Wednesday 11 July 2012

श्री प्रेमचंद यादव का अविश्‍वास ही हमारा चुनावी संघर्ष




चूंकि हमारा मूल सिद्घांत चुनाव को स्वीकार करने वाला था इसलिए अंतत: एक चुनावी प्रतिद्वंदी के रूप में श्री प्रेमचंद की उपस्थिति स्वागत-योग्य है और उनके विरूद्घ हमारा संघर्ष हमारे प्रति उनका अविश्‍वास ही है कि लोग तय करें कि क्या हम वाकई विश्‍वास योग्य नहीं ?  

मेरे ब्लॉग पर श्री प्रेमचंद यादव की टिप्पणी स्वागत-योग्य है ।  स्वागत योग्य इसलिए कि श्री प्रेमचंद ने संवाद के महत्व को समझा।  यद्यपि श्री प्रेमचंद अब भी शायद बातों के भावों और विचारों से कनेक्ट नहीं हो पाए, और उन्हें मेरे लेख से लेकर हमारी टीम के निर्णयों में 'मानसिकताएं' नजर आईं।  

श्री प्रेमचंद ने कहा है कि उन्हें 'विद्रोही' और 'विषवमन करने वाला' कहा गया है।  यह गलत है।  मैं यह स्पष्‍ट करना चाहता हूं कि मेरे संबंधित ब्लॉग के लेख को वह अधिक ध्यान से पढ़ें तो पाएंगे कि 'विषवमन' करने वाला उन्हें नहीं कहा गया है। 'विषवमन' उन्हें कहा गया है जो चुनाव की प्रक्रिया में उतरकर अथवा अपने उम्मीदवार उतारकर या फिर किसी उम्मीदवार से अपने आप को जोड़कर अपनी बातें नहीं कह रहे हैं बल्कि पिछले दो महीने के इतिहास को तोड़ मरोड़कर पेश कर रहे हैं, 'टीम' को 'गुट' बता रहे हैं और इस बात को नहीं देख पा रहे हैं कि किस प्रकार जन संपर्क   के अभियानों और उस दौर में निर्मित पारस्परिकताओं से एक टीम का निर्माण हुआ।  मैं श्री प्रेमचंद को बताना चाहूंगा कि ऐसा विषवमन करने वाले अनेक लोग हैं, ऐसा हमारे अनुभव में आ रहा है जिनको लेकर हमारी चिंता स्वाभाविक है।  हमारी चिंता इसलिए है कि भविष्‍य में कैडर के लिए कामों को लेकर हमारी योजनाएं महत्वाकांक्षी हैं, और बड़़े कामों को अंजाम देने के लिए पूरे कैडर को टीम भावना में जोड़ना आवश्‍यक होगा और अगर आज कुछ लोगों में नकारात्मकताएं बो दी जाती हैं तो यह पौधे भविष्‍य में बाधक सिद्घ होंगे।  

मेरे लेख में श्री प्रेमचंद को 'विषवमन करने वाला' नहीं बल्कि 'स्वस्थ विरोधी' कहा गया है जिसके बारे में उन्होनें भी कहा है कि उन्हें 'प्रतिद्वंद्वी' कहा जाता तो अच्छा रहता।  प्रेमचंद जी का 'विरोध' 'जनता के दरबार' में उतर आया वह 'विष' नहीं है, भले 'सही' या 'गलत' हो ('सही' या 'गलत' पर अंतिम फैसला जनता दे देगी)।  'विष' वह बात है जो परदे के पीछे है, जो तथ्यों का तोड़ मरोड़ है या जो कम जानकारी या कम रूचि रखने वालों को दी जाने वाली अधकचरी सूचना है।  हां हमने इस बात की आशंका (मात्र आशंका) जरूर जताई है कि श्री प्रेमचंद विषवमन करने वालों के हाथों की कठपुतली न बनें।  यह आश्‍चर्यजनक है कि श्री प्रेमचंद ने मेरे लेख की ‘विषवमन  करने वालों' वाली बात से एसोसिएट क्यों किया, जबकि उसका संदर्भ स्पष्‍ट था।  

श्री प्रेमचंद ने पूछा है कि आखिर मैं किसका विद्रोही हूं कैडर का या उल्लिखित टीम का।  इस बिंदु पर मैं यह कहना चाहूंगा कि हमारी टीम इतनी गुस्ताख कतई नहीं है कि अपने आप को कैडर का पर्याय समझ लें जिससे अपने विरोधी को कैडर का विरोधी घोषित कर दे।  हां इतना निश्वित है कि हमारी टीम का श्री प्रेमचंद जी के साथ जो अनुभव हुआ उसमें 'आपसी समझदारी' को विकसित करने की हमारी टीम के लोगों की कोशिशों को उनके रवैये ने हमेशा ठेस पहुंचायी।  6 जून की आम सभा की बैठक में  उन्होनें  शिरकत की थी, और बैठक समाप्त हो जाने के बाद उन्होनें आक्रामक और अनादरपूर्ण तरीके से हमारी टीम के उन तरीकों की आलोचना की थी कि हमने बैठक में अपनी चुनाव आदि मांगों को मनवाने के लिए दबाव बनाने का रास्ता क्यों अख्तियार किया।  यह सच है कि हमारी टीम भी शोरगुल का हिस्सा बन गई थी पर श्री प्रेमचंद ने इन बातों के पीछे की मजबूरी और तर्क को ठहरकर जानने का प्रयास नहीं किया।  न ही इस बैठक से पूर्व के हमारे अभियानों और बैठक के लिए मुद्दों को आर्टिकुलेट करने के हमारे प्रयासों से वह किसी भी प्रकार से कनेक्ट थे।  उन्होंने यह नहीं समझा या समझना चाहा कि हमारी चिंता यह थी कि हमेशा की तरह पुरानी एसोसिएशन के पदाधिकारी अपनी उपलब्धियां गिनाने और बहुत काम बचे हुए हैं और पाइपलाइन में हैं इस बहाने चुनाव की बात को हवा न कर दें।  इसलिए हम सावधान थे।  हमारा शोरगुल चुनाव की घोषणा को छीनकर प्राप्त कर लेने की रणनीति के तहत था।  श्री प्रेमचंद ने पहली बार इस बैठक के समय ही हमारी टीम के प्रति बंद दृष्टिकोण का परिचय दिया था।

एक बार जब हमने चुनाव की घोषणा करवा ली तब हमारी पूरी गंभीरता चुनाव के प्रति थी।  इस बिंदु पर लोकतंत्र का तकाजा यह था कि हम अपनी टीम का आधार इतना बड़ा करें कि यह आदर्श स्थिति सामने आ जाए कि चुनाव की नौबत न आए।  दूसरे यह कि हमारी टीम चाहे जितनी बड़ी से बड़ी हो जाए ऐसे अनेक लोग हो सकते हैं कैडर पर जिनकी पकड़ हमसे बेहतर हो।  तो ऐसे लोगों को चुनाव के लिए प्रेरित किया जाए और हम जमकर चुनाव लड़ें।  ऐसे चुनाव से छनकर निकलकर आने वाले व्यक्ति कैडर के लिए समर्थ नेता होंगे।  इसमें से पहली बात यानि अपनी टीम का आधार बड़ा करने के खातिर हमने बैठकों के क्रम में 15 जून को जो पहली बैठक आयोजित की उसमें श्री प्रेमचंद आए पर किसी भी योगदान के लिए स्वयं को प्रस्तुत नहीं किया ।  यह हमारी टीम के प्रति श्री प्रेमचंद के बंद दृष्टिकोण का दूसरा परिचय था।  श्री प्रेमचंद ने हमारी टीम से कभी किसी स्तर पर कोई संपर्क नहीं स्थापित किया जबकि संपर्कों का लंबा सिलसिला हमने लंबे समय से चला रखा था।  

बहरहाल, हमारी टीम बनी और अनपेक्षित रूप से विभिन्न पदों पर हमारी टीम के सदस्‍यों के विरूद्ध चुनाव के लिए नाम सामने नहीं आए।  जो छिटपुट नाम सामने आए वह हमारी टीम में मिल गए।  केवल एक पद के लिए श्री प्रेमचंद का नाम सामने आया।  एक बड़ा चुनाव होता तो वह स्वागत योग्य होता।  चूंकि मात्र एक पद के लिए चुनाव बचा था इसलिए यह बात सामने आई कि श्री प्रेमचंद भी एकोमोडेट हो सकते हैं।  जब श्री प्रेमचंद से बातचीत के प्रयास हुए तो उनका रूझान पुन: अविश्‍वास से भरा था।  

चूंकि हमारा मूल सिद्घांत चुनाव को स्वीकार करने वाला था इसलिए अंतत: एक चुनावी प्रतिद्वंदी के रूप में श्री प्रेमचंद की उपस्थिति स्वागत-योग्य है और उनके विरूद्घ हमारा मुद्दा हमारे प्रति उनका अविश्‍वास ही है कि लोग तय करें कि क्या हम वाकई विश्‍वास योग्य नहीं हैं।  

श्री प्रेमचंद अपनी टिप्पणी में हमारी टीम को गुट कहने का लोभ पुन: संवरण नहीं कर पाए हैं।  उन्होनें कहा है कि 22-25 लोग एक साथ मिलकर संघ बना लें तो यह लोकतंत्र नहीं; हमारी प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष नहीं है; और व्यक्तिगत संपर्क में उन्होनें अनुवादकों को असंतुष्‍ट पाया कि अधिकांश अनुवादकों को कुछ पता नहीं है।  इस बिंदु पर मैं श्री प्रेमचंद को साग्रह यह कहना चाहूंगा कि उस कैडर में जहां वर्षों से काम कर रहे लोग एक दूसरे को बहुत कम जानते हैं वहां क्या यह अकस्मात है कि 22-25 लोग एकमत हो गए और एक टीम बन गई।  22-25 लोगों की संख्या कोई छोटी संख्या नहीं है और इतने लोग परस्पर मिलने जुलने से ही सामने आए।  क्या यह पारदर्शी और निष्पक्ष नहीं है कि कैडर में जो कभी न हुआ था वह हुआ कि लगभग दो महीने तक व्यक्तिगत संपर्क स्थापित करने का सघन अभियान चला और मुद्दों पर चर्चाएं चलीं।  पहल स्वाभाविक रूप से थोड़े से लोगों ने की तो इतने मात्र से किसी टीम को गुट नहीं कहते।  

मैं श्री अरूण कुमार राय के इस विश्‍वास को स्वीकार करता हूं कि श्री प्रेमचंद भी अंतत: कैडर के एक सिपाही ही हैं।  श्री प्रेमचंद अपने भीतर विद्यमान इस तत्व को भी देखें कि अपनी टिप्पणी में उन्होनें लिखा कि उनकी टिप्‍पणी पर लोग अपने विचार प्रस्तुत करें।  श्री प्रेमचंद में संवाद की सुगबुहाट आई।  उन्हें इस बात की भी चिंता है कि उनकी बात से किसी को ठेस न पहुंचे।  यह संपूर्ण माहौल में बनने वाली सकारात्मकता और लोकतांत्रिकता ही है कि हमारे प्रति श्री प्रेमचंद के अविश्‍वास में भी सेंध लग गया है।  व्यक्तिगत रूप से मैं चुनाव में खड़े होने के धर्म के नाते यह चाहता हूं कि मैं जीतूं पर उससे आगे यह मानता हूं कि चाहे कोई हारे या कोई जीते अंतत: सबकी ऊर्जा कैडर के हित में समायोजित हो।

इस बार का मुद्दा कैडर को बहुत जीवंत बना डालना है।  हमें संवाद करना है शोर नहीं।  विश्‍वास करना है, न कि अविश्‍वास और न ही अंधविश्‍वास और न ही किसी के विश्‍वास की जमीन पर अपनी चालाकियां।  सार्थक विरोध करना है, निरर्थक समर्थन नहीं। पर, यह भी समझ लेना है कि अनेक ऐसे प्रसंग होते हैं कि विरोध जताने की तुलना में स्वीकार जताने में कहीं अधिक सार्थकता, कहीं अधिक हिम्मत की जरूरत होती है।  (इस पैरा की बातें मैं सामान्य रूप से कह रहा हूं मात्र श्री प्रेमचंद के संदर्भ में नहीं। )

श्री प्रेमचंद ने ठीक कहा कि दलगत भावना से उपर उठें।  यहां पर मैं यह जोड़ना चाहूंगा कि हम सब टीमगत भावना को भी समझें।  अंतत: संपूर्ण कैडर को एक टीम बना डालना है।  

5 comments:

  1. दिमाग खराब है प्रेमचंद जी का. कुछ लोगो की आदत होती है कि अपने आप तो कुछ करना नहीं और दूसरों कि टांग खींचना.जब उनको ये आफ़र
    दिया था कि टीम में शामिल हों तो तब उन्होंने क्यों नहीं माना. जिसको काम करना है वो किसी भी पद पर रह कर किया जा सकता है तो एक विशेष पद के लिए जिद क्यों. और बार बार ये लोगो को बरगला रहे है कि लोगो को नामांकन के बारे पता नहीं चला तो ये जिम्मेदारी हमारी नहीं है और इसके अलावा जो लोग आम सभा कि मीटिंग में आये थे उन सभी को पता था सारे घटनाचक्र का. इस टीम का कोई अपना निजी स्वार्थ नहीं है सब लोग संवर्ग के हितों के लिए कम कर रहे हैं. ये प्रेमचंद नाम का पंछी पहले कहाँ था जब पहले कितना गलत हो रहा था. मुझे तो लगता है कि प्रेमचंद जी आप किसी और के इशारे पर कम कर रहे हैं.

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  2. IN MY OPINION IT IS MUCH ADO ABOUT NOTHING.WE ARE OVER-ESTIMATING AND GIVING VAIN IMPORTANCE TO ANY FELLOW WHO IS KNOWN TO NONE.WE SHOULD WELCOME HIM IN THE FRAY.THE RESULTS WILL SURELY TELL WHERE HE STANDS.IN A DEMOCRATIC UNION EVERYONE IS FREE TO GIVE VENT TO HIS VIEWS.WE SHOULD KEEP OUR FINGERS CROSSED AND HOPE FOR THE BEST.RAJNEESH

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  3. THE ELECTIONS ARE NO BETTER THAN A MOCKERY. ONLY A FEW SELF STYLED COMMANDER HAVE DECLARED THEMSELVES LEADERS OF A REPUTED CADRE. THEY EVEN DONT HAVE COMMON SENSE. HOW CAN THEY LEAD OTHERS. THEY CONSIDER THEMSELVES SUPERIOR TO OTHERS BY EXHIBITING THEIR BA AND MA DEGREES. BUT LEADING OTHERS IS A DIFFERENT THING. THEY JUST WANT TO OCCUPY THE OFFICE WITHOUT ANY VISION .THEY ARE BEHAVING JUST LIKE GOONS. THEY CAN NOT BEAR THAT OTHERS SHOULD COME AHEAD. WHAT IS MR. PREM CHAND FAULT EXCEPT FILING HIS NOMINATION. HAS HE NO RIGHT TO CONTEST ELECTION? WHAT DO THEY THINK THEMSELVES? NEITHER THE PROPER ELECTION PROCESS HAS BEEN FOLLOWED NOR THE OTHERS HAVE BEEN INFORMED ADEQUATELY. THE ELECTION NOMINATION DATE SHOULD BE EXTENDED AND PROPER PROCEDURE SHOULD BE FOLLOWED...................WE ALL CONDEMN THIS ELECTION PROCESS BECAUSE IN THIS ELECTION THERE IS NO CONTEST.........AND ALL SO CALLED LEADERS SHOULD REMEMBER THAT CHEWING OF PAN AND TOBACCO IS NOT SO MUCH DECENT ACT IN OFFICIAL CAPACITY.

    ................FUTURE LEADERS................

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    1. Yes Mr. Anonymous, it's a mockery that finally an election is going to be held, and it was not a mockery that no election had been held for last fifteen years. I can assure you for one thing Mr.Anonymous that time will surely show you how these self styled leaders lead others. I agree with you when you say that BA and MA degrees are not the right parameters to judge future leadership capabilities, but i could not understand what objective parameters do you have, that you have come to a ready made conclusion that we do not have any vision.Mr.Anonymous,we all of our team like any other person in our cadre are waiting since we come in the service that 'others should come ahead',because for last fifteen years no one has ever come ahead effectively. Of course Mr.Prem Chand has no fault that he's filed his nominations, but it's very strange to know how's he filed that when he has not been informed adequately.I think you've all the right to condemn the election process, but I've also the right to condemn your condemnation, that your condemnation's nothing but sheer rationalization of your not being able to form a team and contest a wholesome election.Our esteemed leader who chew pan or tobacco has all the required civic sense, and he's so natural and gutsy a person that he does not bother for hanging false civic senses. ...Pandey Rakesh Srivastava.

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  4. पाण्डेय जी आपने पूरे परिदृश्य को साफ़ और ऑब्जेक्टिव तरीके से बातों को रखा है. यहीं आपकी कला दिख रही है. प्रेमचंद जी से मेरा परिचय नहीं है, लेकिन जिस तरह अपने संक्षिप्त टिप्पणी में उन्होंने अपने सह्तियों के प्रति अविश्वास जताया है वह बता रहा है कि उनमे सहनशीलता और सामजस्य की कमी है.
    @भाई अज्ञात जी चूँकि आप हमारे संवर्ग से ही हैं तो परिचय देकर बात रखेंगे तो बेहतर है, अन्यथा लगता है कि हम अँधेरे में बात कर रहे हैं. वस्तुतः यदि कोई अपने घर में बैठा है और कह रहा है कि वह देश का नेतृत्व कर सकता है तो वो दिन में सपने देख रहा है. वास्तव में नेतृत्व करने के लिए आपको सामने आना होता है. आपको मिलना होता है.. अपने विज़न को शेयर करना होता है. आपने कहा है कि ये लोग कैसे नेतृत्व कर सकते हैं.. तो आप ठीक ही कह रहे हैं.. ये लोग तो बस पूरे संवर्ग का प्रतिनिधत्व कर रहे हैं.. या करेंगे... नेतृत्व कहाँ... इस संवर्ग में एम ए और बी ए से कम तो कोई भी नहीं.. ऐसे में कोई डिग्री दिखा कर किसे इम्प्रेस कर सकता है.. लेकिन वह अपने दफ्तर से निकल कर लोगों से मिल तो रहा है.. जो कैडर सोये हुए लोगों के हाथों में था.. उस से निकलने की कोशिश तो कर रहा है... आप ठीक ही कह रहे हैं कि ये इलेक्शन नहीं है... लेकिन इस में इस टीम का क्या दोष.... आप जैसे जागरूक साथियों को आगे आना चाहिए था और नेतृत्व करना चाहिए था.... लेकिन अफ़सोस कि आप नहीं आये और वस्तुतः बिल्कुल युवा साथियों को नेतृत्व करना पड़ रहा है...ऐसे में निवेदन है कि आप कम से कम मत देने तो अवश्य आइयेगा.....

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