संबंध में कभी भी जानकारियां नहीं दी गईं और न ही समय
पर आम सभा की बैठकें आयोजित की गईं।
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