Tuesday 17 July 2012

महज हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं....


महज हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

Saurabh Arya, Jr Translator,
Ministry of Textiles.
आखिरकार आज 17 जुलाई की तारीख राजभाषा सेवा संवर्ग के इतिहास में लोकतंत्र की बहाली की तारीख के रूप में याद रखी जाएगी. 17 जुलाई को चुनाव होंगे इसकी घोषणा 6 जून की आम सभा की बैठक में की गई थी. ‘चुनाव होंगे’ इन दो शब्‍दों को अमलीजामा पहनाने में हमें दो दशक लग गए. अनुवादकों के हितों से खिलवाड़ होता रहा और किसी ने अब तक संगठित स्‍वर से सवाल तक नहीं किया. अनुवाद की दुनिया में मुझे आए आज पूरे साढ़े छह साल हो चले हैं. इस दौरान इस दुनिया को बहुत करीब से देखा, जाना और ठीक से पहचानने की कोशिश की. कुरूक्षेत्र, चण्‍डीगढ, लुधियाना और फिर दिल्‍ली के सफर में अनुवाद मेरे जीवन में आयाम बदलता रहा और इस पेशे के प्रति मेरे समझ और बढ़ती गई. हां, ये दूसरी बात थी कि इस दुनियां ने मुझे हर पल पर हैरान किया और ये सोचने पर मजबूर किया कि आखिर ऐसा क्‍या है कि सरकारी तंत्र का सबसे ज्‍यादा शिक्षित तबका इस तंत्र द्वारा बुरी तरह उपेक्षा का शिकार है. दिल्‍ली आने से पहले मन में बडी उम्‍मीद थी कि कैडर के अनुवादकों की स्थिति अवश्‍य ही बेहतर होगी. पर ये वहम दिल्‍ली की जमीन पर कदम रखते ही दूर हो गया. ये जानकर और भी आश्‍चर्य हुआ कि इस कैडर की एक एसोसिएशन है और वह वभी नकारा साबित हो चली है. जब इस एसोसिएशन का इतिहास और कार्यप्रणाली को करीब से समझा तो जाना की एसोसिएशन नाम की कोई चिडि़या वास्‍तव में है ही नहीं.
      दोस्‍तो जो चीज हमारे कैडर की ताकत है शायद वही हमारी सबसे बडी कमजारी भी है. हमारी ताकत है कि अनुवादक का पद एक ऐसा पद है जो आपको हर केन्‍द्रीय कार्यालय में मिल जाएगा. परन्‍तु यही हमारी सबसे कमजोर कडी है क्‍योंकि हर कार्यालय में अमूमन दो चार अनुवादक मौजूद होते हैं और एक कैडर का हिस्‍सा होने के बावजूद आपस में संवाद और विमर्श का कोई माध्‍यम उपलब्‍ध न होने के कारण बुरी तरह बिखरे हुए हैं. एसोसिएशन को संभवतया इस दिशा में कार्य करना चाहिए था पर नहीं हुआ. यहां तक कि आम सभा की बैठकें भी नियमित रूप से नहीं बुलाई गईं. अन्‍य किसी माध्‍यम से सूचनाओं को प्रसारित करने की तो बात ही छोड़ दिजिए.
पिछले वर्ष जगन्‍नाथ पुरी (उड़ीसा) में केन्‍द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोएिशन के वर्तमान अध्‍यक्ष श्री शिव कुमार गौड़ से मेरी पहली मुलाकात हुई और इस स्थिति को दूर करने के उपायों पर पुरी से कोणार्क के रास्‍ते में मेरी उनसे लंबी चर्चा हुई. मैंने महसूस किया कि वे दिल से तो चाहते हैं कि कुछ ऐसा हो परंतु शायद चाह कर भी नहीं पा रहे हैं. बस उसी दिन से मैंने विकल्‍प तलाशने शुरू किए. इस दौरान इस निराशा के दौर में मुझे आशा की बड़ी शक्तिशाली किरणें नज़र आनी शुरू हो गईं. अपने मित्रों से आपस में इन मुद्दों पर चर्चा के दौरान मैंने पाया कि कुछ और साथी भी इसी फ्रीक्‍वेंसी पर सोचते हैं. वित्‍त मंत्रालय से श्रीमती विशाखा बिष्‍ट भी संभवत: इस स्थिति को पहचान चुकी थीं और हालातों को बदलने की तीव्र इच्‍छा उनके भी दिल में थी. बस फिर क्‍या था फेसबुक पर ट्रांसलेटर्स क्‍लब नाम से कम्‍यूनिटी बना कर हम दोनों ने देश भर के अनुवादकों को एक मंच पर लाने का प्रयास शुरू कर दिया. और अब तक 150 के करीब अुनवादक इस मंच से जुड़ चुके हैं. अनुवादकों के मध्‍य आपस में एक दोस्‍ताना माहौल बने जहां वे खुलकर अपने दिल की बात अपने साथियों के साथ सांझा कर सकें इसके लिए सभी अनुवादकों को एक दिन के दिल्‍ली दर्शन और फिर इस वर्ष मार्च माह में विश्‍व पुस्‍तक मेले में आमंत्रित किया गया. इन दोनों आयोजनों में अनुवादक साथियों ने बड़े उत्‍साह से भाग लिया. ये उपाय बड़ा कारगर साबित होता दिख रहा था. ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों स्‍तरों पर उत्‍साह दिनों दिन बढ़ने लगा. फिर हमने तय किया कि यह प्रयोग अपने कैडर में भी किया जाए.
     इससे पहले कि हम इस दिशा में कार्य शुरू करते. 9 मई को कुछ अनुवादक साथी नॉर्थ ब्‍लॉक में चाय पर मिले. इन्‍हें बुलाने का श्रेय भी श्रीमती विशाखा बिष्‍ट को जाता है. इस दिन कुल 12 अनुवादक मौजूद थे. तमाम बातों पर चर्चा हुई सबने पाया कि वर्तमान एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने अब अनुवादकों के हितों के प्रति आंखें मूंद ली हैं. यह स्‍वाभविक था. वरिष्‍ठ पदों पर पदोन्‍नति के उपरांत उनसे यह अपेक्षा करना बेमानी ही था. तय किया गया कि क्‍योंकि अब एसोसिएशन में अनुवादकों का कोई प्रतिनिधित्‍व नहीं रह गया है. लिहाजा जल्‍द से जल्‍द चुनाव कराए जाएं. उसके बाद 23 मई को हुई बैठक और बाद के घटनाक्रम से आप सभी परिचित ही हैं. हमने ज्‍यादा से ज्‍यादा साथियों से चर्चाएं कर सही लोगों की पहचान शुरू की जिस भी एक व्‍यक्ति ने ईमानदारी से कैडर की सेवा करने को भाव दिखाया उसे साथ लेकर हम आगे बढ़ते रहे. और बहुत जल्‍द एक स्‍वस्‍थ टीम तैयार हो गई जिसमें श्री दिनेश कुमार सिंह, श्री अजय कुमार झा, श्री पांडेय राकेश श्रीवास्तव , कुमार राधारमन, श्री अवनी करण, श्रीमती विशाखा बिष्ट, श्री मंजुल, श्री धर्मबीर और श्री सुभाष पंडोरा जैसे जुझारू लोग मजबूत खंभों की भांति है. इनके अतिरिक्‍त तमाम वरिष्‍ठ साथियों ने हमें अपना समर्थन दिया और टीम का हिस्‍सा बने. यह एक निरंतर और पूर्णतया स्‍वाभाविक रूप से बनी टीम थी. सबमें एक बात खास थी कि सब से सब पूरी तरह आशावादी और परिवर्तन के प्रति निष्‍ठावान थे. बस फिर देर किस बात की थी. हमने कैडर के सभी साथियों को एक सूत्र में पिरोने को अपनी प्राथमिकता बनाया. जिसके लिए हमने एक एक कार्यालय जाकर सभी साथियों से सूचनाएं एकत्र करके एक डाटाबेस तैयार किया. फिर एक साथ ई-मेल, ब्‍लॉग और फेसबुक पेज के माध्‍यम से परस्‍पर संवाद के हर संभव चैनल खोल दिए. और आज मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि हमारा यह प्रयोग आशा से अधिक सफल रहा. बस इससे अन्‍य साथियों के जुडने की प्रतीक्षा है. इधर चुनाव की रणभेरी बजी और हम मैदान में थे. हमें किसी से सत्‍ता नहीं छीननी थी हमें सिर्फ अपने भविष्य की बागडोर अपने हाथों में लेनी थी. हमारे भाग्‍यविधाता वे लोग क्‍यों बनें जो अनुवादकों का दर्द तक न समझ सकते हों.
    
मैं जितना इस राजनी‍ति से दूर रहना चाहता था उतना ही परिस्थितियों ने इसका मुकाबला करने पर मजबूर किया. परंतु जब बहुत स्‍वस्‍थ और ईमानदार सोच वाले साथी मेरे चारों तरफ नज़र आए तो फ्रंट लाइन पर आकर काम करने का फैसला किया. दूसरे मेरा उत्‍साह श्री पांडेय राकेश श्रीवास्‍तव जी के संपर्क में आने से दूना हो गया. मैं पिछले दो वर्षों से पांडेय जी के संपर्क में हूं और यहां इतना ही कहूंगा कि उन जैसा प्रबुद्ध और साफ नीयत का आदमी इस कैडर का हिस्‍सा है यह कैडर का सौभाग्‍य है. हम दोनों ने न जाने कितनी शामें अनुवादकों की स्थिति में सुधार के उपायों पर चर्चा में खर्च की हैं. हम और हमारी टीम आज केवल ग्रेड पे और पदोन्‍नति के मुद्दों पर ही नहीं अटके हैं बल्कि इस पूरे परिदृश्‍य में परिवर्तन की वृहद स्‍तर पर संकल्‍पना कर चुके हैं. यहां लिखी बातें कुछ लोगों को हवाई लग सकती हैं. तो कहना चाहूंगा कि सपने हवा में ही बुने जाने हैं. यदि आप सपना नहीं देख सकते तो उसे साकार भी नहीं किया जा सकता. इसलिए सपने देखना जरूरी है और उससे भी जरूरी है उन सपनों को साकार करने के लिए जम कर काम करना.

ये और बात है कि जो लोग यह परिवर्तन नहीं देखना चाहते उन्‍होंने हर संभव तरीके से हमारे विरूद्ध दुष्‍प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी. पर हम इस सबसे विचलित नहीं हुए और निरंतर अपना काम करते रहे. मुझे आशा है कि इस तरह की साजिशें करने वाले लोग जल्‍द ही समझेंगे कि जहां सैकड़ों साथियों को भविष्‍य दांव पर लगा हो वहां अपने निजी स्‍वार्थ को तिलांजली देना ही श्रेयस्‍कर होता है. खैर इन्‍हीं सपनों को लेकर आज हम चुनाव के रूप में जनता की अदालत में हैं. आज हमारे साथियों को तय करना है कि वे इस टीम को पूर्ण समर्थन देकर इन सपनों को साकार करने में अपना योगदान देते हैं या इस टीम को कमजोर करके इन सपनों को खतरे में डालते हैं. मुझे विश्‍वास है कि मेरे अनुवादक साथी हमारे सांझा सपनों का विफल नहीं बनाएंगे. इस अदालत को जो भी फैसला होगा वो हमें तहे दिल से मंजूर होगा. 

- सौरभ आर्य, कनिष्‍ठ अनुवादक, वस्‍त्र मंत्रालय, उद्योग भवन. 

11 comments:

  1. Vishakha Bisht17 July 2012 at 09:58

    You have rendered the minute details behind our movement wid great honesty and simplicity which is highly commendable..I think it should not leave any kind of doubt in anybody's mind now... Dear friends..I once again urge you all to come up...and cast your vote to the right candidate.

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  2. abe teri aukat kya hai

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    1. सौरव के उक्‍त आलेख पर रिप्‍लाई में किसी ने खुन्‍नस में उससे उसकी 'औकात' पूछ ली. यूं तो ऐसी छोटी बातें उत्‍तर देने लायक भी नहीं होती,पर आज शाम जब चुनाव का परिणाम आ गया है मैं कहना चाहूंगा हमारी लड़ाई का केंद्र बिंदु ही वह मानसिकता थी जो 'औकात'की शब्‍दावली के इर्द गिर्द ही घूमती है. जिसके कार्यों का एकमात्र लक्ष्‍य तथाकथित 'औकात' के लिए चूहा दौड़ में लगे रहना है वैसी किसी मानसिकता की ही ऐसी प्रतिक्रिया हो सकती है.
      बहरहाल, ईश्‍वर सदबुद्धि दे....
      लक्ष्‍मण सिंह

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    2. इनकी औकात तो मतदाताओं ने कल इन्हें चुनाव में विजयी बनाकर दिखा दी है।

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  3. बहुत ही सुंदर, उपयोगी और परोपकारी विचार हैं आपके। ऐसा लगता है कि आपके सीने में इस प्रबुद्ध लेकिन उपेक्षित वर्ग के लिए कुछ कर गुज़रने का माद्दा है। abe teri aukat kya hai जैसे जुमले से हतोत्साहित या व्यथित न हों क्योंकि जब भी कोई नया काम आरम्भ किया जाता है, तब विघ्नसंतोषी जीव खुराफात करने से बाज़ नहीं आते।

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    1. आपके शब्‍दों के लिए बहुत बहुत धन्‍यवाद. हतोत्‍साहित करने के उद्देश्‍य से कही गई किसी भी बात से मेरा उत्‍साह दूना ही होता है. और फिर जब आप सब जैसे सुधिजन का आशीर्वाद साथ है तो फिर हमें क्‍या चिंता. पुन: आभार.

      (कृपया कमेंट के साथ अपना नाम, पदनाम आदि का उल्‍लेख अवश्‍य करें.)

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  4. BEST WISHES. JEET MUBARAK. DONT CARE FOR CRITICISM. MOVE FORWARD WITH DETERMINATION AND DOUBLE STRENGTH............................................................................PRADEEP KUMAR

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  5. many congratulations to both of our frontiers. I wish U all the very best and a meaningful journey ahead.
    Dr. Prakash Kr. Shrivastwa
    M/o Lab.& Emp.

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    1. @Pradeep Kumar and Dr. Prakash Kr. Shrivastava,

      Thanks a ton for ur kind wishes. Such a huge support is enough for us to face any challenge. Thanks again:)

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  6. आप लोगों की यह नई शुरुआत बेहद सराहनीय है| सबसे अच्छा प्रयास तो यह है कि आपलोग सभी अनुवादकों को इटरनेट के जरिए एक मंच पर ले आए पर मैं यह कहना चाहूंगी कि अनुवादक वर्ग एक प्रबुद्ध वर्ग है | यकीनन पढाई-लिखाई से ही कोई वर्ग प्रबुद्ध नहीं बन जाता है इसीलिए यहां निम्न सोच के कुछ व्यक्ति भी हैं जिन्हें पावर और स्वार्थ से ही सरोकार है | फिर भी मैं आप लोगों से यह उम्मीद करती हूं कि आप लोग सदा शालीन भाषा का इस्तेमाल करते हुए अपनी बात कहेंगे और हमेशा “सर्व हिताय” की सोच से कार्य करेंगे | कुछ गलत लोगों के कारण हमारे काडर की छवि खराब नहीं होनी चाहिए |

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    1. Dear Anonymous,
      हमारे इस प्रयास की सराहना के लिए आभारी हूं. आपके उपर्युक्‍त विचारों से पूर्णतया सहमत हूं. दरअसल हमारी असली लड़ाई इसी निम्‍न सोच के खिलाफ है जिसके कारणवश आज हमारे कैडर की तस्‍वीर बदरंग हो चली है. निस्‍संदेह कैडर की पहचान उसके प्रतिनिधियों से होती है इसलिए हम इसके प्रति सचेत हैं. और आपको विश्‍वास दिलाते हैं कि हमारी टीम आपको निराश नहीं करेगी. पुन: धन्‍यवाद

      (कृपया कमेंट के साथ अपना नाम, पदनाम आदि का उल्‍लेख अवश्‍य करें. ब्‍लॉग की पॉलिसी के अनुसार अब से एनोनिमस पोस्‍ट को प्रकाशित करना संभव नहीं होगा.)

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