Friday 23 August 2013

4600 ग्रेड वेतन संबंधी एसोसिएशन के प्रतिवेदन पर व्‍यय विभाग का उत्‍तर एवं उसकी समीक्षा.


दोस्‍तो, 4600 ग्रेड वेतन मामले में अपनी पिछली पोस्‍ट में हमने आपको बताया था कि किस तरह 4600 ग्रेड वेतन मामले की फाइल वित्‍त मंत्रालय द्वारा रिजेक्‍ट किए जाने की बात को एसोसिएशन के अध्‍यक्ष और महासचिव महोदय द्वारा एसोसिएशन के साथी पदाधिकारियों तथा अनुवादक समुदाय से पूरे दो माह तक छिपाए रखा गया और अब कई माह बाद भी जब इस मामले पर अपडेट देने का नाटक किया गया तो एक बार फिर अनुवादकों को गुमराह करने के लिए कहा गया कि एसोसिएशन के 'रिगरस पर्सुएशन' से इसी फाइल को एक बार फिर वित्‍त मंत्रालय भेजा जा रहा है. एसोसिएशन के पदाधिकारियों के इस दावे की भी इसी मंच पर हम पोल खोल चुके हैं. खैर, इस सबके बावजूद, हमने पिछली गलतियों को भुला कर एसोसिएशन के पदाधिकारियों को तुरंत उन तथ्‍यों को अनुवादकों से साझा करने का अनुरोध किया था, जिनके आधार पर व्‍यय विभाग/ वित्‍त मंत्रालय ने एसोसिएशन के प्रस्‍ताव को खारिज किया था. इस बारे में तमाम अनुवादक साथियों के साथ साथ हम पूर्व पदाधिकारियों ने भी एसोसिएशन के पदाधिकारियों से कई बार विनम्र निवेदन किए. मगर हठधर्मिता की सीमाएं अभी देखनी बाकी थीं. 1 अगस्‍त, 2013 को आखिरी पोस्‍ट में सब कुछ सामने रखने के बावजूद आज तक न तो एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने न तो उन तथ्‍यों का खुलासा किया न ही कोई भावी रणनीति अथवा कार्ययोजना से अनुवादक साथियों को अवगत कराया. इससे अधिक दुखद स्थिति क्‍या होगी जहां महत्‍वपूर्ण मुद्दे हर गुजरते दिन के साथ अपनी मौत मर रहे हैं और जिम्‍मेदार लोग मौन धारण कर बैठे हैं अथवा गुमराह कर रहे हैं. 

हमने वायदा किया था कि हम हर बार अपेक्षित कार्रवाई का पहला मौका अपनी एसोसिएशन को ही देंगे....और इस बार भी हम यही चाहते थे कि यह सूचना एसोसिएशन ही अनुवादकों को दे. मगर ऐसा नहीं हुआ है. ये सूचना के अधिकार का युग है जहां कोई भी सूचना गोपनीय नहीं रखी जा सकती. इधर हमने विभिन्‍न मंत्रालयों से जब इस मामले के दस्‍तावेजों को हासिल करना शुरू किया तो कुछ नए तथ्‍य सामने आ रहे हैं. अब हम इस मामले की शुरूआत से लेकर अंत तक के समस्‍त दस्‍तावेजों को हासिल कर रहे हैं. जल्‍द ही कुछ और तथ्‍यों से आपको अवगत कराएंगे. फिलहाल नीचे उन तथ्‍यों का खुलासा किया जा रहा है जिनके आधार पर व्‍यय विभाग ने एसोसिएशन के प्रतिवेदन को ठुकराया था: 

Ministry of Home Affairs may refer to their notes on Pre-page regarding up-gradation of Grade Par of Jr. Hindi Translator of CSOLS from Rs 4200 to 4600 in the pay scale of Rs 6500-10500 (pre-revised) in Pay Band 2. 

2. The matter has been examined in this Department and the observation made are as following:- 

a) Prior to 6th CPC the post of JHT of CSOLS were in the pre revised pay scale of Rs.5500-9000 and is, therefore, not covered under this Department’s OM dated 13.11.2009 wherein the posts which were in the pre revised pay scale of Rs.6500-10500 as on 01.01.2006, have been placed in the GP of Rs.4600/-. Hence the request of AM of implementation of OM dated 13.11.2009 is not feasible in case of JHTs of CSOLS.

b) Further, it has already been decided that there is no parity between the posts of CSOLS with the Assistants/Stenographer Grade ‘C’ of CSS/CSSS. The posts belong to different cadres, the duties & responsibilities of the posts, functions performed, RRs, hierarchical levels etc. are entirely different. Thus the posts are not comparable. The pay scale of JHT were upgraded from Rs.5000-8000 to Rs.5500-9000 w.e.f.01.01.1996 on par with similar posts in Central Translation Bureau and not on account of parity with the Assistants of CSS.

c) As the issue of pay fixation order issued by Directorate of Revenue Intelligence, New Delhi in respect of their JHT consequent upon the revision of pay structure of Grade Pay of Rs.4600/- is concerned, the same has been issued without the approval of Department of Expenditure and also not in order. Hence the grant of GP of Rs.4600/- to JHT by Directorate of Revenue Intelligence, New Delhi is ab-initio invalid. 

d) As per prevalent Government Policy, up-gradation of a post is done mainly on the basis of increase in work load and adequate functional justification along with matching savings by way of abolition of certain live posts. The instant proposal lacks in the criteria necessary for up-gradation of posts. 

e) In view of the above, the instant proposal is not agreed to

3. Joint Secretary (Pers.) has seen. 

यह आदेश 26.04.2013 को जारी किया जा चुका था. मगर अनुवादकों को सूचना पूरे तीन माह बाद दी गई वह भी भ्रामक बयानों के साथ. 

खैर अब जरा व्‍यय विभाग के निर्णय की समीक्षा की जाए. यहां कुछ सवाल उठते हैं जिनके जवाब एसोसिएशन के अध्‍यक्ष अथवा महासचिव महोदय ही दे सकते हैं क्‍योंकि अध्‍यक्ष महोदय समय समय पर यह दावा करते रहे थे कि वह इस मामले को ट्रैक कर रहे हैं. फिर ऐसा क्‍यों हुआ : 

* सबसे पहले तो पहली पंक्ति ही होश उड़ाने वाली है "Ministry of Home Affairs may refer to their notes". क्‍या एसोसिएशन के प्रतिवेदन को मूल रूप में व्‍यय विभाग को प्रेषित करने की बजाए राजभाषा विभाग ने कोई नोट भेजा था ? 

* पेरा सं. 2 में तमाम बातों के बीच 24.11.2008 के उस आदेश का जिक्र क्‍यों नहीं है जिसके आधार पर क. अनुवादकों को 1.1.2006 से 6500-10500 का ग्रेड दिया गया था. क्‍योंकि हमारे इस रिप्रेजेंटेशन का पूरा दारोमदार इसी आदेश पर टिका था. इसका जिक्र ही न होना अजीब नहीं है क्‍या ?

* पैरा 2 b, देखिए. पहली ही पंक्ति में पैरिटी की बात की गई है " it has already been decided that there is no parity between the posts of CSOLS with the Assistants/Stenographer Grade ‘C’ of CSS/CSSS". ये अपने आप में आश्‍चर्यजनक है कि हमने अपने प्रतिवेदन में कभी भी पैरिटी को मुद्दा नहीं बनाया था. ये पैरिटी का मसला कैसे बीच में आया ?

* और सबसे आश्‍चर्य की बात तो यह है कि एसोसिएशन द्वारा भेजे गए प्रतिवेदन के साथ श्रीमती टी.पी.लीना द्वारा कैट, केरल उच्‍च न्‍यायालय और सर्वोच्‍च न्‍यायालय में जीते गए केस के आदेशों की प्रतियां लगाई गईं थीं.....इन आदेशों के बारे में एक भी शब्‍द व्‍यय विभाग के आदेश में नहीं है. क्‍या न्‍यायालयों के आदेशों की प्रतियां एसोसिएशन के प्रतिवेदन के साथ व्‍यय विभाग को नहीं भेजी गईं अथवा यदि भेजी गईं तो व्‍यय विभाग ने उन्‍हें नज़रअंदाज क्‍यों किया ? 

* हमारे द्वारा भेजे गए प्रतिवेदन में हमने केन्‍द्रीय सूचना आयोग में एक मामले की सुनवाई में स्‍वयं व्‍यय विभाग की एक निदेशक स्‍तर की अधिकारी द्वारा वीडियो कॉन्‍फ्रेंसिंग से एनआईसी फैसिलिटी में दिए गए वक्‍तव्‍य जिसका सार यह था कि " कनिष्‍ठ अनुवादक 1.1.2006 को 6500-10500 (Pre-Revised) में ही है. इस तर्क के खंडन का भी कहीं कोई जिक्र नहीं है. 

सवाल कुछ और भी हैं जो कुछ लोगों के लिए अत्‍यंत असुविधाजनक हो सकते हैं....उन पर हम पूरे दस्‍तावेजों के आ जाने के बाद ही बात करेंगे. 

उधर श्रीमती टी.पी लीना भी इस मामले में निरंतर हमसे संपर्क बनाए हुए हैं और यहां के हालात देखकर चिंतित हैं. उनकी चिंता जायज है .....हम एक आधी जीती हुई जंग को अंजाम तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं. उन्‍होंने कहा है कि...

"Heard that finance ministry has turned down your request for 4600/- gp .Tell ur association to bring an immediate stay on that order bcos if it is published then it will become the law. Since thaere is already a supreme court verdict in favour of 4600/- and also the fact that they cannot do this 4 years after issue of their first order.Leena

...... Pls do something fast.If assistants in CSS can get 4600/- why not translators who r more qualified. Ur association shd ve filed a case immediately after mine was over." 

कुल मिला कर यहां स्‍पष्‍ट है कि व्‍यय विभाग ने हमारे हर तर्क को नकारने का स्‍टैंडर्ड बना रखा है... तय तो यही हुआ था कि वित्‍त मंत्रालय का उत्‍तर मिलते ही इस मामले में बिना समय गंवाए अदालत का दरवाजा खटखटाया जाएगा....तो अब किस बात का इंतजार हो रहा है? समय बीत रहा है.....और हम सब हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं. एसोसिएशन से एक बार फिर निवेदन है कि अब इस बेहोशी से बाहर आकर अपनी पूरी ताकत इस मामले को न्‍यायालय में ले जाने पर लगाएं....इस विषय में हम पूरी क्षमताओं के साथ आपका साथ देंगे.

इस विषय में की जा सकने योग्‍य कार्रवाई पर सुझाव तथा अपनी प्रतिक्रियाओं से हमें अवश्‍य अवगत कराएं । धन्‍यवाद ।

35 comments:

  1. व्यय विभाग द्वारा कनिष्ठ हिंदी अनुवादक को 4600 का ग्रेड वेतन सम्बंधी प्रतिवेदन अस्वीक्रत करते हुए जो कारण बताये गये हैं मेरे विचार से उनमे कानूनीतौर पर अनेक खामिया है जिन्हे कोर्ट मे अच्छी तरह से चुनौतीदी जा सकती है जो कि रिजेक्ट होते ही करना चाहिए था फिर भी जब जागे तभी सवेरा अब इसमे कतई विलम्ब नही व्यय होना चाहिए

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    1. आपने सही कहा राकेश जी, व्‍यय विभाग का उत्‍तर पूरी तरह कमजोर और महत्‍वपूर्ण तथ्‍यों को नज़रअंदाज करने वाला है. इसका समाधान अब केवल और केवल कैट में हो सकता है....बशर्ते यह मामला शीघ्र ही वहां उठाया जा सके.

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  2. आदरणीय आर्य जी

    सादर प्रणाम

    आपका तथ्‍यों की जानकारी देने के लिए बहुत -बहुत धन्‍यवाद इसमें दो राय नहीं की अनुवादक संघ ने केस को ठीक ढंग से प्रस्‍तुत नहीं किया तथा व्‍यय विभाग ने भी सुर्पीमकोर्ट के निर्णय की ओर कोई ध्‍यान नहीं दिया वैसे भी अनुवादकों की ओर उनका ध्‍यान जाएगा भी नहीं अगर यही केस कलेरीकल केडर का होता तो कभी का पारित हो गया होता । परमात्‍मा भी अनुवादकों की ओर नहीं हैं । खैर सही जानकारी उपलब्‍ध करवाने के लिए बहुत बहु ध्‍धन्‍याद । व्‍यक्तिगत तौर पर आप इस केस को लेकर चलें तो हीी कुछ हो सकता है । अन्‍यथा जीती बाजी हार गए हैं ।

    सादर सहित
    डा विजय शर्मा

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  3. सम्पूर्ण मामला पढकर समझ में आता है कि---एसोसिएशन का यह दावा कि वे पूरे मामले को ट्रैक कर रहे हैं सरासर गलत था.दूसरी बात यह है कि एसोसिएशन के प्रतिवेदन को व्यय विभाग को सौपने से पहले जो नोट राजभाषा विभाग ने लगाया उसमे संभवतः टी.पी.लीना केस का हवाला नहीं दिया गया और न ही 24-11-2008 के आदेश का जिक्र किया गया.और बड़े ही सतही तौर पर 13-11-2009 के आदेश को IMPLEMENT करवाने की बात की गयी.अथवा व्यय विभाग ने इस प्रतिवेदन पर गंभीरता से विचार नहीं किया क्योंकि पहले भी एक बार राजभाषा विभाग के प्रतिवेदन को वे रिजेक्ट केर चुके थे जिसमे कि असिस्टेंट्स से पैरिटी के आधार पर 4600 grade pay की बात की गयी थी.अब यह पता लगाने का पता करे कि क्या फिर से एसोसिअशन ने इसमें संशोधन के लिए प्रतिवेदन दिया है.यदि नहीं तो तुरंत केस फ़ाइल किये जाने चाहिए.वरना टी.पी लीना की लड़ाई भी व्यर्थ चली जायेगी.supreeme court के आदेश को व्यय विभाग ने consider नहीं किया यह बात कतई समझ में नहीं आती.जो भी करना है बिना समय waste किये तुरंत करना पड़ेगा ...अन्यथा सरकार इस मामले को pay commission तक लटका सकती है.

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  4. आदरणीय आर्य जी

    सादर प्रणाम

    केस को बडे ध्‍यान से देखने पर पता चलता है कि असली मुददे तो व्‍यय विभाग में उठाए ही नहीं
    गए न ही व्‍यय विभाग ने इन पर कोई ध्‍यान नहीं दिया उनका मात्र उददेश्‍य केस को रिजेक्‍ट करना ही था इसलिए पुराने मुददों को ही उन्‍होंने उठाया पहले भी जीते हुए कोर्ट केस को इसी तरह से रिजेक्‍ट किया हुआ है । पुन: अनुरोध करता हूं कि संघ के साथ तुरंत संपर्क किया जाए और असली रणनीति बनाई जाए सितंबर 2013 के प्रथम सप्‍ताह में सभी को सूचित किया जाए कि आगे क्‍या करना है । व्‍यय विभाग के आदेया से पहले तो कैट का निर्णय भी आ जाएगा । मेरे स्‍वर्गीय पिता जी ने पंजाब व हरियाणा उच्‍च न्‍यायालय में कोर्ट केस किया था तो पंजाब के उनके सभी टीचरों को पेंशन के आदेश की प्रति लगाने पर अपील करते ही न्‍याय मिल गया था ।

    तुरंत कार्रवाई की जाए तथा अनुवादक मंच यानि की केन्‍द्रीय सचिवालय राजभाषा अनुवादक संघ से आप संपर्क करें । बार बार बलाग पर लिखने से कुछ नहीं होगा । अब आप से ही इसकी अपेक्षा है । जीवन में इसके बाद कभी अवसर नहीं आएगा ।

    सादर सहित
    डा विजय शर्मा

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    1. आदरणीय विजय शर्मा जी एंव माधवी जी,
      सादर नमस्‍कार,
      आप दोनों से सहमत हूं. इस मामले की शुरूआत से लेकर अब तक की पूरी तस्‍वीर अब सभी अनुवादकों के सामने है. जहां तक एसोसिएशन से संपर्क करने की बात है तो हम उनसे शुरू से ही इस मामले को शीघ्रातिशीघ्र कैट में ले जाने की बात करते रहे हैं और अब भी निरंतर शीघ्र कार्रवाई करने / आगामी रणनीति बताने आदि के बारे में आग्रह कर रहे हैं. परंतु एसोसिएशन के पदाधिकारी तो इस मामले में पूरी तरह चुप्‍पी साधे बैठे हैं.

      ये एक मेरे या कुछ अनुवादकों का निजी मसला नहीं है....ये न केवल सीएसओएलएस, बल्कि देश भर के अनुवादकों का मामला है. इसलिए इस मामले को एसोसिएशन के द्वारा ही न्‍यायालय में उठाया जाना उचित होगा. यदि आप अपनी बात एसोसिएशन के पदाधिकारियों तक पहुंचाना चाहते हैं तो अवश्‍य ही उनके ब्‍लॉग centralsecretariattranslators.blogspot.com पर संदेश दें. शायद आपकी बात ही उन्हें समझ आ जाए.

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  5. प्रिय श्री सौरभ जी,
    सस्नेह नमस्कार

    उपर्युक्त पूरे वृत्तांत से यह विदित होता है कि एसोसिएशन अपने कर्तव्यों का सही ढंग से पालन नहीं कर रही है, अनुवादकों के हित की रक्षा करने में भी असफल दिख रही है। अनुवादकों से गठित एसोसिएशन, अनुवादकों से चुने हुए उसके पदाधिकारी गण अनुवादकों के लिए काम नहीं करेगा तो उस एसोसिएशन का औचित्य ही क्या है। अप्रेल 13 में ही प्रतिवेदन को व्यय विभाग द्वारा ठुकराए जाने के तीन महीने बाद भी उस पर कोई कदम नहीं उठाना, अपने ही अनुवादक सदस्यों को गंभीर हालत से अवगत न कराते हुए उनको अंधेरे में रखना, इतना ही नहीं भ्रामक विषयों से उनको गुमराह करना, यहाँ तक कि उनके प्रातिनिधिक पदाधिकारियों को ही त्याग-पत्र देने तक मजबूर करना - ये सभी यह इंगित करता है कि एसोसिएशन में कुछ भी ठीक नहीं है। ऐसी एसोसिएशन के पदाधिकारी अपने पद त्याग कर सुयोग्य, सक्रिय एवं सम्यक रूप से जिम्मेदारी का निर्वहन करनेवालों के लिए मार्ग प्रशस्त करना आज की सबसे जरूरी आवश्यकता है। एसोसिएशन के अपील पर अनुवादक वर्ग इस मामले में अपने स्तर पर कोई कार्रवाई न करते हुए एसोसिएशन द्वारा किए जा रहे कदम पर विश्वास करके आशान्वित बैठा है लेकिन गर्व से कहने वाले कोई काम नहीं हुए हैं। स्नातक/स्नातकोत्तर या उससे अधिक उपाधि के साथ सुशोभित अनुवादक वर्ग की इस हालत पर, बेबसी पर घृणा आती है।

    ग्रेड पे 4600 प्रदान करने के मामले में यह पता नहीं चला कि व्यय विभाग द्वारा अनुवादक-सहायक प्रैरिटी असंभव कहकर 4600 नही दिए जा सकने की बात दोहराते हुए इस मामले को पहले ही खारिज करके आदेश भी जारी हो जाने के बाद भी उसी कारण देते हुए ग्रेड पे का अनुरोध कैसे किया गया?

    प्रतिवेदन देते समय तो यह बात बिलकुल स्प्ष्ट हो चुकी थी कि यदि ग्रेड पे 4600 के लिए लडने के लिए एक मात्र सहारा श्रीमती टी पी लीना जी के कोर्ट का आदेश है। विदित है कि प्रतिवेदन में भी इस तथ्य को ठीक तरीके से प्रतिपादित किया गया था। अभी व्यय विभाग से मिली टिप्पणी में इसकी कोई जिक्र नहीं है तो लापरवाही कहाँ हुई है?

    फिलहाल,मेरी सीमित बुद्धिशक्ति के अनुसार, यह कदम उठाना बेहद जरूरी लगता है कि "अंतिम प्रयत्न के रूप में" एक प्रतिनिधि मंडल (जिसमें एसोसिएशन के पदाधिकारी और गैर पदाधिकारी/ विशेषज्ञ भी शामिल हों जो इस मसले के आदि-अंत को जानते हैं ताकि इस मामले को पुरजोर प्रस्तुत किया ज सके) पूरी तैयारी के साथ सारे दस्तावेज सहित राजभाषा विभाग, जरूरत पडने पर व्यय विभाग, के उच्च स्तरीय अधिकारियों से भेंट करके मुख्य रूप से उपर्युक्त कैट केस का सदाशय और आदेश के बारे में उनको समझाना चाहिए साथ में यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि यह सहायकों से पैरिटि से कतई संबंधित नहीं है। और, 24/27.11.08 तथा 13.09.09 को जारी आदेशों के इंटरप्रिटेशन में जो तकनीकी समस्यायें हैं जिसका समाधान/स्पष्टीकरण माननीय कोर्ट ने आदेश के रूप में दिए हैं, उसे स्पष्ट करना चाहिए। इसके अलावा अन्य विषय जैसे, अत्यंत विरल पदोन्नति के अवसर, अनुवादकों को अनुवाद के अलावा दिए जा रहे अन्य कार्य, अनुवादकों की नियुक्ति के लिए सहायकों से ज्यादा आवश्यक शैक्षिक अर्हता, आदि से भी अवगत कराकर सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाने के लिए अनुरोध किया जा सकता है। यदि इसका सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली तो ठीक है नहीं तो अंततोगत्वा अदालत का दरवाजा खटखटाना ही हमारी मजबूरी होगी। हाथ पर हाथ धरे बैठने से कुछ हासिल नहीं होगा। इस संबंध में अनुवाद मंच से भी पूरी ताकत लगाकर गोल हासिल करने का विनम्र अनुरोध करता हूँ।

    उपर्युक्त को मैं एसोसिएशन के ध्यान में भी लाने की कोशिश करूंगा।

    साभार,
    शरत्कुमार ना काशीकर

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  6. आदरणीय आर्य जी
    सादर प्रणाम
    24 अगस्‍त का आपका उत्‍तर देखा ।अनुवादक एसोसिएशन के पदाधिकारियों तक बात पंहुचद दी गई है

    उनके ब्‍लॉग centralsecretariattranslators.blogspot.com पर संदेश पंहुचा दिया गया है इस अनुरोध के साथ कि त्‍यागपत्र दिए गए अनुवादक एसोसिएशन के पदाधिकारियों को साथ लेकर चलें और तुरंत एक सप्‍ताह के भीतर कार्रवाई करें तथा सभी को साथ लेकर तुरंत की गई कार्रवाई के बारे में ब्‍लाग पर बताया जाए । आप भी प्रयास जारी रखें । अनुवादक संध एक परिवार है और परिवार में थोडी बहुत खींचतान चलती रहती है परंतु इस केस में सभी को तुरंत मिलकर ही चलना होगा । थोडी सी देरी भी जीती बाजी हार जाएंगे । शीघ्र कार्रवाई की अपेक्षा के साथ
    सादर सहित
    डा विजय शर्मा

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  7. Dear friends,

    In my last post I have suggested to make a claim on the basis of illustration 4A as I feel that through illustration 4A, it is a straight case for JHT's to have 4600. Please have a look on OM No. 1/1/2008-IC dated 13 Oct. 2008, which provides that in cases of upgradation the pay is to be fixed in the grade pay of the upgraded pay scale. Also have a look on the question no. 15 of FAQ's on MACP issued by dopt which makes it clear that "5000-8000 & 5500-9000" and "6500-10500 & 7450-11500" are merged into separate grade pays. It also support my view that now 6500 do not exist in 4200 alongwith 5000 & 5500. It is now only in the grade pay of 4600 with 7450. While fixing the pay in illustration 4A, the pertinent question is that what grade pay carries the pre-revised pay scale of 6500? In my view a pre-revised pay scale cannot carry the grade pay of 4200 and 4600 as well. Further, a thorogh perusal of the report of the sixth CPC will show that the pre-revised pay scale of 6500 to various categories was recommended by sixth CPC on a very conscious note, the each and every post though were being merged in 4200 were not recommended 6500 and at many places their demand for 6500 was not conceded in clear words though they were all placed in 4200.

    Further, the order passed by department of expenditure for 4600 to all the posts in 6500 bears no overriding effect for policy decision taken by the Government regarding acceptance of the sixth CPC report. In my view the phrase "as on 01.01.2006" was used on a conscious note as subsequent instructions/explanations/orders cannot have an overriding effect of a policy decision taken at the highest level.

    I just hope that my views on this matter have some merit and these will be helpful for all of you for claiming the gp of 4600.

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    Replies
    1. @Hariom Prasad Gupta.
      I very well know the ground which u have suggested and on which the translators can ask for 4600 gp and I myself asked for it on the same ground but my office first granted it and afterwards withdrew it on the ground that ours is a subordinate office and we have to follow the CSOLS and because they have not granted it,we cannot grant it ,as there must be something controversial and they did not grant me 5400gp in 2nd Financial upgradation on the same ground and restricted me on 4800 gp..Are they right in their perspective that being subordinate office they should follow CSOLS.if so how other subordinate offices have granted it in 2010 itself without taking separate approval from Ministry of Finance.Can you please guide me in this matter as how to convince my office authorities ...Thanx in advance.Please reply on my email also i.e. madhavinaveengarg@gmail.com.

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    2. Sh. Hariom Prasad Gupta ji,
      First of all many thanks for participating in this discussion. You have certainly underlined some vital aspects of this case. We have noted them for further discussion with experts. Thanks

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    3. Dear Moderator,

      Thanks for taking cognizance of my suggestion. I think apart from T.P. Leena's case (MACP Case), these are some solid grounds to claim 4600.

      Thanks for acknowledging.

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  8. Replies
    1. This comment posted by Sh. Chand Kiran Bedi ji, got deleted by mistake during an updating exercise....we express regret for this. But posting the actual content again here:

      "dear moderator,
      i am stunned to come across the the disclosures made by u.
      as u have been the duly elected representative of translators of association and the stand taken by u is offcourse appreciable,you may please convey the future course of action apart from just making the disclosure. it may not be of any help.If you think the association is misguiding the translators and is not properly pursuing the cause of translators,you please spell out what should be the future of association and what could be done to put the things in right prospective "

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  9. आदरणीय आर्य जी,
    सादर नमस्‍कार

    चांद किरण बेदी जी ने बहुत ही सुलझी हुई बात की है आपके द्वारा दी गई जानकारी से मन प्रसन्‍न हुआ साथ में चांद जी ने यह भी पूछा है कि आगे की कार्रवाई क्‍या की जाए इस संदर्भ में बताया जाए । आप लोगों के हाथ में सारा केस है । आपकी सोच पोजिटिव है । केस को अच्‍छी तरह हैंडल आप कर सकते हैं । अत: तुरंत कार्रवाई की जाए । एक -एक दिन बहुत ही कीमती है ।

    सादर सहित
    डा विजय शर्मा

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  10. आदरणीय आर्य जी

    सादर प्रणाम

    4600/- ग्रेड वेतन संबंधी आपके द्वारा आगे क्‍या कार्रवाई की जा रही है बताने का कष्‍ट करें तथा
    राजभाषा अनुवादक एसोशियेशन को उनके ब्‍लाक पर बार-बार अनुरोध कर दिया गया है । आपसे भी
    साकारात्‍मक कार्रवाई की अपेक्षा करता हूं ।
    सादर सहित
    डा विजय शर्मा

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  11. मैंने निम्नलिखित प्रतिक्रिया को http://centralsecretariattranslators. blogspot.in में प्रकट करने हेतु दि.24 या 35.8.2013 को पोस्ट किया था वे अभी भी प्रकट नहीं हुई है जिसे आपके समक्ष रखना चाहता हूँ:-

    “एक गैर सीएसओएलएस अनुवादक होकर, सदस्य न होते हुए, इस ब्लॉग में एसोसिएशन की गतिविधियों पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना शायद समुचित नहीं है, परंतु, संवर्गीय अनुवादकों के वेतनमान से हमारे वेतनमान/नियतन भी जुडे होने के कारण यदि मैं अपना विचार व्यक्त करता हूँ तो यह अनुचित भी नहीं होगा।

    यह अत्यंत दुखद स्थिति है कि ग्रेड पे 4600 का सारा वृत्तांत दूसरे ब्लॉग से मालूम करना पडता है जिसके बारे में अभी तक इस ब्लॉग में कुछ भी सूचना नहीं दी गई है।
    इससे यह विदित होता है कि एसोसिएशन अपने कर्तव्यों का सही ढंग से पालन नहीं कर रही है और अनुवादकों के हित की रक्षा करने में भी वह असफल दिख रही है। अनुवादकों से गठित एसोसिएशन, अनुवादकों से चुने हुए उसके पदाधिकारी गण अनुवादकों की भलाई के लिए यदि काम नहीं करेगा तो उसका औचित्य ही क्या है। अप्रेल 13 में ही प्रतिवेदन को व्यय विभाग द्वारा ठुकराए जाने के तीन महीने बाद भी उस पर कोई कदम नहीं उठाना, अपने ही अनुवादक सदस्यों को गंभीर हालत से अवगत न कराते हुए उनको अंधेरे में रखना, यहाँ तक कि उनके प्रातिनिधिक पदाधिकारियों को ही त्याग-पत्र देने तक मजबूर करना - ये सभी यह इंगित करता है कि एसोसिएशन में कुछ भी ठीक नहीं है। यदि एसोसिएशन को लगता है कि अनुवादकों की निरीक्षा के अनुरूप काम करना संभव नहीं है तो पदाधिकारी अपने पद को स्वसंतोष से त्याग कर सुयोग्य, सक्रिय एवं सम्यक रूप से जिम्मेदारी का निर्वहण करनेवालों के लिए मार्ग प्रशस्त करना बेहतर होता है। एसोसिएशन के अपील पर अनुवादक वर्ग इस मामले में अपने स्तर पर कोई कार्रवाई न करते हुए एसोसिएशन द्वारा किए जा रहे कदम पर विश्वास करके आशान्वित बैठा है लेकिन उसके अनुरूप कोई काम अब तक नहीं हुए हैं। कृपया एसोसिएशन के समस्त पदाधिकारी इस पर गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। स्नातक/स्नातकोत्तर या उससे अधिक उपाधि के साथ सुशोभित अनुवादक वर्ग की इस हालत पर, बेबसी पर क्या कहें?

    ग्रेड पे 4600 प्रदान करने के मामले में यह पता नहीं चला कि व्यय विभाग द्वारा अनुवादक-सहायक प्रैरिटी असंभव कहकर 4600 नहीं दिए जा सकने की बात दोहराते हुए इस मामले को पहले ही खारिज करके आदेश भी जारी हो जाने के बाद भी उसी कारण देते हुए ग्रेड पे का अनुरोध कैसे किया गया?

    प्रतिवेदन देते समय तो यह बात बिलकुल स्प्ष्ट हो चुकी थी कि यदि ग्रेड पे 4600 के लिए लडने के लिए एक मात्र सहारा श्रीमती टी पी लीना जी के कोर्ट का आदेश है। विदित है कि प्रतिवेदन में भी इस तथ्य को ठीक तरीके से प्रतिपादित किया गया था। अभी व्यय विभाग से मिली टिप्पणी में इसकी कोई जिक्र नहीं है तो लापरवाही कहाँ हुई है?

    फिलहाल,मेरी सीमित बुद्धिशक्ति के अनुसार, यह कदम उठाना बेहद जरूरी लगता है कि "अंतिम प्रयत्न के रूप में" एक प्रतिनिधि मंडल (जिसमें एसोसिएशन के पदाधिकारी और गैर पदाधिकारी/ विशेषज्ञ भी शामिल हों जो इस मसले के आदि-अंत को जानते हैं ताकि इस मामले को पूरी ताकत के साथ प्रस्तुत किया ज सके) पूरी तैयारी के साथ सारे दस्तावेज सहित राजभाषा विभाग, जरूरत पडने पर व्यय विभाग, के उच्च स्तरीय अधिकारियों से भेंट करके मुख्य रूप से उपर्युक्त कैट केस का सदाशय और आदेश के बारे में उनको समझाना चाहिए साथ में यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि यह सहायकों से पैरिटि से कतई संबंधित नहीं है। और, 24/27.11.08 तथा 13.09.09 को जारी आदेशों के इंटरप्रिटेशन में जो तकनीकी समस्यायें हैं जिसका समाधान/स्पष्टीकरण माननीय कोर्ट ने आदेश के रूप में दिए हैं, उसे स्पष्ट करना चाहिए। इसके अलावा अन्य विषय जैसे, अत्यंत विरल पदोन्नति के अवसर, अनुवादकों को अनुवाद के अलावा दिए जा रहे अन्य कार्य, अनुवादकों की नियुक्ति के लिए सहायकों से ज्यादा अनिवार्य शैक्षिक अर्हता की आवश्यकता आदि से भी अवगत कराकर 4600 ग्रेड पे प्रदान किए जाने पर सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाने के लिए अनुरोध किया जा सकता है। यदि इसका सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली तो ठीक है नहीं तो अंततोगत्वा अदालत का दरवाजा खटखटाना ही हमारी मजबूरी होगी। हाथ पर हाथ धरे बैठने से कुछ हासिल नहीं होगा। जो भी करना है बिना समय गंवाए अति शीघ्रता से करना है। इस संबंध में प्राथमिकता देते हुए एसोसिएशन् पूरी ताकत लगाकर गोल हासिल करने का विनम्र अनुरोध करता हूँ।“

    अभी भी मैं आशा करता हूँ कि मेरी प्रतिक्रियाएँ (दूसरी भी) प्रकट होंगी (?)

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  12. @Hariom Prasad Gupta.
    I very well know the ground which u have suggested and on which the translators can ask for 4600 gp and I myself asked for it on the same ground but my office first granted it and afterwards withdrew it on the ground that ours is a subordinate office and we have to follow the CSOLS and because they have not granted it,we cannot grant it ,as there must be something controversial and they did not grant me 5400gp in 2nd Financial upgradation on the same ground and restricted me on 4800 gp..Are they right in their perspective that being subordinate office they should follow CSOLS.if so how other subordinate offices have granted it in 2010 itself without taking separate approval from Ministry of Finance.Can you please guide me in this matter as how to convince my office authorities ...Thanx in advance.

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    1. To Madhavi Garg. Thanks for responding to my suggestion. The ground taken by your office is amusing as in the past they have not allowed us the parity with csols solely on the basis that we are in subordinate offices. Now they argue that since they have not followed the certain orders and procedure, therefore they have got license to violate the procedure laid down by department of expenditure and ignore the orders which have force of law.
      You can satisfy a logical query/doubt by reasoning but such cynical approach of persons, who make it their personal vengeance to insure that we are not allowed certain benefits of which we are lawfully entitled, cannot be satiated by any logic or proof.
      I think in your case you have a strong case as you were earlier granted 4600 as per 4A and later withdrawn. Certain rules and procedure are required to be followed for cancelling pay fixation order and the same should have been done on proper ground and authority. The rules are there to be followed and those responsible for implementing the rules have to act on the basis of the rule and not on the basis of assumptions and presumptions. I will suggest that you should take advice of an advocate in your matter before it is too late.
      In order to convince your office authorities you may request them that your fixation was as per the orders of the department of expenditure and that they are bound by these orders and the assumptions and presumptions should not overrule the law.

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  13. आर्य जी, Hariom Prasad Gupta, चांद किरण बेदी, शरत्कुमार ना काशीकर, माधवी जी, ने अपने विचार रखे परंतु
    उन पर क्‍या कार्रवाई की गई संघ से संपर्क , कोई बैठक, विचार विमर्श उच्‍च अधिकारियों से संपर्क हुआ या चुपचाप बैठ कर बलाग पर बातचीत ही की गई अतिशीघ्र ध्‍यान देने की आश्‍यकता है तथा शीघ्र कार्रवाई अपेक्षित है ।
    डा विजय शर्मा

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  14. Thanks to Hariom Prasad Guptaji for enlightening us on illustration 4-A of CCS(RP) Rules, 2008 vide which JHTs could try to get their pay fixed straightaway to Rs.4600/-. On this issue, my views/findings are as follows:

    1. Illutration 4-A of Notification of MOF, DOE dtd.29/08/2008 is applicable only for those pay fixation cases where the posts have been upgraded. The pay scale of JHTs was Rs.5500-9000 till 31/12/2005, in other words, till introduction of 6th CPC recommendations w.e.f.1/1/2006, the pay scale was Rs.5500-9000 only. On 1/1/2006, the pay scale of Rs.6500-10500 was recommended notionally for JHTs and fixed the corresponding grade pay of Rs.4200 vide DOE OM dtd.24/11/2008 and subsequent corrigendum 27/11/2008. It means, that was only a recommendation and in any point of time, the pay scale of 6500-10500 was not granted at all to the JHTs (even prior to the introduction /implementation of of 6th CPC) and their pay was fixed to 4200. When the pay scale of JHT was not at all upgraded, the question of requesting to fix the pay of JHT under 4-A does not arise.

    2. When the pre-revised pay scale of JHT was Rs.5500-9000 prior to the implementation of 6th CPC recommendations, JHT is not covered under DOE OM dtd.13/11/2009 vide which the posts which were in the pre-revised pay scale of Rs.6500-10500 as on 1/1/2006, have bee replaced in the GP of 4600. Hence OM dtd.13/11/2009 also does not apply to the JHTs. DOE it self clarified this. (refer the post).

    3. Since the GP of the post of JHT was fixed @ Rs.4200 vide DOE OM dtd.24/27.11.2008, the first and second financial upgradations under MACPS were given to the GP og 4600 and 4800 respectively.

    4. No doubt, there is a technical/logical problem in interpreting the OM dated 24/27.11.2008 about applicability of pay scale/ grade pay of JHTs. Smt.T P Leena, in her court case, has pleaded this issue very sensibly and logically in a different way and finally Hon’ble court has also arrived to the conclusion and ordered that the Grade Pay of JHTs should be Rs.4600 and accordingly, the I/II financial upgradations under MACPS should be granted to Rs.4800/5400 respectively. This case is undoubtedly proved that the GP of the post of JHT should be Rs.4600.

    In view of the above, now only way left out is either Association or Anuvaad Manch (or preferably both) delegates try to convince Rajabhasha/DOE officials about the issue purely on the basis of the Smt.T P Leena’s court case and make them to understand clearly with all supporting documents. In case of negative situation- fail to do so by Association/Anuvaad Manch or the said officials are not convinced, vice versa, then as a last resort we will have to approach Court without further delay which will be the ‘Final Destination’ for JHTs.

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    1. Dear friend
      When sixth CPC recommended the pre-revised pay scale of 6500 to JHTs, it means that the pay commission has equated the post of JHT with those posts existing in the scale of 6500 and it means a lot. As we are not raising the issue of anomaly in the report it does not have much importance as to what were our pay scales prior to sixth CPC. We are simply asking for the due treatment according to the recommendation & evaluation made by the sixth CPC. There is a specific recommendation of 6500 for JHT and the same was recommended by sixth CPC after studying equations of the posts and taking into consideration all relevant parameters into consideration. Prior to the order of 4600 placement of JHT in 4200 was right, but the order of 4600 speaks of bringing all the posts in 6500 to 4600 GP and it is not post specific. The same has been done in pursuance of the certain recommendations of the sixth CPC and hence the same has to be carried out in the line of equations and recommendations made by the 6th CPC. In simple words, a pay commission is set up for studying what appropriate pay scale should be applied to a post and when a pay commission after going into all the details and taking consideration all the relevant parameters recommended a certain pay scale and when finally accepted, the same is need to be adhered to and not tempered with. If the revised pay structure has to be applied with refrence to the pay scale recommended by the previous pay commissions then the pain and all the exercise taken by the sixth pay commission is a waste and meaningless exercise.

      whether you approach the authorities or the court you have to built your case around certain points which are in your favour or that may be interpreted in favour. No doubt "T.P. Leena"s case is one of the prominent and most important ground but we have to make a strong case as far as possible.

      Request all to give suggestions on how we can file a strong case instead of a desperate cry for 4600.

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    2. To add further, it is my humble suggestion to translators in subordinate offices to look up to the brothers in the CSOLS to file a case in this regard. It will be far better and convenient for translators in subordinate offices to file a case on the basis of T.P. Leena. At least they can have the similar benefit of MACP as it is given to T.P. Leena.

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    3. in my above comment 'not' before 'look up' is missing please read it 'not look up to'

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    4. Shri.Hariom Prasad ji, Namaste.

      I fully agree with your views/contention. However, my expressions are purely based on the facts and orders issued so far and as on date why we are not able to get GP of 4600/-.

      I too repeat your wordings:
      "Request all to give suggestions on how we can file a strong case instead of a desperate cry for 4600."

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    5. sharatkumar jee, aapne bahut hi theek kaha hai, kuchh mera bhi sochna issprakar hai ki CBEC mein Inspector ka basic pay Rs 5500 se badhakar sept 2007 mein Rs.6500 kiya gaya tha, paranty OM saaf taur se ye kahata hai ki Pre-revised pay on 1.1.2006 is applicable for grade pay Rs 4600/- ye bhi to sarasar galat hai. CBEC mein Inspector Cadre ko issi OM k adhar par Rs 4600 ka grade pay diya gaya hai. to Translatoron ko jiska revised pay 1.1.2006 ko Rs 6500 hai unhen q nahi?
      Smt TP Leena k case ki baat to door hai CBEC mein first MACP mein Rs 4800 and Second MACP mein Rs.5400 ka grade pay diya gaya hai, aap iss sandharbh mein Pune Central Excise Commissionerate, Aurangabad, Naasik, Mumbai , Cochin commissionerate se bhi RTI se jaankari le sakten hai.
      ye sirf CSOL aur aise dept ki kamjori hai jahan ye grade pay lagoo nahi hai, agar aap 6th pay commission ko dekhen to ye baat saaf ki gayi hai Department independent hai grade pay dene hetu aur DOE k permission ki koi jaroorat hi nahi hai,to phir shak ki koi gunjaish kahan rah jaati hai?.
      ye kaise ho sakta hai ki ek Jr Translator ko grade pay 4200 mile aur doosere ko 4600? agar abhi bhi chuppi hi rahi to bhagwaan hi maalik hai iss cadre ka jiski hasiyat LDC se bhi gayi googri ho gayi hai.

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    6. श्री काशिकर जी,नमस्कार!

      मैं यह समझ सकता हूँ कि आपने इस विषय पर गहरी जांच-पड़ताल और अध्ययन करने करने के बाद ही अपनी टिप्पणी दी है। आपका शोध और अध्ययन न केवल आपके व्यक्तिगत हित में है बल्कि यह हम सभी अनुवादकों के हित में भी है। अभी हाल में ही मैंने CSOLSTA की साइट पर टिप्पणी लिखी है, उसे मैं अपने अन्य साथियों के साथ यहाँ भी साझा करना चाहता हूँ।

      <>
      हरिओम प्रसाद गुप्ता

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    7. श्री हरिओम प्रसाद जी, नमस्ते।

      दूसरे साइट में मैने आपकी टिप्पणी देखी। आपकी - अनुवादकों के वेतनमान/ग्रेड-पे के प्रति छटे वेतन आयोग का आशय क्या रहा होगा - विषय पर टिप्पणी अत्यंत अर्थगर्भित है। अनुवादक की कठिनाइयों का समग्र रूप आपने बहुत खूबी से प्रस्तुत किया है। शायद हर एक अनुवादक इन्हीं बातों को व्यक्त करना/दोहराना चाह्ता होगा। उसे इस ब्लॉग में भी पोस्ट करें ताकि अन्य साथी भी उन गंभीर विषयों से परिचित हो सके।

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  15. आदरणीय आर्य जी

    सादर नमस्‍कार

    ग्रेड वेतन संबंधी कोई प्रति्क्रिया आपकी ओर से प्राप्‍त नहीं हो रही एसोशियेशन क्‍या तवरित कार्रवाई कर रही
    है । काशीकर जी के विचारों पर ध्‍यान दें ।
    आप ही कुछ कर सकते हैं कहीं से कोई सूचना नहीं आई ।
    हायर सेंकंडरी
    उप निदेशक हो सकते हैं तो स्‍नातक 4600/- ग्रेड वेतन क्‍यों नहीं पा सकते । कोर्ट केस जीत कर भी यही दशा है ।
    परमात्‍मा जाने इस केस का क्‍या होगा ।

    डा विजय शर्मा

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  16. श्री काशीकर जी नमस्कार और बहुत-बहुत धन्यवाद!
    आपको प्रत्युत्तर के साथ ही मैंने अपने उक्त टिप्पणी भी उसके साथ भेजी थी, लेकिन नहीं जनता कैसे वह विलुप्त हो गई। आपके अनुरोध पर यहाँ पुन: दे रहा हूँ-
    छठे वेतन आयोग ने सहायक निदेशक को समूह क व 5400 देकर राजभाषा कर्मियों के वेतनमान को निश्चित ही बेहतर किया है तथा इससे राजभाषा नीति का भी भला होगा। लेकिन अनुवादकों के वेतनमान अभी भी राजभाषा नीति के हक में नहीं है।
    अनुवादकों को 4600 का ग्रेड पे न दिया जाना मेरे विचार से वेतन आयोग और उस पर सरकार की स्वीकृति की अवहेलना है। आयोग द्वारा 6500 का 4200 के ग्रेड पे में संविलियन का सबसे बड़ा कारण यह था कि सरकार द्वारा आयकर, केन्द्रीय उत्पाद शुल्क के निरीक्षकों, सचिवालय के सहायकों,आशुलिपिकों आदि का वेतनमान 5500 से 6500 कर दिए जाने से विसंगति पैदा हो गई थी तथा इस विसंगति के फलस्वरूप अनेक कोर्ट मामले भी दाखिल किए गए थे। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में साफ-साफ इसका उल्लेख किया है। इस विसंगति को दूर करने के लिए ही आयोग ने 6500 का 5000 और 5500 के वेतनमान के साथ संविलियन किया था। साथ ही आयोग को यह भी अहसास था की 6500 के सभी पदों को शायद 4200 में संविलीयित करना संभव न हो, इसलिए ऐसे पदों को 6500 से स्तरोन्नयित किए जा रहे पद (उदा. वरिष्ठ हिन्दी अनुवादक का पद जिसे 6500 से 7450 में स्तरोन्नयित किया गया था ) में संविलीयित किए जाने की भी अनुशंषा की थी। इसे ध्यान में रखते हुए छठे वेतन आयोग ने 6500 के वेतनमान की अनुशंसा बहुत सावधानी से की थी। 4200 में मर्ज हो रहे सभी पदों के लिए 6500 की अनुशंसा नहीं की गई है। मैं यहाँ विस्तार में नहीं जाना चाहता। अब वित्त मंत्रालय की हठधर्मिता देखिए, जिस विसंगति को दूर करने के लिए 6500 का वेतनमान 4200 में संविलीयित किया गया था, उस विसंगति को उसने पुनः पैदा कर दिया है वह भी भारत सरकार द्वारा आयोग की रिपोर्ट स्वीकार कर लिए जाने के बाद। यहाँ सोचने वाले बात यह है कि वित्त मंत्रालय द्वारा 4600 के पहले आदेश के भाषा बहुत सोच-समझकर रची गई है। एक तरफ यह कहता है कि जो कुछ किया जा रहा है आयोग की अनुशंसाओं के अनुसरण में किया जा रहा है तथा "as on 01.01.2006" का प्रयोग भी बहुत सोच समझकर किया गया है, दुसरी तरफ इससे जो समझा जा रहा है उससे आयोग की अनुशंसाओं की ही ऐसी की तैसी हो जाती है। आयकर, केन्द्रीय उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क निरीक्षक, सचिवालय के सहायक प्रभावशाली संवर्ग में आते है तथा प्रशासन में इनकी गहरी पैंठ है और इनके पास संसाधनों तथा संगठन की ताकत भी है। यही कारण है कि आयोग की रिपोर्ट और उस पर भारत सरकार की स्वीकृति को धत्ता बताते हुए इस संवर्ग को 4600 का ग्रेड पे दे दिया गया है। विशेषकर सहायकों के लिए जो तर्क दिए दिया गया है वह आयोग की अनुशंसाओं को उलट देने वाला है।

    संक्षेप में, व्यय विभाग इस शरारत का रचनाकार है, जिससे हिन्दी अनुवादकों के अलावा भी कई अन्य कर्मचारी उद्वेलित है जो इस शरारत से प्रभावित हुए है। आयोग का यह विचार था कि उसकी अनुशंसाओं को लागू किए जाने के बाद कर्मचारियों की कार्यक्षमता में वृद्धि होगी तथा प्रशासन चुस्ती आएगी। लेकिन कर्मचारियों में जहां छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट और उस पर जारी अधिसूचना के फलस्वरूप जो उत्साह था, व्यय विभाग ने उस पर तुषारापात करने में कोई कसर नहीं रखी है। अंत में, मैं अपने हिन्दी अनुवादक भाइयों के प्रति पूरे सम्मान के साथ यह कहना चाहता हूँ कि 5000/5500 या 4200 के ग्रेड पे में अनुवादकों की भर्ती करना सरकार की राजभाषा नीति के प्रति सोची समझी साजिश है, ताकि लँगड़े सिपाही भर्ती कर पहले से नख-दन्त विहीन राजभाषा नीति को पंगु कर दिया जाए तथा वह लाचार होकर किसी कोने में सिसकती रहे। हममें से अधिकांश या तो बहुत भाग्यवान है या भाग्यहीन है। मुझे कोई बताए कौन मूर्ख 4200 या 4600 के वेतनमान के पदोन्नति विहीन पदों पर भर्ती होगा जिसका अँग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी पर भी प्रभुत्व होगा, विषय और संदर्भ को समझने की गहरी सूझ-बुझ होगी,कार्यशालाओं के आयोजन तथा उनमें व्याख्यान देने का माद्दा रखता हो,बैठकों और मंच संचालन की कला में माहिर हो, पत्रिकाओं में लिखने तथा उनके सम्पादन की योग्यता रखता हो, अपने अफ़सरान के भाषण लिख सकें और भी क्या-क्या, सबसे बडकर जो मानसिक रूप से इतना योग्य और सक्षम हो कि वह नख-दन्त विहीन राजभाषा नीति के प्रति 400-500 कर्म/अधि को प्रेरित करें तथा उनकी तर्कपूर्ण शंकाओं तथा प्रश्नों का समाधान कर सकें साथ ही उनके उलूल-जुलूल प्रश्नों तथा धारणाओं का भी जवाब दे सकें। मित्रों मेरी पूरी ताकत तो अपना उत्साह और हौसला बनाए रखने में ही खर्च हो जाती है।

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    1. श्री हरिओम प्रसाद गुप्ता जी ने बड़ी खूबी के साथ अनुवादको की व्यथा एवं उनके प्रति हो रहे भेदभाव की नीति सहित छठे वेतन आयोग के उद्देश्यों एवं जानबूझकर बल्कि यह कहना चाहिए कि समझकर भी न समझने की व्यय विभाग एवं अन्य राजभाषा विरोधी मंत्रालयों एवं विभागों की साजिश की कहानी उजागर की है.बिलकुल सही कहा आपने कि हमारी पूरी ताकत तो अपना उत्साह एवं हौसला बनाये रखने में ही खर्च हो जाती है.हमसे इतनी बड़ी बड़ी अपेक्षाए रखना यहाँ तक कि संसदीय समिति तक को हम ही आमने सामने फेस करते हैं पर डिपार्टमेन्ट के कान पर जूं तक नहीं रेंगती और वह इसी प्रयास में लगे रहते हैं कि कैसे राजभाषा पदों पर आसीन व्यक्तियों के वेतन एवं शान को अपने कुतर्कों से कमतर किया जाए.राजभाषा का जोर शोर से राग आलापने वाले देश में राजभाषा का ऐसा अपमान,न जाने क्या होगा इस देश का?

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    2. श्री गुप्ता जी, नमस्ते

      पोस्ट के लिए बहुत बहुत धन्यवाद्

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  17. आदरणीय आर्य जी

    सादर नमस्‍कार

    ग्रेड वेतन संबंधी कोई प्रति्क्रिया आपकी ओर से प्राप्‍त नहीं हो रही एसोशियेशन क्‍या तवरित कार्रवाई कर रही
    है । काशीकर जी Shri.Hariom Prasad ji, Madhvi ji के विचारों पर ध्‍यान दें ।
    डा विजय शर्मा

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  18. मुझे नहीं लगता कि असोसिअशन इस मामले को गंभीरता से ले रही है.व्यय विभाग ने लगता है सभी को अपने नकारात्मक उत्तर से निरुत्तर कर दिया है.एक तरह से यह हमारे लिए संकेत है कि हम अपनी लड़ाई स्वयं लड़ें.-माधवी

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  19. आदरणीय आर्य जी

    सादर नमस्‍कार

    माधवी जी के विचार सटीक हैं एसोशियेशन तथा अनुवादक संघ दोनों की ओर से किसी प्रकार का साकारात्‍मक उत्तर प्राप्‍त नहीं
    हो रहा । स्‍वयं प्रयास ही सफल रहेगा माधवी जी ठभ्‍क कह रही हैं ।
    डा विजय शर्मा

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